शनिवार, 15 अगस्त 2020

गुणी की परख

 गुणी की परख

गुणों की परख उसके पारखी यानी गुणवान को होती है। जिस प्रकार हीरे का मूल्य एक जौहरी जानता है, अन्य कोई साधारण मनुष्य उसको नही पहचान सकता। आम जन के लिए हीरे और पत्थर में कोई अन्तर नहीं होता। उसी प्रकार एक गुणवान व्यक्ति की पहचान कोई गुणी व्यक्ति ही करने में समर्थ हो सकता है। अन्य कोई अल्पज्ञ मनुष्य उसका मूल्य कदापि नहीं जान सकता।
           कवि ने निम्न श्लोक में इसी बात को उदाहरण सहित समझाया है-
       गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणो
             बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बल:।
       पिको वसन्तस्य गुणं न वायस: 
              करी च सिंहस्य बलं न मूषक:॥
अर्थात् एक गुणी ही दूसरे गुणवान व्यक्ति को समझने में समर्थ होता है, निर्गुणी या मूर्ख नहीं। बलवान ही बली की समझ सकता है, निर्बल नहीं। वसन्त-ऋतु की पहचान करने की सामर्थ्य एक कोयल में ही होता है न कि कौए में। इसी प्रकार एक शेर की शक्ति का अनुमान हाथी को होता है, चूहे को नहीं।
           इस श्लोक में बताया है कि गुणी व्यक्ति के ज्ञान को समझ पाना निर्गुण या अल्पज्ञ या मूर्ख इन्सान नहीं समझ सकता। गुणवान को जानने-पहचानने के लिए उसी के जैसा विद्वान होना चाहिए। अन्यथा आम मनुष्य के लिए उसकी विद्वत्ता कोई मायने नहीं रखती। उन्हें उसकी बातें ही समझ में नहीं आएँगी। 
           एक गुणवान को अपनी योग्यता प्रमाणित करने के लिए एक विद्वत सभा की आवश्यकता होती है। जन-साधारण की सभा में वह असहज रहता है। वह कितनी भी सरल भाषा का प्रयोग करके लोगों को समझाने का प्रयास करे, व्यर्थ रहता है। यह तो वही बात हुई कि महात्मा जी के पास गए व्यक्ति से किसी ने पूछा, "महात्मा जी का भाषण सुनने गए थे? उन्होंने कैसा भाषण दिया?"
           श्रोता ने कहा, "महात्मा जी ने बहुत अच्छा भाषण दिया।" 
           फिर उससे पूछा,"महात्मा जी ने उपदेश में क्या कहा?"
           उसने उत्तर दिया "जो कहा था अच्छा कहा था, पर मुझे यह पता नहीं कि उन्होंने क्या कहा था?"
         इस श्लोक में आगे बलवान और निर्बल के विषय में बताया है। शक्तिशाली व्यक्ति किसी को भी उठाकर पटक सकता है। उसकी शक्ति का अनुमान निर्बल व्यक्ति नहीं लगा सकता। यदि दुर्भाग्यवश वह उसे ललकार देता है, तो अपने ही हाथ-पैर तुड़वा बैठता है। शक्तिशाली का सामना कोई दूसरा शक्तिशाली व्यक्ति ही करे, तो ठीक रहता है दोनों बराबर के पहलवान होंगे, तो मुकाबला उचित होगा।
         वसन्त ऋतु की पहचान कोयल को होती है, कौए को नहीं। ऋतुमस यानी वसन्त ऋतु के आते ही चारों ओर खिले हुए फूलों की सुगन्ध वातावरण में फैल जाती है। वायु सुगन्धित हो जाती है। प्रकृति की छटा इस मौसम में देखते ही बनती है। ऐसे में यदि कोयल का मीठा स्वर सुनाई दे जाए, तो सोने पर सुहागा हो जाता है। कौवे को तो प्रकृति के इस सौन्दर्य से कोई लेना देना नहीं होता। उसे तो बस कर्कश ध्वनि में काँव-काँव करना होता है। इस तरह कोयल को वसन्त ऋतु की पहचान होती है।
           शेर की शक्ति का अनुमान हाथी को होता है, पर चूहा उससे अनजान रहता है। शेर और हाथी दोनों ही शक्तिशाली होते हैं। एक-दूसरे की शक्ति को पहचानते हैं। चूहा तो बेचारा एक तुच्छ-से जीव होता है। वह उन दोनों की शक्ति के विषय में क्या जाने? यदि शेर और हाथी भिड़ जाएँ, तो कुछ परिणाम निकल सकता है। चूहा बेचारा उससे क्या टकराएगा? वह तो अपने प्राणों से ही हाथ धो बैठेगा।
           इस प्रकार समान गुणों वाले ही एक-दूसरे को समझने अथवा परखने की सामर्थ्य रखते हैं। तराजू का एक पलड़ा भारी हो और दूसरा हल्का, तो सौदा कभी बराबरी का नहीं हो सकता। उस समय एक पक्ष को हानि होती है और दूसरे पक्ष को लाभ होता है। इससे झगड़े की गुँजाइश बनी रहती है। अतः उन दोनों पक्षों का एकसमान होना आवश्यक होता है।
चन्द्र प्रभा सूद

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