शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

आश्चर्य की बात

आश्चर्य की बात

संसार में अनेक आश्चर्यजनक प्रतिदिन घटनाएँ घटती रहती हैं। जिन्हें देखकर और सुनकर लोग उन्हें अनदेखा और अनसुना कर देते हैं। उस समय मनुष्य यही सोचता है कि उसके साथ तो अमुक घटना नहीं घटी। वह इसलिए निश्चिन्त होकर रह जाता है। इसी कड़ी में एक जीवन सत्य की आज चर्चा करते हैं। अपने आसपास नित्य प्रति कई लोगों को मृत्यु का ग्रास बनते हुए सब लोग देखते हैं। फिर भी मनुष्य अपने में ही मस्त रहता है।
         महाभारत में एक प्रसंग आता हैं कि पाण्डव अपने तेरह-वर्षीय वनवास के दौरान एक वन में विचरण कर रहे थे। तब उन्होंने प्यास बुझाने के लिए एक बार पानी की तलाश की। उन्हें पास में एक जलाशय दिखा जिससे पानी लेने वे वहाँ पहुँचे। एक यक्ष उस जलाशय का स्वामी था। भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव उस यक्ष के प्रश्नों का उत्तर दिए बिना ही जल पीने चाहते थे। यक्ष ने उन्हें चेतावनी दी पर वे नहीं माने, तब उसने उन्हें बेहोश कर दिया। 
           अन्त में युधिष्ठिर स्वयं उस तालाब पर गए। उन्होंने यक्ष के प्रश्नों के उत्तर दिए। उस समय यक्ष ने उनसे एक प्रश्न पूछा, "संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात क्या है?"
           युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, "हर रोज आँखों के सामने कितने ही प्राणियों की मृत्यु हो जाती है, यह देखते हुए भी इन्सान अमरता के सपने देखता है। यही महान आश्चर्य है।"
           इस घटना का तात्पर्य यही है कि अपने सामने ही लोगों को मृत्यु के मुँह में जाते हुए देखते हैं। कुछ लोगों के संस्कार करने के लिए श्मशान घाट में भी जाते हैं। वहाँ पर कुछ समय के लिए ही मनुष्य को वैराग्य होता है, जिसे श्मशान वैराग्य कहते हैं। मनुष्य यह सोचता है कि उसका कुछ भी नहीं है। सब कुछ यहीं पर रह जाना है। मनुष्य इस संसार में खाली हाथ आता हैं और खाली हाथ ही इस दुनिया से विदा हो जाता है।
          यह वैराग्य मनुष्य को बस वहीं खड़े रहकर होता है। ज्योंहि वह श्मशान घाट से मृतक का संस्कार करके बाहर निकलता है, उसका ज्ञान कहीं खो जाता है। वह संसार की मोह-माया में भटक जाता है। वह अपने कार्य-व्यापार में सब कुछ भूलकर मस्त हो जाता है। उसे श्मशान की और वैराग्य की सारी बातें भूल जाती हैं। वह सोचता है कि जाने वाला तो चला गया है, पर वह यहाँ से नहीं जाएगा।
           मनुष्य सोचता है कि मानो वह इस संसार में अमर रहने के लिए ईश्वर से अपने लिए एक पट्टा लिखवाकर लाया है। वह इस संसार से कहीं नहीं जाने वाला। इसलिए वह दिन-रात अथक परिश्रम करके अकूत धन और वैभव का संग्रह करता है। हर प्रकार के शुभाशुभ कर्म करता है। किसी भी तरह सफल हो जाने की जुगत भिड़ाता है। स्वयं को सत्य सिद्ध करने के लिए वह तरह-तरह के बहाने गढ़ता रहता है। 
          मनुष्य तभी तक इस संसार में डेरा डालकर रह सकता है, जब तक उसके पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार उसकी आयु का निर्धारण ईश्वर ने किया है। न उससे एक पल अधिक और न ही उससे क्षण भर भी कम। मनुष्य को सदा यह सत्य याद रखना चाहिए। उसे यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वह सदा के लिए इस संसार में नहीं रहने वाला। एक दिन उसे यहाँ से विदा लेकर जाना ही होगा। 
           कबीरदास जी ने इस इस संसार की असारता के विषय में एक गीत लिखा है, जिसकी पहली पंक्ति है-
         रहना नहीं देश बीराना हैं।
मनुष्य जब इस अटल सत्य को आत्मसात कर लेता है, तब वह इस संसार में रहते हुए भी लिप्त नहीं होता। वह मोह-माया के जाल में अनावश्यक नहीं फंसता। अपने सभी कार्यों को ईश्वर को ही समर्पित करता रहता है।
           मनुष्य का जीवन पल-पल करके घटता जाता है। वैसे तो मृत्यु के लिए किसी आयु विशेष की बात नहीं होती। पर फिर भी एक पीढ़ी इस संसार से विदा लेती है, तो पीछे नई पीढ़ी तैयार रहती है। रहीम जी के दोहे में यही बात समझाई गई है-
माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥
अर्थात् माली को आते देखकर कलियाँ कहती हैं कि आज तो उसने फूल चुन लिए, पर कल हमारी भी बारी भी आएगी क्योंकि कल हम भी खिलकर फूल हो जाएँगे।
         यही एक शाश्वत सत्य इस संसार के लोगों के लिए आश्चर्य का कारण है।
चन्द्र प्रभा सूद

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