सोमवार, 16 सितंबर 2019

ईश्वर सदा सहायक

मनुष्य जब दुखों, संकटों के बादलों से घिर जाता है। उसे अपने चारों ओर घटाटोप अन्धकार की मोटी चादर बिछी हुई दिखाई देती है। यह वह समय होता है, जब उसकी अपनी परछाईं भी उसका साथ छोड़ देती है। तब उसे ऐसा प्रतीत हो कि दुनिया के सारे दरवाजे बन्द हो गए हैं, उस समय भी एक दरवाजा ऐसा होता है, जो उसके लिए कभी बन्द नहीं होता। वही एक दरवाजा होता है उस ईश्वर का, जो हर प्राणी के लिए अहर्निश खुला रहता है।
         मनुष्य को सदा उस मालिक से ही अपनी सारी आशाएँ पूर्ण होने की इच्छा रखनी चाहिए, इस दुनिया से नहीं। वह प्रभु बिनमाँगे हमारी सभी कामनाएँ पूरी करता है। दुनिया के लोगों से माँगने जाओ, तो वे हिकारत की नजर से देखते हैं। उल्टे-सीधे बहाने बनाकर मना करने में ही अपना भला समझते हैं। वे भूल जाते हैं कि इस समाज से वे बहुत कुछ लेते हैं। इसलिए समाज के लोगों की भलाई करना उनका कर्त्तव्य है। यदि कभी सहायता करेंगे तो दस जगह गाएँगे। वे मनुष्य को उसके छोटेपन का अहसास करवाते हैं। वह प्रभु सदा झोलियाँ भरकर नेमतें देता है और किसी पर कोई अहसान नहीं जताता।
         ईश्वर की दृष्टि में सभी लोग बराबर है। वह मालिक सज्जन-दुर्जन, छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, गोरे-काले यानी सभी के साथ समानता का व्यवहार करता है। इसी प्रकार वह अपराधी और शरीफ सबको क्षमा कर देता है। वह सज्जनों की परीक्षा लेकर उन्हें और ऊँचाइयों पर पहुँचाता है। तथावत वह दुर्जनों को सुधरने के पर्याप्त अवसर देता है। जब वे अवसरों को बार-बार खोते रहते हैं, तब उन्हें माता, पिता और गुरु की तरह सबक सिखाता है।
           मनुष्य कितना भी परेशान हो, वह ईश्वर उसकी दाल बनकर सदा उसे सम्हाल लेता है। वह मनुष्य को दरबदर की ठोकरें खाने से बचने का भरसक प्रयास करता है। फिर भी यदि मनुष्य न सम्हलने की कसम खा लेता है, तो भी वह उसका हाथ नहीं छोड़ता। उसे सुधारने का भरपूर  प्रयत्न करता रहता है। इस संसार का कोई व्यक्ति हो, तो वह कब की ठोकर मार देता है। यही उस परमपिता परमात्मा और आम मनुष्य में अन्तर होता है। मनुष्य शीघ्र ही धैर्य खो देता है, पर वह प्रभु परम धैर्यशाली है।
         इस असार संसार में मनुष्य अपने जीवनसाथी के न रहने से, तलाक हो जाने से, माता-पिता के अति व्यस्त रहने से, शारीरिक कारणों से या वृद्धावस्था आदि बहुत से कारणों से अकेला हो जाता है। ईश्वर हमेशा उसके साथ उसका सहारा बनकर खड़ा रहता है। फर्क बस इतना है कि मनुष्य यह समझ नहीं पाता। अकेलेपन के नाम पर मनुष्य रोता रहता है, दुनिया को कोसता है, ईश्वर को लानत-मलानत करता रहता है।
        मनुष्य को हर असफलता पर उदास होने या रोने-झींकने की आदत बन गई है। वह उस स्थिति में हारकर, निराश होकर बस उठापटक करने लगता है। वह कभी यह नहीं समझ पता कि ईश्वर सदा उसके आसपास ही रहता है। जैसे छोटे बच्चे को उसकी माता चाहे दिखे या न दिखे, पर वह सदा उसके पास ही रहती है। सिर्फ नजर उठाकर देखने की आवश्यकता होती है। वह जगज्जननी उसकी सुरक्षा के लिए सदा बाहें पसारे तैयार रहती है।
         मनुष्य भौतिक रिश्तों से हर प्रकार की सहायता की अपेक्षा करता है। उनकी ओर बड़ी ही हसरत से देखता है। पर उस जगन्माता को वह बिसरा देता है, बिना इस विश्वास के कि न दिखते हुए भी वह उसके आसपास ही है। जब तक मनुष्य पूर्णरूप से उसकी सत्ता पर विश्वास नहीं करेगा, तब तक वह भटकता ही रहेगा। जब वह उसको स्वयं को पूर्णरूपेण सच्चे मन से समर्पित कर देता है, तो सचमुच उसका बड़ा पर हो जाता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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