बुधवार, 18 नवंबर 2015

बच्चे में चोरी की आदत

बच्चे को चोरी करने की गलत आदत यदि बचपन में ही पड़ जाए तो समझ लीजिए कि उनका जीवन बरबाद हो गया। यदि किसी बड़े के समझाने का उस पर असर हो गया तब तो सब ठीक अन्यथा अपने स्वयं तथा अपने घर-परिवार के लिए वह जीवन भर के लिए सन्ताप बन जाता है।
          बच्चे को कोई भी, कहीं भी आकर्षक वस्तु यदि दिखाई दे जाए जो उसके पास नहीं हो तो वह उसे पाने के लिए भरसक कोशिश करता है। अपने माता-पिता से उस वस्तु को खरीदकर देने की जिद करता है। यदि उनके पास उसे खरीदने की सामर्थ्य होती है तो उसे खरीद देते हैं अन्यथा कोई बहना बनाकर टाल देते हैं और फिर बच्चे को बहलाने का यत्न करते हैं। कभी-कभी माता-पिता को वह वस्तु अनावश्यक-सी लगती है। इसलिए भी वे मना कर देते हैं। पर बालमन की कौन कहे? बच्चे को तो जो भी अच्छा लगता है वह उसकी अल्मारी में सजा हुआ होना चाहिए। चाहे वह उसके किसी काम का हो या न हो। वह उस वस्तु से कभी खेले या सिर्फ लेकर छोड़ दे।
          यहीं से बच्चे के मन में किसी दूसरे की चीज को उठा लेने की भावना मचलने लगती है। यदि उस भावना को वहीं पर ही दबा दीजिए तो बच्चा सीख जाता है कि जो भी वस्तु वह देखेगा उसको खरीदना उसके लिए आवश्यक नहीं होता। परन्तु यदि बिना किसी को हवा लगे बच्चा किसी के घर से अपनी मनचाही वस्तु उठाकर लाता है और किसी को पता नहीं चल पाता तो उसका हौसला बढ़ जाता है। फिर दूसरी, तीसरी, चौथी बार भी जब उसकी चोरी के कारनामे का किसी को पता नहीं चलता तो वह इस कार्य में सिद्धहस्त  होने लगता है। यदि किसी की नजर में उसकी चोरी की हुई कोई चीज आ भी जाए तो वह कोई उल्टा-सीधा बहाना बनाकर झूठ बोल देता है।
        बहुधा ऐसा होता है कि स्कूल में अपने अमीर दोस्तों की नई-नई सुन्दर चीजें जो उसके पास नहीं होतीं देखकर वह भी कक्षा में अपना रौब गाँठने के लिए उन्हें पाना चाहता है। इसी प्रकार उन बच्चों के पास बहुत से पैसे देखकर उसे भी यही लगता है कि उसके पास ढेर सारे पैसै हों और वह भी अपनी मनपंसद चीजें कैन्टीन से लेकर खाए और उसे किसी के सामने नीचा न देखना पड़े। इन सब इच्छाओं को पूरा करने के लिए पैसों की जरूरत होती है। तब वह क्लास में चोरी करता है। घर में माता-पिता या किसी अन्य बड़ों के पर्स में से पैसे निकालने लगता है। यदि उससे कभी जेब से निकले पैसों के बारे में पूछ लिया जाए तो वह मासूम-सा बनकर सफेद झूठ बोल देता है।
           जिन रिश्तेदारों, सबंधियों अथवा अपने मित्रों के घर वह खेलने जाता है, वे सब उसकी इस आदत के कारण उसे अपने घर में नहीं आने देते। कोई-न-कोई बहाना बना देते हैं और उसे टाल देते हैं।
      उसकी चोरी करने की आदत के कारण उसके मित्रजन व कक्षा के साथी सभी उसे चोर कहकर अपमानित करते हैं। बारबार अपने लिए ऐसी तिरस्कार भरी बातें सुनकर वह और डीठ हो जाता है। इसमें आनन्द लेता हुआ वह धीरे-धीरे इस कुटेव का आदी बन जाता है।
         कोई भी माता-पिता या परिवारी जन यह नहीं चाहते कि उनके बच्चे में ऐसी बुरी आदत घर कर जाए। इसके लिए वे प्रयत्न भी करते रहते हैं परन्तु यदि उस बच्चे का दुर्भाग्य ही उसका साथ न छोड़े तो उनके किए सारे ही प्रयास धरे रह जाते हैं और वह मासूम बच्चा धीरे-धीरे अपनी इस लत के कारण समाज का शत्रु बन जाता है।
          बड़े होने पर वह पुलिस से बचने की जुगत भिड़ाता रहता है। उसमें हर बार तो सफल नहीं हो सकता। तब न्यायालय द्वारा दोषी करार दिए जाते हुए उसे हवालात के सींखचों के पीछे कैद होकर रह जाना पड़ता है। अपने इस दुष्कृत्य के कारण उन लोगो को अनजाने में सजा दे बैठता है जिनको इस सब से कोई लेना-देना नहीं होता।
चन्द्र प्रभा सूद
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