सोमवार, 15 अगस्त 2016

काँटे बोने वाले को फूल

मनुष्य इस संसार में शत्रु अथवा मित्र लेकर पैदा नहीं होता बल्कि यहाँ रहते हुए उनका चयन करता है। अपनी सहृदयता से, अपने सद् व्यवहार से वह किसी भी पराए को जीवन भर के लिए अपना बना सकता है। कठोर से कठोर व्यक्ति को मोम की तरह पिघला सकता है।
         इसके विपरीत नाक के बल के सामान अपने किसी प्रियजन अथवा किसी भी मित्र को क्षण भर में शत्रु बना सकता है। यह सब उसकी मानसिकता पर निर्भर करता है। मनुष्य को समझते हुए कबीरदास जी ने बड़े सुन्दर शब्दों में कहा है-
          जो तोको काँटे बोए ताको दीजो फूल।
          तोको फूल के फूल हैं व को हैं तिरसूल।।
इस दोहे का सार यही है की दूसरों का शुभ करते चलो। जो रास्ते में काँटे बिछाने का काम करता है उसे फूल दो। इसका कारण है की परोपकारी मनुष्य को अन्ततः फूल मिलते हैं पर दूसरे को कुदरत के न्याय के अनुसार त्रिशूल जैसे कष्ट मिलते हैं।
         ऐसा ही भाव हमने एक फिल्म में भी देखा था जहाँ अपने साथ शत्रुता करने वाले लोगों को संजय दत्त अपने साथियों के साथ जाकर फूल भेंट करते हैं।
        कहने का तात्पर्य यही है कि यदि मनुष्य थोडा-सा सहनशील होकर दूसरे की बुराई का उत्तर उसकी भाषा में न देकर, उसे क्षमा करता हुआ उसके साथ अच्छा व्यवहार करता है तो उसे उसका सुफल उसे अवश्य मिलता है। इसीलिए ऐसे महापुरुषों को समाज युगों तक याद करता है।
        दूसरों का हित चाहने वाले को वक्ती तौर पर दुःख या परेशान हो सकती है अथवा दूसरों के कोप का भजन बनना पड़ सकता है परन्तु अन्ततः जीत अच्छाई और सच्चाई की ही होती है। लोगों को समय बीतते स्वयं ही यह अहसास हो जाता है कि उन्होंने उस व्यक्ति विशेष को पहचानने में भूल कर दी है। अपनी इस गलती के लिए तब वे क्षमा याचना करने उसके पास आते हैं।
           इसी भाव को प्रकट करती हुए एक घटना जो वाट्सअप पर पढ़ी थी, उसे अपने अनुसार लिख रही हूँ।
        किसी व्यक्ति ने अपने लिए एक नया घर खरीदा जिसमें फलों के पेड़ लगे हुए थे। उसके पड़ौस में एक पुराना-सा मकान था जिसमें बहुत लोग रहते थे। एक दिन उसने देखा कि पडौस के मकान से किसी ने ढेर सारा कूडा उसके घर के बाहर दरवाजे पर डाल दिया है। शाम को एक टोकरी में ताजे फल रखकर वह पड़ौसी के घर गया।
          पड़ौसी उसे देखकर परेशान हो गए कि वह शायद उनसे सुबह की उस घटना के लिये झगड़ा करने आया होगा। दरवाजा खोलते ही वे हैरान हो गये कि जिसे वे भला-बुरा कह रहे थे वही चेहरे पर मुस्कान लिए रसीले ताजे फलों की भरी टोकरी के साथ सामने खडा था। उसने कहा- अपने पेड़ों के फल मैं आपके लिये लाया हूँ। कृपया इन्हें स्वीकार करें।
         इसमें कोई दोराय नहीं है कि मनुष्य अपने व्यवहार से किसी के हृदय में अपना स्थान बना सकता है। यदि मनुष्य के पास किसी को देने के लिए कुछ भी नहीं है पर अपनी गलतियों की माफी उसे स्वयं से ही माँग लेनी चाहिए। इस जीवन का कोई भी भरोसा नहीं है कि अगले पल उसकी ये आँख खुले-न-खुले।
        मनुष्य इस संसार को जो भी दूसरों को देता है वही उसे वापिस मिल जाता है चाहे वह प्यार हो या घृणा, खुशी हो या गम, नेकी हो या बदी।
       अपने हृदय को यदि विशाल बना लिया जाए तो सामने वाले की ओछी हरकत पर गुस्सा नहीँ आता अपितु उससे सहानुभूति होती है। मन ईश्वर से यही प्रार्थना करता है कि अमुक व्यक्ति को वह सद् बुद्धि दे।
       हमारी भारतीय परम्परा में तो काटने से मौत देने वाले विषधर यानी साँप को भी दूध पिलाने का विधान है। नागपञ्चमी के दिन लोग उसकी पूजा करके उसे दूध पिलाते हैं।
       इसलिए बुरे लोग अपनी बुराई नहीं छोड़ते तो अच्छे लोगों को अपनी अच्छाई किसी भी शर्त पर नहीं छोड़नी चाहिए। अपने व्यवहार के प्रति सदैव यत्नपूर्वक सावधान रहना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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