गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

जिन्दगी जीना एक कला

जिन्दगी जीना एक कला है। वैसे तो अपना-अपना जीवन तो सभी चराचर जीव जीते हैं। कुछ लोग जिन्दगी में ऐसे कार्य कर जाते हैं कि वे युगों-युगों तक याद किए जाते हैं। उनके विपरीत ऐसे भी लोग हैं जो एड़िया घिसते हुए इस संसार से विदा हो जाते हैं। कीड़े-मकौड़ों की जीना कोई जीना नहीं कहलाता।
      जीवन उसी का सफल है जिसके जाने के बाद लोग उसे श्रद्धा और प्रेम से याद करें। जिन्दगी उसकी सफल है जिसकी मौत पर जमाना अफसोस करे। वरना इस असार संसार में हर किसी का जन्म मरने के लिए ही होता है।
           जिन्दगी जीना कभी भी किसी के लिए आसान नहीं होती इसे आसान बनाने के लिए अथक प्रयास करना पड़ता है। सौ पापड़ बेलने पड़ते हैं। दूसरों की गलतियों को नजरअंदाज करना होता है और कुछ लोगों को न चाहते हुए बर्दाशत करना पड़ता है। जीवन में जीतोड़ मेहनत करनी आवश्यक होती है। इसके साथ ही सही वक्त पर सही फैसले लेने होते हैं।
           जीवन में हर किसी को खुश कर पाना टेढ़ी खीर होती है। जिन्दगी बीत जाती है सबको खुश रखने के प्रयास करने में। जो लोग खुश हुए वे अपने नहीं थे। जो लोग अपने थे वे लाख कोशिशों के बाद भी खुश नहीं हो सके। आजकल रिश्ते रोटी की तरह गोल हो गए हैं, उनका ओरछोर ही समझ में नहीं आता। जरा-सी भी आँच बढ़ाने पर जैसे रोटी जल जाती है उसी प्रकार यदि रिश्ते न सम्हाले जाएँ तो तुरन्त बिखर जाते हैं।
       जीवन फूलों की सेज नहीं हैं, कदम-कदम पर काँटे बिछे रहते हैं। जीवन के हर मोड़ पर बहुत-सी मुश्किलें रास्ता रोककर खड़ी रहती हैं। मनुष्य को इसके लिए कभी शिकायत नहीं करनी चाह। भगवान ऐसा कुशल डायरेक्टर है जो सबसे कठिन रोल बेस्ट एक्टर को ही देता है। यानि कि हर व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार रोल देकर इस दुनिया में भेजता है।
       यह मानकर चलना चाहिए कि हमारा जीवन एक नाटक है। यदि हम दिए गए कथानक को ठीक से समझ लेंगे तो सदैव खुश रह सकते हैं अन्यथा नहीं। कोई भी व्यक्ति यहाँ किसी का अहसान नहीं लेना चाहता। उसे यही लगता है कि सारी जिन्दगी नजरें झुकाकर चलने से अच्छा है कि किसी का अहसान ही न लिया जाए। अपनी या दूसरों की नजरों से गिरकर कोई भी नहीं जीना चाहता।
          जिन्दगी हर मोड़ पर परीक्षा लेती है। यहाँ मुझे किसी फिल्मी गाने की यह पंक्ति याद आ रही है-
      जिन्दगी है खेल, कोई पास कोई फेल
      खिलाड़ी है कोई अनाड़ी है कोई।
जीवन में हार-जीत की चिन्ता किए बिना खेल भावना से उसे लेते हुए निरन्तर गतिशील रहना चाहिए।
उसका यही फलसफा है कि कोई चाहे या न चाहे मनुष्य को सबका साथ निभाना ही पड़ता है। इसका कारण है कि मनुष्य सामाजिक प्राणी है और वह पलभर भी अकेले रह नहीं सकता। उसे हर समय किसी-न-किसी सहारे की आवश्यकता पड़ती रहती है।
         जिन्दगी में क्या खोया क्या पाया, इसका हिसाब कभी रखा नहीं जा सकता। जो कुछ भी हम जीवन में खोते हैं, उसमें अपनी नादानी होती है और जो पाते हैँ वह प्रभु की कृपा ही होती है। इन्सान और ईश्वर के बीच बहुत ही खूबसूरत रिश्ता है। मनुष्य हर समय कुछ-न-कुछ माँगता रहता है और वह हम पर बिना अहसान किए बिनमाँगे ही हमारी झोलियाँ भरता रहता है। वह हमें मालामाल करता रहता है।
          जिन्दगी वही अच्छी होती है जिसके हर पृष्ठ पर प्रेम की प्रेरणा होती है। कहने का तात्पर्य यही है कि मनुष्य हर जीव से प्रेम करे। अपने सद्ज्ञान तथा विवेक से मार्गदर्शन लेते हुए इस जीवन को सफल बनाए।
चन्द्र प्रभा सूद
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