गुरुवार, 26 सितंबर 2019

सब प्रभु का

कहने मात्र के लिए इस संसार में सब कुछ हमारा है। हमारे माता-पिता, भाई-बन्धु, नाते-रिश्तेदार सभी हमारे हैं। परिश्रम से अर्जित धन-वैभव, उच्च शिक्षा, योग्य सन्तान, गाड़ी-बंगला, यह सम्माननीय पद भी तो हमारे अपने हैं। देखा जाए तो ये सब हमें पूर्वजन्मों के पुण्यकर्मों के कारण कुछ निश्चित समय के लिए मिलते हैं। उसके पश्चात ये सभी हमारी आँख बन्द होते ही पराए हो जाते हैं।
          ये सभी हमारे होते हुए भी हमारे नहीं हैं। यह एक गहन रहस्य है, जिसकी खोज मनुष्य को करनी है। उसे इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ निकलना है, जो मानो तो बहुत ही कठिन है। इसका उत्तर उसे न जंगलों में भटकने से मिलेगा, न तथाकथित गुरुओं के पास मिलेगा, न तान्त्रिकों-मान्त्रिकों के पास मिलेगा और न ही तीर्थों की खाक छानने से मिलेगा। अपने घर में शान्त मन से बैठकर ईश्वर का ध्यान लगाने पर मिलेगा।
        असार संसार में मनुष्य का अपना कुछ भी नहीं है। जो भी उसके पास है, वह सब उस मालिक का आशीर्वाद है। इसी सत्य को उजागर करती हुई, कहीं पढ़ी गई इस बोधकथा को संशोधन के साथ प्रस्तुत कर रही हूँ।
        एक बार श्रीकृष्ण एक भक्त के घर स्वयं पधारे। भक्त से भगवान ने पूछा, "ये घर किसका है?"
        भक्त बोला, "प्रभो, आपका है।"
        भगवान ने पूछा "यह सुन्दर-सी गाड़ी किसकी है?"
       भक्त ने उत्तर दिया, "आपकी है मेरे दाता।"
         फिर श्रीकृष्ण ने हर एक वस्तु के बारे में उस भक्त से पूछा। भक्त का एक ही उतर होता, "आपकी है मालिक।"
          यहाँ तक घर के हर सदस्य के लिए पूछा, तब भी भक्त का वही जबाब होता, "आपके हैं दाता।"
         उन्होंने उससे पूछा, "तेरा यह शरीर किसका है?"
         इस पर भी भक्त ने कहा, "आपका है मेरे मालिक।"
         फिर घर के पूजा स्थान पर जाकर श्रीकृष्ण जी ने अपनी तस्वीर की ओर इशारा करते हुए पूछा, "यह किसकी तस्वीर है?"
          भक्त की भक्ति की पराकाष्ठाअब देखिए। भक्त अपनी आँखों में आँसू लिए हुए बोला, "बस यही मेरे हैं, बाकी सब आपका है भगवन।"
          मनुष्य का यह शरीर भी उसका अपना नहीं है। वह भी किराए का है। जब उसमें से प्राण निकल जाते हैं, तब उसके मेहनत से बनाए घर में उसके प्रियजन नहीं रखने देते। उसकी अपनी कहि जाने वाली यह धन-दौलत, उसका मन और प्राण सब कुछ उस प्रभु का है। इस संसार में मनुष्य का कुछ भी नहीं है, पर फिर भी मेरा-मेरा करते हुए वह नहीं थकता।
        सारा समय  वह अपनी त्योरियाँ चढ़ाकर नखरे से बात करता है, मानो वह बात करके दूसरों पर कोई अहसान कर रहा हो। उसे यह नहीं पता कि अभी घमण्ड में चूर वह आसमान पर उड़ रहा है और अगले ही पल उसकी डोर कटने वाली है। तब वह कहीं का भी नहीं रह जाएगा। उसे पानी देने वाला भी कोई नहीं रहने वाला होगा। अतः मनुष्य को हर कदम फूँक-फूँककर रखना चाहिए।
           मनुष्य को अपनी हर वस्तु यानी धन-वैभव, सुन्दरता, जवानी, ज्ञान, उच्च पद आदि सबका अहंकार छोड़कर प्रभु की ओर ध्यान करना चाहिए। उसी की शरण में जाना चाहिए। उसे सदा यह स्मरण रखना चाहिए कि वह ईश्वर के हाथों की मात्र एक कठपुतली है। जब चाहे वह उसकी डोर को कस सकता है और जब चाहे उसे ढीला छोड़ सकता है। मालिक चाहे तो वह सभी कार्य कर सकता है, अन्यथा अपना हाथ भी नहीं हिला सकता।
चन्द्र प्रभा सूद
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