बुधवार, 24 अगस्त 2016

ज्ञान, धन व विश्वास

ज्ञान, धन और विश्वास इन तीनों का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्त्व है। इनके बिना मनुष्य का कोई मूल्य नहीं होता। ये तीनों वास्तव में उसके प्रिय और सच्चे मित्र हैं जो चौबीसों घण्टे उसके साथ ही रहते हैं। ज्ञान उसका मार्गदर्शन करता रहता है, धन उसकी दैनन्दिन आवश्यकताओं को पूर्ण करता है और उसकी विश्वास की पूँजी हर कदम पर उसकी सहायक बनती है।
          यदि इन तीनों के विषय में विचार करें और ढूँढने लगें तो सोचिए ये हमें कहाँ मिलेंगे?
        आज की परिस्थितियों में यह ज्ञान धार्मिक स्थलों और विद्या का मन्दिर कहे जाने वाले स्कूलों में मिलता है जहाँ इसका व्यापार किया जाता है। धर्म स्थलों में धर्म के ठेकेदार अपने ज्ञान का दुरूपयोग करते हुए जन साधारण को गुमराह करते हैं। उन्हें धर्म के नाम पर बाँटते हैं और मारकाट करवाते हैं। अपने विरोध में सिर उठाने वालों पर अत्याचार करते हैं और समाज में अनाचार फैलाते हैं। लोगों को अपरिग्रह का पाठ पढ़ाने वाले तथाकथित ज्ञानी विद्वान समाज को उल्लू बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहते हैं।
          बच्चों को विद्यालय में स्कूली शिक्षा यानी किताबी ज्ञान ही मिल सकता है। मोटी डोनेशन लेकर जहाँ दाखिला दिया जाता है और मोटी फीस लेकर पढ़ाई कराई जाती है, उन विद्यालयों और कालेजों में पढ़ने वाले छात्र सदा ही नियम-कानून को धत्ता दिखाते हैं। अपने अध्यापकों का भी सम्मान नहीं करते। व्यापारी मैनेजमेन्ट लूट-खसौट करने पर लगी रहती है और शिक्षक अपने व्यवसाय के प्रति दृढ़प्रतिज्ञ नहीं हैं। वे भी सदा अपना हितसाधक बने रहते हैं।
        ऐसे ज्ञान का दुरूपयोग किया जा रहा है जो मनुष्य का इहलोक और परलोक दोनों को संवारता है। यह सब हर संवेदनशील व्यक्ति को पीड़ा देता है।
         धन प्रायः उन अमीरों के पास मिलता है जो हर तरह की जुगत भिड़ाते रहते हैं। इसके लिए वे ईमानदारी, सच्चाई और नियम-कानून को ताक पर रख देते हैं। वे चोरबाजारी, भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोरी, धोखाधड़ी आदि को प्रश्रय देते हैं। इस क्रम में यदि किसी की पीठ मे छुरा घोंपना पड़े या जिस सीढ़ी से ऊपर चढ़े हैं उसे ठोकर मारकर गिराना पड़े तो वे कदापि परहेज नहीं करते। उनका उद्देश्य मात्र धन कमाना होता है और कुछ नहीं। जबकि यह धन केवल भौतिक सुख-सुविधाएँ खरीद सकता है परन्तु स्वास्थ्य, शान्ति, संस्कारी या आज्ञाकारी सन्तान, सहृदय बन्धु-बान्धव, रिश्तों में परस्पर विश्वास आदि को जीवन में नहीं खरीद सकता।
         विश्वास मनुष्य के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। एक बार यदि यह जीवन से निकल गया तो फिर कभी वापिस नहीं लौटता। आज के भौतिक युग में मानो विश्वास बेचारा तोड़ने के लिए ही होता है। हर रिश्ते को निभाने के लिए विश्वास बहुत आवश्यक होता है जिसका मान नहीं रखा जाता।
         आज बहुत से भाई, बहन, माता, पिता, पति, पत्नी, मित्र, पड़ौसी, नेता, अभिनेता एक-दूसरे के साथ विश्वासघात करने में परहेज नहीं कर रहे। वे तो दूसरे की आँख में धूल झौंककर बड़े खुश होते हैं। वचनबद्धता तो उनके लिए एक प्रकार से खिलवाड़ बनती जा रही है।
        मनुष्य किसी का विश्वास तोड़ता है अथवा कोई अन्य उसका विश्वास खण्डित करता है तो दोनों ही स्थितियों में उसे पुनः जमा पाना बहुत कठिन हो जाता है। यह विश्वास काँच की तरह होता है जो एक बार टूटकर बिखर जाता है तो उसे समेटना मुश्किल हो जाता है।
         ज्ञान, धन और विश्वास मनुष्य के परम मित्र हैं किन्तु जहाँ सावधानी हटी वहीं दुर्घटना घट जाती है। यानी मनुष्य को उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। इन तीनों के भरोसे मनुष्य चमत्कार करता है। समाज में अपना स्थान बनाता है। इनमें से किसी की भी कमी उसको सबकी नजरों से गिरा देती है। तब वह हीरे सा मूल्यवान होते हुए भी सबकी नजरों मे काँच की तरह बेकार हो जाता है जिसे फैंकने में परहेज नहीं किया जाता।
चन्द्र प्रभा सूद
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