बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

पाँच प्राण

पाँच प्राण

मनुष्य के शरीर में जब तक प्राण रहते हैं, तब तक वह जीवन्त रहता है। इन प्राणों के शरीर से निकलते ही वह निष्प्राण हो जाता है। तब उसे लोग शव के नाम से पुकारते हैं। सभी बन्धु-बान्धव अपने उस प्रियजन को कुछ समय के लिए भी घर में नहीं रहने देते। श्मशान में ले जाकर उसका अन्तिम संस्कर कर देते हैं। मनीषी कहते हैं कि उसके बाद यह भौतिक शरीर पाँच तत्त्वों यानी पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश में जाकर मिल जाता है।
          प्राण ऊर्जा और तेज है, जो सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त है। प्राण उस प्रत्येक वस्तु में प्रवाहित होता है, जिसका अस्तित्व होता है। यह समस्त जीवन का आधार और सार है। प्राण भौतिक संसार, चेतना और मन के मध्य सम्पर्क सूत्र है। प्राण श्वास,ऑक्सीजन की आपूर्ति, पाचन, निष्कासन-अपसर्जन आदि बहुत से कार्य करता है। मनुष्य जब प्राण को नियन्त्रित करने का अभ्यास करता है, तब उसका शरीर और मन स्वास्थ्य व समन्वय को प्राप्त कर लेते हैं। 
            प्राण मुख्य रूप से पाँच कहे जाते हैं- प्राण, व्यान, अपन, उदान और समान। इनके विषय में चर्चा करते हैं-
प्राण -  प्राण मानव के शरीर को अनिवार्य ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है। स्वच्छ वायु स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक होती है। दूषित वायु से कई बीमारियाँ हो जाती हैं। हमारा स्वास्थ्य केवल बाह्य कारणों से प्रभावित नहीं होता है। स्वास्थ्य प्रतिरोधक शक्ति से अनुशासित होता है। दैनिक जीवन में योगाभ्यास हमारी जीवनी शक्ति को सुदृढ़ करता है। इसके लिए भस्त्रिका, नाड़ी शोधन और उज्जायी प्राणायाम किए जा सकते हैं।
अपान - यह नाभि से पैरों के तलवों तक यानी शरीर के निम्न-भाग को प्रभावित करता है। यह प्राण निष्कासन-प्रक्रिया को नियमित करता है। अपान पेट के निचले हिस्से को प्रभावित करता है- आंतों, गुर्दे, मूत्र मार्ग, टाँगों आदि सभी अपान प्राण की अवस्था का परिणाम होते हैं। अग्निसार क्रिया, नौलि, अश्विनी मुद्रा और मूलबन्ध विधियाँ अपान प्राण को मजबूत और शुद्ध करने का कार्य करती हैं।
व्यान - व्यान प्राण मानव शरीर के नाड़ी मार्ग से प्रवाहित होता है। इसका प्रभाव पूरे शरीर पर होता है। व्यान प्राण में कमी होने से रक्त प्रवाह में कमी, नाड़ी संचरण में खराबी और स्नायु सम्बन्धी गति हीनता होने लगती है। व्यान प्राण कुम्भक के अभ्यास से सुदृढ होता है। नाड़ी तन्त्र को प्रोत्साहित करता है। इस कुम्भक का अभ्यास करने के उपरान्त मनुष्य अच्छी तरह ध्यान लगा सकता है। 
उदान - उदान प्राण उच्च आरोही ऊर्जा है। यह हृदय से सिर और मस्तिष्क में प्रवाहित होती है। उदान प्राण कुण्डलिनि शक्ति के जाग्रत होने पर उसके साथ होता है। उदान प्राण के नियन्त्रित करने से शरीर इतना हल्का हो जाता है कि व्यक्ति में हवा में उठ जाने की योग्यता आ जाती है। जब उदान प्राण मनुष्य के नियन्त्रण में होता है, तब बाह्य बाधाएँ बाधा नहीं डाल सकती। श्वास व्यायाम का गहन अभ्यास जल पर चलने और आकाश में तैरने की स्थिति बन सकती है। यह व्यायाम नाडिय़ों और विचारों को शान्त करके एकाग्रता को बढ़ाता है तथा मनुष्य को स्व यानी आत्मा के सम्पर्क में ले जाता है।
समान - समान एक महत्त्वपूर्ण प्राण है। यह अनाहत एवं मणिपुर चक्रों को जोड़ता है।
यह आहार की ऊर्जा को सम्पूर्ण शरीर में वितरित करता है। जब योगी समान प्राण पर नियन्त्रण कर लेते हैं, तब उनके अन्दर शुद्ध ज्योति होती है। समान प्राण को पूर्ण करने से प्रभामण्डल से प्रदीप्त हो जाता है। यह अग्निसार क्रिया एवं नौलि के अभ्यास से सुदृढ़ होता है। संक्रमणशील बीमारी और कैंसर का प्रतिरोध करने की क्षमता को भी सुधारता है। समान प्राण को क्रिया योग से जाग्रत किया जा सकता है। इसका अभ्यास शरीर को गरम रखता है। 
          इसके अतिरिक्त पाँच उपप्राण कहे जाते हैं- नाग, कूर्म, देवदत्त, कृकल और धनञ्जय। ये शरीर के महत्त्वपूर्ण कार्यों को संचालित करते हैं। इन प्राणों का बिना मनुष्य का जीवन संचालित ही नहीं हो सकता। जब तक प्राण शरीर में रहते हैं, तब तक मनुष्य गतिशील बना रहता है। उसमें ऊर्जा व स्फूर्ति बने रहते हैं। इन प्राणों का बिना इस भौतिक शरीर का कोई मूल्य नहीं रह जाता। वह बस रख की ढेरी बनकर रह जाता है।
चन्द्र प्रभा सूद

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