सोमवार, 18 अप्रैल 2016

दीर्घसूत्रता त्यागें

दीर्घसूत्रता यानि आज का कार्य कल पर टालने की हमारी प्रवृत्ति के कारण ही हम कदम-कदम पर असफलता का मुँह देखते हैं। जिस कल की हम प्रतीक्षा करते रहते हैं, वह कल तो कभी आता ही नहीं है। किसी कार्य को करने की योजना जब एक बार बना ली तो फिर इस आलस्य का कारण समझ में नहीं आता।
          हमें चेतावनी देते हुए कवि ने इस दोहे में कहा है कि-
       कल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
       पल में परलय  होएगी  बहुरि  करेगा कब॥
अर्थात् जिस कार्य को कल करना चाहते हो उसे आज ही कर लेना चाहिए। जिस कार्य को आज करना चाहते हो उसे अभी कर लेना चाहिए। पलभर में प्रलय आ जाती है यानि प्राकृतिक आपदा के आ जाने पर जब  विनाश हो जाएगा तब फिर वह सोचा हुआ कार्य कब कर सकोगे?
        'लोकानन्दम्' ग्रन्थ में कवि ने इसी भाव के विषय में कहा है-
      श्व:  कार्यमेतदिदमद्य  परं   मुहुर्ताद्।
      एतत् क्षणादिति जनेन विचिन्त्यमाने॥
      तिर्यग्निरीक्षणपिशङ्गितकालदण्ड:।
      शङ्के हसत्यसहन: कुपित: कृतान्त:॥
अर्थात् यह कल करूँगा, इसे आज ही थोड़ी देर बार करूँगा और इसे तो क्षणभर में कर लूँगा। लोगों को इस तरह विचार करते हुए देखकर मैं सोचता हूँ कि असहनशील क्रुद्ध यमराज हाथ में काल का दण्ड लिए हुए और कटाक्ष निरीक्षण करते हुए उन पर हंसते हैं।
         कवि के कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य के जीवन का समय उसके पूर्वजन्म कृत कर्मो के अनुसार ईश्वर की ओर से मिलता है। हमारी नादानी या टालमटोल करने के स्वभाव के कारण आजकल-आजकल करता रहता है और पल-पल करके उसका जीवन कम होता जा रहा है। मृत्यु का देवता मनुष्य की इस मूर्खता पर हंसता है।
            हम सभी मनुष्य अपने आलस्य के कारण कार्य अभी करते हैं क्या जल्दी है? प्रात:काल कर लेंगे, सायंकाल करेंगे अथवा कल कर लेंगे, बस यही करते हुए अपना अमूल्य समय नष्ट करते नहीं थकते। समय बीत जाने के बाद सिर धुनने का लाभ नहीं होता। कहते हैं-
         'का वर्षा या कृषि सुखाने।'
अर्थात् जब फसल खराब हो गई तब वर्षा हो भी जाए तब उसका कोई लाभ नहीं अथवा बेकार हो जाती है। समय रहते यदि वर्षा हो जाती तो किसान का नुकसान न होता।
          बच्चा स्कूल में पढ़ता है तब वह वहाँ पढ़ाए गए पाठ को यदि प्रतिदिन दोहरा ले तो परीक्षा के समय उसे अतिरिक्त पढ़ाई करने की आवश्यकता ही नहीं रहती। पर वह तो मस्ती करता रहता है। सोचता है अभी खेल लूँ या अभी टी. वी. देख लूँ या दोस्तों के साथ चैटिंग कर लूँ या थोड़ा घूम लूँ, फिर पढूँगा। ऐसा करते रहने पर पढ़ाई पिछड़ जाती है और परीक्षा के समय जब पुस्तक खोलता है तो उसे कुछ समझ नहीं आता।
          इसी प्रकार हम उत्साह से योजनाएँ बनाते रहते हैँ और आज क्रियान्वित करेंगे या कल कर लेंगे ऐसा सोचते रहते है और फिर रेस में पिछड़कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेते हैं। फिर जब हानि उठाते हैं तब फिर दूसरों को कोसते हैं।
           दीर्घसूत्री सदा ही अपनी इस आदत के कारण परेशान रहता है। बस पकड़नी हो या रेल या जहाज हर स्थान पर भागते हुए पहुँचता है और कभी-कभी उसकी बस, रेल या जहाज छूट भी जाते हैं। अपने कार्यस्थल पर देर से पहुँचकर बास की डाँट खाता है। शादी-ब्याह व पार्टियों में देर से पहुँचकर लोगों के कटाक्ष सहन करता है।
           अपनी दीर्घसूत्रता का त्याग करके यदि हम लोग समय पर बीज बो सकें तो कोई कारण नहीं कि हमें असफलता का मुँह देखना पड़े।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter : http//tco/86whejp

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें