रविवार, 13 अगस्त 2017

जीवनी शक्ति वायु

वायु हमारी जीवनी शक्ति है। इसके बिना हम एक पल भी नहीं रह सकते। इसके न होने की स्थिति में सब समाप्त हो जाता है, ब्रह्माण्ड में कुछ भी शेष नहीं बचता। इसी वायु के प्रकोप पर आज चर्चा करते हैं। वायु जहाँ हमें सुख देती है वहीं बहुत सारे कष्ट भी देती है। चाहे वह हमारे शरीर के अन्दर विद्यमान हो या ब्रह्माण्ड में। इसके साथ छेड़छाड़ करना हमेशा ही हमें बहुत मंहगा पड़ता है। फिर भी हम नहीं सुधरते।
           वायु शरीर रूपी यन्त्र और शरीर के अव्ययों को धारण करती है। इस वायु का गुण सुखाना होता है। यह रुक्षता पैदा करती है। यही मन को भी चंचल बनाती है। हमारे शरीर से जब प्राणवायु निकल जाती है तो वह मिट्टी हो जाता है। फिर इसे श्मशान में ले जाकर जला दिया जाता है।
          जब हमारे शरीर के भीतर की वायु बिगड़ने लगती है तब पेट में अफारा हो जाता है, पेट फूल जाता है। डकारें और पाद आने लगते हैं। अर्थात ऊपर और नीचे से हवा निकलने लगती है। कभी-कभी मनुष्य को हिचकियाँ भी आने लगती हैं। इसी प्रकार शरीर के अंग यानि हाथ, पैर और गर्दन आदि हिलने लगते हैं।
         दूसरे शब्दों में कहे तो पार्किन्सन रोग हो जाता है। कुछ लोगों की आँख, कुछ के गाल और कुछ के होंठ भी चलने लगते हैं। इन सबसे भी अधिक कष्टकारी वह स्थिति होती है जब मनुष्य के शरीर में लकवा मार जाता है जिससे वह अपाहिज की तरह बिस्तर पर पड़ जाता है। स्वय कुछ भी नहीं कर पाता बल्कि वह दूसरों की कृपा का मोहताज हो जाता है। उस समय वह ईश्वर से अपने लिए मौत की गुहार लगता है। इसके कारण हृदय रोग तथा मस्तिष्क रोग भी होते हैं।
           प्रकृति से छेड़छाड़ करने पर वायु वायु बिगड़ जाती है जिसके कारण से झंझावात आता है। तब सब तहस-नहस होने लगता है। आँधी-तूफान बरबादी करने लगते हैं। हर ओर प्रलंयकारी स्थिति बनने लगती है। ब्रह्माण्ड में वायु तब बिगड़ती है जब हम उसे प्रदूषित करते हैं।
        उसी प्रदूषित वायु का सेवन करने से हम अनेक रोगों की चपेट में आ जाते हैं। साँस की बिमारियाँ इसी प्रदूषित वायु का उपहार हैं। श्वास नली के कैंसर जैसे भयंकर रोगों तक की चपेट में हम आ जाते हैं।
         हमारे शरीर की वायु हो या इस ब्रह्माण्ड की वायु, उन दोनों को दूषित करने के दोषी हम स्वयं हैं। गलत खान-पान का परिणाम होता है शरीर की वायु का दूषण जो समय-समय पर रोग के रूप में आकर हम लोगों को चेतावनी देती रहती है। पहले हम जीभ के चटोरेपन के कारण आवश्यकता से अधिक खा लेते हैं या फिर वे खाद्य खाते हैं जिनका हमें परहेज करना चाहिए। उन्हें खाकर बीमार पड़ते हैं।
          इस वायु के कुपित हो जाने पर बीज फल के रूप में परिणत नहीं हो पाते। ऋतुओं के क्रम को भी वायु ही बिगाड़ती है।
           हमारे गलत रहन-सहन का कारण होता है वायु प्रदूषण। हम अपने सुविधा पूर्वक आवागमन के लिए विभिन्न प्रकार के वाहनों का प्रयोग करते हैं जिसके कारण नित्य वायुप्रदूषण बढ़ता रहता है। अपनी जरूरत की वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए फैक्टरियाँ लगाते हैं जिनका धुँआ भी वायु को दूषित करता है। अपने घरों और दफ्तरों आदि को सुरक्षित करने और उन्हें सजाने तथा दैनन्दिन आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु कागज के लिए हम पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई करते जाते हैं जो वायु को दूषित करने का प्रमुख कारण बन जाता है। इस प्रदूषित वायु से हम रोगों को आमन्त्रण देते हैं।
         इस प्रकार शरीर और वातावरण दोनों ही प्रकार की वायु को दूषित करके हम रोगों की चपेट में आ जाते हैं। तब हम डाक्टरों के पास जाकर अपना समय और धन दोनों बरबाद करते हैं।
          वायु का स्थान ईश्वर के समान है। यह अव्यय भी है और अविनाशी है। यह प्राणियों की उत्पत्ति और विनाश का कारण है। वायु जीवों के सुख और दुख का कारण कही जा सकती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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