रविवार, 22 नवंबर 2015

बच्चे प्रातः कालीन सूर्य की तरह

बच्चे प्रात:कालीन सूर्य की तरह कोमल, ताजगी से भरपूर, मासूम और मनमोहक होते हैं। वे उस अवस्था में नव स्फूर्ति, नव जागृति, नव उल्लास आदि से भरपूर होते हैं। जिस प्रकार सूर्य रात के स्याह अंधेरा जो दुखों और कष्टों का प्रतीक हैं, उनसे मुक्त होकर मुस्कुराते हुए पूर्व दिशा से उदित होता है उसी प्रकार बच्चे अपने पूर्व जन्म के कर्मो को भोगकर, पुराने रोगी या वृद्ध शरीर को त्यागकर एक नए जीवन में प्रवेश करते हैं।
          बाल रवि की छवि सभी को बरबस आकर्षित करती है। उस समय लोग उसे अर्घ्य देकर अपने दिन का आरम्भ करते हैं। इस समय सूर्य दिन के आगमन का संदेश देता है। सारे वातावरण में हलचल मचने लगती है। सम्पूर्ण प्रकृति, मनुष्य, पशु और पक्षी आदि सभी अपने-अपने कार्यों में जुट जाते हैं।
          इसी प्रकार जब नए शिशु का जन्म घर-परिवार में होता है तब सर्वत्र हर्ष एवं उल्लास का वातावरण होता है। घर में आने वाले सभी आगन्तुकों को मिठाइयाँ खिलाई जाती हैं और एक-दूसरे को बधाई दी जाती है। वह नन्हा शिशु माता-पिता का सपना होता है जिसके माध्यम से वे अपने सभी अधूरे सपनों को पूरा करना चाहते हैं। उसे उनकी विरासत सम्हालने वाला 'घर का चिराग' कहा जाता है। वह नन्हा-सा मेहमान सबकी नजरों का केन्द्र होता है। उससे सभी परिवारी जनों को बहुत-सी आशाएँ होती है। 
         जैसे-जैसे सूर्य प्रात: से दोपहर तक का सफर तय करता है उसका मासूम-सा बालरूप मानों कहीं खो जाता है। उस समय वह किसी दूसरे ही नवीन रूप में दिखाई देता है। तब वह युवा सूर्य प्रचण्ड और तेजस्वी बन जाता है। उसकी ऊष्मा और तेज से सम्पूर्ण सृष्टि प्रभावित होती है। उसका ओज समस्त भूमण्डल पर दिखाई देता है। उसके उस विलक्ष्ण तेज से सबकी आँखे चुँधियाने लगती हैं। अर्थात कोई भी उससे आँख नहीं मिला सकता।
          बच्चा भी जब अपने बचपन से आगे युवावस्था की ओर बढ़ता है तब उसके स्वाभाविकता, सरलता, सहजता आदि गुण धीरे-धीरे कम होने लगते हैं और वह एक दूसरे ही नए इन्सान के रूप में बदलने लगता है। इस यौवनकाल में बच्चे के चेहरे पर अलग ही तरह का नूर होता है। उसका उत्साह देखते ही बनता है।
          इस समय वह अपने जीवन को एक नया रूप देने के लिए संघर्ष कर रहा होता है। तब वह आत्मविश्वास से भरा हुआ होता है और उसके चेहरे पर एक विशेष प्रकार का तेज चमकता हुआ दिखाई देता है। उस समय वह कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार होता है।
          बाल रवि की तरह एक छोटा बच्चा सबको अपनी बालसुलभ चेष्टाओं से मोहित करता है। उसके भोलेपन से पूछे गए प्रश्न उसकी जिज्ञासा को प्रकट करते हैं। एक स्थान पर कितने ही बड़े लोग बैठे हों वे सभी मिलकर भी वैसा खुशनुमा माहौल नहीं बना पाते जो एक बच्चा अपनी तोतली जुबान और मासूमियत से बनाता है। उसके चहकने से सब प्रसन्न होते है और उसके उदास होने पर सब उसकी चिरौरी करते हैं और उसे मनाने का यत्न करते हैं।
          बाल रवि की तरह बच्चे को बच्चा ही रहने दें। उसकी मासूमियत को उससे छीनकर अनावश्यक रूप से उसे बड़ा न बनाएँ। बड़ा होकर तो वह दुनिया के छल-प्रपंच देखा-देखी स्वयं ही सीख जाता है। जब तक वह भोला-भाला प्यारा-सा बच्चा है तभी तक वह राह चलतों को भी बरबस मोह लेता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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