शनिवार, 29 अगस्त 2020

असहायों की सेवा

असहायों की सेवा

किसी दिन-दुखी का सहायक बनना बहुत ही पुण्य का कार्य होता है। स्वार्थवश तो लोग एक-दूर से जुड़ते हैं, परन्तु बिना किसी स्वार्थ के रोगियों, असहायों और अनाथों की सहायता करना, वास्तव में एक महान कार्य कहलाता है। यदि समाज के इस वञ्चित वर्ग को ठुकरा दिया जाएगा, तो फिर कौन इनकी सुध लेगा? कौन इनका सहारा बनेगा? ये प्रश्न मन को मथने के लिए पर्याप्त हैं।
            निम्न श्लोक में महर्षि वेद व्यास महाभारत में कहते हैं-   
एकत: क्रतव: सर्वे सहस्त्रवरदक्षिणा।
अन्यतो रोगभीतानां प्रााणिनां प्रााणरक्षणम्।
अर्थात् यानी एक ओर विधिपूर्वक सब को अच्‍छी दक्षिणा दे करके किया गया यज्ञ कर्म और दूसरी तरफ दुखी और रोग से पीडि़त मनुष्‍य की सेवा करना, ये दोनों कर्म उतने ही पुण्‍यप्रद हैं। 
           महाभारत के इस श्लोक का तात्पर्य यह है कि यज्ञ करना और दुखियारों की सेवा करना, दोनों की पवित्रता एक बराबर है। ये हमारे शास्‍त्रों ने हमें सिखाया है। किसी रोगी की सेवा करना, जरूरतमन्द की सहायता करना अथवा किसी के प्राण संकट में हों, उसकी मदद करना इत्यादि कार्य करने वाले को उतना ही पुण्य मिलता है, यज्ञ करने से मिलता है। ऐसे कार्य पुण्यकार्य कहलाते हैं।
          इतना सब समझाने पर भी लोग असहायों की सहायता करने से कतराते हैं। प्रायः लोग सोचते हैं कि यह उनका दायित्व नहीं है। पर वे भूल जाते हैं कि बूँद-बूँद से घट भर जाता है। थोड़ा-थोड़ा सहयोग सभी लोग करें तो बहुत कुछ हो सकता है। कई लोगों की जिन्दगी सँवर सकती है। वे योग्य बनकर समाज की मुख्य धारा में सम्मिलित हो सकते हैं। ऐसे वे समाज के योगदान को कभी नहीं भूलेंगे।
          दीनबन्धु एण्ड्रूज सच्चे अर्थों में गरीब, दुखी और बेसहारा तथा दुर्दशाग्रस्त लोगों के सच्चे मित्र थे। इसीलिए लोग उन्हें दीनबन्धु कहकर पुकारते थे। वे महात्मा गांधी के सहायक भी थे। असहाय भारतीयों के लिए त्याग करने वाले इस विदेशी महान आत्मा को भारत श्रद्धा से नमन करता है । उनके असहाय भारतीयों के लिए किये गए कार्य सचमुच ही महान थे। इनके अतिरिक्त मदर टेरेसा का नाम भी लोग बहुत श्रद्धा से लेते हैं। उन्होंने अनेक अनाथों, दुखियों और असहायों की निस्स्वार्थ सेवा की।
          कई सामाजिक संस्थाएँ इन लोगों की सहायता करती हैं। कुछ गिने चुने लोग भी इस शुभ कार्य हेतु प्रयासरत हैं। परन्तु उनकी गिनती अभी कम है। इन लोगों के लिए अभी बहुत कुछ करना शेष है। इनके उत्थान के लिए सरकारी योजनाएँ तो कई हैं। पर केवल सरकारी सहायता पर निर्भर नहीं रह जा सकता। सरकार के पास बहुत कार्य करने के लिए होते हैं। स्वयंसेवी संस्थाओं को आगे आकर इनके लिए कुछ करना होगा।
           मनुष्य का दुर्भाग्य होता है कि उसे दिन-हीन अवस्था में रहना पड़ता है। उसके पूर्वजन्म कृत कर्म उसकी इस हालत के लिए जिम्मेदार होते हैं। उनका प्रारब्ध उनका साथ नहीं देता। उन्होंने जैसा किया है, उसका फल ये भोग रहे हैं कहकर हम अपने दायित्व से बच नहीं सकते। उन्होंने तो जो किया, वे उसे भोग रहे हैं परन्तु यदि उनकी इस अवस्था में उनके लिए कुछ भी कर सको, तो हर मनुष्य को योगदान करना चाहिए।
          ईश्वर का एक नाम दीनबन्धु भी है। वह दीनों की हर सम्भव सहायता करता है। उसके बनाए इन जीवों पर जो दया दिखाता है, ईश्वर उनसे प्रसन्न रहता है। वह चाहता है उसके बनाए किसी भी मनुष्य से लोग घृणा न करें बल्कि सहृदयता से पेश आएँ। जैसे वह सबको समान दृष्टि से देखता है, वैसा ही सब अनुसरण करें। इसीलिए वेद व्यास जी ने कहा है कि भरपूर दक्षिणा देकर पूर्ण हुए यज्ञ का जो फल होता है, वही असहायों की सेवा का पुण्य होता है।
चन्द्र प्रभा सूद

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