शनिवार, 5 अगस्त 2017

सफलता मिलने पर विनम्रता

इन्सान को हर परिस्थिति में सदैव प्रसन्न रहने का प्रयास करना चाहिए। सफलता मिले अथवा असफलता, हर परिस्थिति से शिक्षा लेकर या सबक लेकर उसे आगे बढ़ने का अभ्यास करना चाहिए। यहाँ मैं यही कहना चाहती हूँ कि अपनी सफलता की प्राप्ति पर उसे खुश अवश्य होना चाहिए और अपनी ख़ुशी अपने बन्धु-बान्धवों के साथ बाँटनी भी चाहिए। परन्तु सन्तुष्ट होकर, हाथ-पर-हाथ रख करके नहीं बैठ जाना चाहिए। सफलता के लिए मनुष्य को निरन्तर प्रयत्नशील बने रहना चाहिए।
          इसका एक विशेष कारण यह है कि मिलने वाली हर छोटी या बड़ी उपलब्धि को प्राप्त करने के बाद यदि मनुष्य सन्तुष्ट होने लग जाएगा तो उसकी उन्नति का मार्ग निश्चित ही अवरुद्ध हो जाएगा। इसलिए अधिकाधिक सफलताओं को उसे अपने खाते में जोड़ लेना चाहिए। एक के बाद एक सफलता के सौपानों पर अनवरत चढ़ने वाले किसी भी मनुष्य को अपने से कहीं पीछे छूट गए अथवा नीचे खड़े हुए लोगों का तिरस्कार करने का अधिकार कदापि नहीं मिल जाता।
        उस अवस्था में उसका यह महत कर्तव्य बनता है कि उन लोगों को सफलता की ओर आगे बढ़ने के लिए वह प्रोत्साहित करके अपने मानवता के गुण को साकार करे। हर मनुष्य का नैतिक दायित्व बनता है कि वह अपने साथ दूसरों के विषय में भी सोचे। यदि मनुष्य अपने सच्चे मन से और निस्वार्थ भाव से ऐसा कर पाता है तो चारों दिशाओं में उसका यश निस्सन्देह प्रसरित है। समाज उसे शीघ्र ही अपना पथ-प्रदर्शक स्वीकार कर लेता है।
         इसका अर्थ यह भी कर सकते हैं कि नित्य प्रति मैडल या तमगे बटोरने वालों को सदा ही सिर झुका करके उन्हें प्राप्त करना होता है। यदि वे वहाँ अकड़कर खड़े हो जाएँ तो उन्हें वैसा करने नहीं दिया जाएगा और सर्वत्र उनकी निन्दा होगी। इसलिए ऐसे सफल मनुष्य को सदा ही विनम्र बनना चाहिए। वह फलदायी महान वृक्ष की तरह जितना अधिक झुकेगा यानी विनम्र बनेगा, सफलता रूपी फल उसे उतने ही अधिक मिलेंगे। दूसरों के साथ साथ वह अपना मनोबल भी बढ़ाता रहेगा। इस तरह उसके लिए अनजाने ही एक पंथ और दो काज वाली स्थिति बन जाती है।
         मनीषी हमें समझाते हुए कहते हैं -
          नमन्ति फलिनो वृक्षा: नमन्ति गुणिनो जना:।
          शुष्कवृक्षाः   मूर्खाश्च  न   नमन्ति   कदाचन॥
अर्थात फलों से लदे वृक्ष झुकते हैं और गुणीजन झुकते हैं या विनम्र होते हैं। इसके विपरीत सूखे पेड़ या ठूँठ और मूर्ख मनुष्य कभी नहीं झुकते।
        यह श्लोक स्पष्ट बताता है कि मनुष्य का सबसे प्रमुख गुण विनम्रता है। मनुष्य जब तक जीवित है और संवेदनशील है उसे विनम्र होना चाहिए। अकड़कर रहने का काम मुर्दों के लिए छोड़ देना चाहिए क्योंकि उस समय वह खाली हाथ होता है।
         जब कभी मनुष्य असफलता का मुँह देख ले, तो निराश होकर अथवा गुमनमी के अँधेरों में सदा के लिए खो नहीं जाना उसके लिए उचित नहीं है। स्मरणीय है यह बात कि परिश्रम करने वालों की कभी हार नहीं होती। सफलता को अन्ततः उनके पास आना ही पड़ता है। छोटी-सी चींटी का उदाहरण हमेशा याद रखना चाहिए कि बार बार हारने के बाद वह सफल हो जाती है। हम तो फिर विवेकी मनुष्य हैं।
         सफलता छोटी अथवा बड़ी नहीं होती है बल्कि महत्वपूर्ण होती है। मनुष्य द्वारा किए गए ईमानदार अथक परिश्रम का वह परिणाम होती है। केवल भाग्य के भरोसे रहकर, निठ्ठले बैठकर सफलता को कदापि प्राप्त नहीं किया जा सकता। यथायोग्य कर्म करके अपने मनोवाञ्छित फल को हाथ बढ़ाकर पा सकते हैं। अतः मनुष्य को अपने जीवन में मुस्कुराहट लाने के लिए अपने पराक्रम पर सदैव भरोसा रखना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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