रविवार, 3 अप्रैल 2016

पति-पत्नी में अबोलपन

पति और पत्नी के बीच घर कर जाने वाला अबोलापन बहुत ही घातक होता है। इसकी अति हो जाने पर अलगाव की स्थिति तक बन जाती है जो घर-परिवार को टूटने के कगार पर पहुँचा देती है।
            वास्तव में पति और पत्नी के मध्य किन्हीं भी कारणों से जब चुप्पी पसरने लगती है, तब फिर यही चुप्पी धीरे-धीरे अबोलेपन को जन्म देती है। इसके चलते दोनों परस्पर एक-दूसरे से बात नहीं करना चाहते। यदि थोड़ी-बहुत बात उनके बीच होती भी है तो बहुत ही आवश्यक यानि जिसके बिना घर की गुजर-बसर नहीं हो सकती। जैसे बच्चों की कोई अहं समस्या अथवा किसी सम्बन्धी से सम्बन्धित चर्चा।
           ऐसी स्थिति में घर में फैली सन्नाटे की चादर बहुत त्रासदायक होती है। ऐसे माहौल में घर में रहने वालों का तो मानो दम ही घुटने लगता है। गम्भीर सोच को जन्म देता यह अबोलापन दिन-प्रतिदिन और और अधिक कड़वाहट घोलता रहता है। जो पक्ष अधिक सोचता है वह अधिक घुटन महसूस करता है। उसे घर का खालीपन मानो काटने को दौता है।
           अब हम इस दुखद परिस्थिति का विश्लेषण करते हैं। पति अथवा पत्नी में विचारों, खान-पान, विवाह से पूर्व के रहन-सहन में अन्तर होता है। परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि इस वैभिन्नय के कारण अपनी गृहस्थी को नरक बना दिया जाए।
           यह कहने से मेरा अभिप्राय है कि कुछ पत्नियों को शिकायत होती है कि उनके पति उन्हें बाहर घुमाने नहीं ले जाते, उन्हें खाना खिलाने के लिए किसी रेस्टोरेंट में नहीं ले जाते, शापिंग के लिए नहीं लेकर जाते, घर तथा बच्चों की ओर ध्यान नहीं देते। इसी तरह पतियों को भी ऐसी ही बहुत-सी शिकायतें अपनी पत्नियों से भी होती है। कभी वे इसे प्रकट कर देते हैं और कभी नहीं। फिर झल्लाहट भरा व्यवहार वे एक-दूसरे के साथ करने लगते हैं। जो किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया या जा सकता। इससे मन की दूरियाँ अधिक होने लगती हैं। जाने-अनजाने किए जाने वाले ऐसे व्यवहार से दोनों को यथासम्भव बचने का प्रयास करना चाहिए।
            इसका अर्थ यह कभी नहीं लगाया जा सकता कि उनमें आपस में प्यार नहीं है या वे एक-दूसरे को अनदेखा कर रहे हैं। हर व्यक्ति की अपनी-अपनी प्रकृति होती है। कुछ अपनी भावनाओं को व्यक्त कर देते हैं और कुछ लोग अपनी भावनाओं को मन में ही रखते हैं। इसे बदलना बहुत कठिन कार्य होता है। इस कारण अपने जीवन साथी को सदा अपने मित्रों और कार्यालय के साथियों सामने कोसते रहना अथवा लानत-मलानत करते रहना उचित नहीं होता।
            ऐसा व्यवहार करके दूसरे के समक्ष अपने साथी की छवि धूमिल कर रहे हैं। लोग इन स्थितियों का लाभ उठाने के लिए हमेशा तैयार बैठे रहते हैं।उन्हें तो बस मौके की तलाश रहती है। जहाँ मौका मिला वहीं वे क्रिकेट की बाल की तरह उसे लपक लेते हैं। ऐसे स्वार्थी मित्र या सम्बन्धी आग में घी डालने का कार्य करते हैं। इन घात लगाए बैठे लोगों से सावधान रहने के लिए अपने मन की बात इनसे नहीं करनी चाहिए।
          इस अबोलेपन का दुष्प्रभाव बच्चों पर भी पड़ता है। वे अपना उल्लू सीधा करने के लिए तत्पर रहने लगते हैं और उनके मन में बड़ों के प्रति आदर भाव कम होने लगता है। फिर धीरे-धीरे वे माता-पिता के प्रति उदासीन होने लगते हैं और उन्हें बस अपने मनबैंक से अधिक कुछ नहीं समझते जो उनकी जरूरतों को पूरा करने का एक माध्यम मात्र हैं।
            अपने साथी अथवा अपने घर की समस्याओं के विषय में आप स्वयं जानते हैं। बातचीत का रास्ता कभी भी, किसी भी स्थिति में बन्द नहीं करना चाहिए। जहाँ तक हो अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर आपसी मनमुटाव को यदि आपस में मिल-बैठकर सुलझाया जा सके तो बहुत अच्छा होता है। परन्तु यदि किसी कारण से अहं टकराने लगें और आपसी बातचीत से मामला न सुलझ पाए तब घर की सुख-शान्ति के लिए घर के बड़ों को विश्वास में लेकर चर्चा की जा सकती है। इससे उनको अपनी समस्या को सुलझाने में सहायता मिलती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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