गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020

पति-पत्नी में विश्वास

 पति-पत्नी में विश्वास

घर-परिवार का आधार पति और पत्नी दोनों ही होते हैं। इनके सम्बन्धों में परस्पर विश्वास और पारदर्शिता का होना बहुत ही आवश्यक होता है। जब तक ये दोनों एक-दूसरे के प्रति समर्पित भाव से रहते हैं, तब तक इनकी गृहस्थी की गाड़ी बहुत ही सुन्दर ढंग से चलती रहती है। यदि इनमें से एक भी मनमानी करने लगे अथवा टेढ़ी चाल चलनी लगे, तब गृहस्थी में धीरे-धीरे घुन लगने लगता है।
          पति-पत्नी के रिश्ते लम्बे समय तक प्रेमपूर्वक तभी चलते हैं, जब वे दोनों विश्वास की मजबूत डोर से बँधे रहते हैं। उन दोनों में दो जिस्म एक जान वाला रिश्ता होना चाहिए। घर में पति कहे कि वह कमाता है, तो धन पर उसका अधिकार है। वह जैसे चाहे उसे खर्च करे। पत्नी कहे कि वह कमाती है, तो धन उसका है। वह उसे घर में खर्च नहीं करेगी। इस तरह तो गाड़ी नहीं चलती।
           पति-पत्नी जब तेरे और मेरे की बोली को छोड़कर हमारे वाली भाषा बोलने लगें, तब जाकर उनके रिश्ते मजबूत होने लगते हैं। इसका यही अर्थ होता है कि उन दोनों में एक गहरी सोच पनपने लगी है। ऐसी गृहस्थी में कलह-क्लेश नहीं होता। यहाँ प्यार का साम्राज्य होता है। यह बात दोनों को सदा याद रखनी चाहिए कि पति और पत्नी का रिश्ता रक्त सम्बन्ध नहीं होता। इसे आपसी सूझबूझ से दृढ़ बनाया जा सकता है।
          किसी कवि ने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पति के द्वारा किए गए विश्वासघात के विषय में कहा है-
कलत्रं  पृष्टतः कृत्वा  रमते  यः  परस्त्रियः।अधर्मश्चापदस्तस्य  सद्यः  फलति  नित्यशः।
अर्थात् अपनी पत्नी के पीठ पीछे छिपकर जो व्यक्ति दूसरों की स्त्रियों से अनैतिक प्रेमसम्बन्ध बनाते हैं, अपने  इस अधार्मिक कृत्य के फल स्वरूप वे शीघ्र ही  सदा के लिये आपदाग्रस्त हो जाते हैं।
           पत्नी से छिपकर किसी भी कारण से पुरुष यानी पति जब विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाता है, तब वह उसी ही समय अपनी गृहस्थी में विष घोलने का कार्य करने लगता है। सयाने कहते हैं-
     इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते।
पति चाहे कितना भी यत्न कर ले, यह सम्बन्ध कभी न कभी मुखर हो उठता है। उस समय आपसी विश्वास की धज्जियाँ उड़ जाती हैं।
          यह सत्य है कि जितना पुरुष इस नाजायज सम्बन्ध के लिए दोषी होता है, उतनी ही दोषी वह स्त्री भी होती है, जो इसमें बराबर की भागीदार होती है। ऐसी स्त्री की स्वयं की गृहस्थी को बर्बाद होने से कोई नहीं बचा सकता। इस प्रकार ये लोग दो-दो घरों के बिखराव का कारण बनते हैं।नित्य प्रति होने वाले झगड़ों के कारण घर टूटने की कगार पर पहुँच जाते हैं। जिसके लिए दोषी वे स्वयं होते हैं।
           पति अथवा पत्नी किसी एक की गलती के कारण घर टूटने की कगार पर आ जाता है। उन लोगों का परस्पर सम्बन्ध विच्छेद होने पर उनके मासूम बच्चे पिसते हैं, जिनका कोई दोष नहीं होता। वे दोनों तो शायद अपनी-अपनी जिन्दगी में आगे बढ़ जाते हैं, पर उनके बच्चे वहीं कहीं पीछे छूट जाते हैं। वे बेचारे आगे नहीं बढ़ पाते। माँ के पास रहते हैं, तो पिता की याद में तड़पते हैं। यदि पिता के पास रहते हैं, तो माँ की याद में ये आँसू बहाते हैं।
           यदि पति-पत्नी दोनों फूँक-फूँक कर अपना कदम बढ़ाएँ, तब इस समस्या से बचा जा सकता है। दोनों का ही जीवन एक खुली पुस्तक की तरह होना चाहिए। वे जब चाहें एक-दूसरे को सरलता से पढ़ सकें। उन दोनों में किसी भी तरह का कोई छिपाव-दुराव नहीं होना चाहिए। उन्हें अपने मोबाइल को लॉक करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। न ही उन्हें किसी के पीछे जासूस लगाने पढ़ें।
           मैं किसी और लोक की बात नहीं कर रही। बहुत से घरों में इस प्रकार का व्यवहार देखने को मिलता है। उन लोगों को देखकर बहुत प्रसन्नता होती है। यह तभी सम्भव हो सकता है, जब वे दोनों अपने इस रिश्ते के प्रति संवेदनशील हों। आपस में प्यार और विश्वास को बनाने के लिए दोनों ईमानदारी से प्रयत्न करें। तभी उन दोनों में विश्वास की महीन रेखा सुदृढ़ हो सकती है। अपनी गृहस्थी को आदर्श बनाने के लिए पति और पत्नी दोनों को मिलकर प्रयास करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद

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