शनिवार, 30 अप्रैल 2016

बादलों से अठखेलियां

नीचे जमीन से
ऊपर आसमान पर
उड़ते और ऊँचे उड़ते
यह मन मेरा, मयूर-सा नाच रहा है।

सामने दिख रहे
मनभावन से इन
काले-सफेद बादलों को
उस पार जाकर छूना लेना चाहता है।

सफेद बादल
इस ओर मुस्काते
उस ओर काले बादल
इशारों से बुला रहे अपने पास हैं देखो।

उधर देखती हूँ
धूम्ररेख से धूमिल
धुँआते बादलों को
निहारते ही रह जाने का हसीन पल है।

सोच रही हूँ मैं
जहाज की खिड़की
खोलकर, जी भरकर
अठखेलियाँ कर लूँ इस मनसिज से।

यह स्वर्णिम
अवसर जीवन में
जब फिर आ पाएगा
तब-की-तब इठलाकर देखा जाएगा।

दूर गगन में
होड़ लगाते हुए
उन पक्षियों की मस्ती
आकर्षित कर रही है बरबस मुझको।

पंछियों के इस
निश्छल कलरव को
सुनकर चाहती हूँ मैं भी
अपना सुर इनके साथ मिला दूँ अपना।

पंख लगाकर
इनके साथ उड़ूँ
नीले आसमान को छूकर
मन की चाहत को कर पाऊँ अब पूरी मैं।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter : http//tco/86whejp

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