शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

दूसरों से आँख मिलकर बात करना

किसी की आँख में आँख डालकर बात करना बड़े जीवट का काम है। ऐसा वही मनुष्य कर सकता है जो किसी से भी न डरता हो। यह तभी सम्भव हो सकता है जब मनुष्य का मनोबल उच्च हो और उसके पास आत्मिक बल हो। इसमें कोई सन्देह नहीं कि आत्मिक बल उसी व्यक्ति के पास हो सकता है, जिसके साथ सच्चाई और ईमानदारी होती है।
        इस सच्चाई की शक्ति से तो बड़े-बड़े साम्राज्य तक हिल जाते हैं। शारीरिक बल न होते हुए भी मनुष्य आत्मिक बल के रहते किसी से भी लोहा ले सकता है। यहाँ हम महात्मा गांधी के जीवन का उदाहरण ले सकते हैं जिन्होंने कृशकाय होते हुए भी अंग्रेजी साम्राज्य से टक्कर ली। उनकी एक आवाज पर हजारों लोग अपने सारे काम-काज छोड़कर भागे चले आते थे। विदेशी शासक के अत्याचारों को भी हँसकर सहन करते थे।
         इसी प्रकार के अनेक उदाहरणों से हमारा इतिहास भरा हुआ है जहाँ केवल आत्मिक बल अथवा सच्चाई की ताकत के कारण लोग शक्तिशालियों से भिड़ गए और उनकी नाक में दम कर दिया।
        टीवी पर, सोशल मीडिया पर एवं समाचार पत्रों में भी आए दिन ऐसे समाचार देखने, सुनने और पढ़ने को मिलते रहते हैं। दृढ़तापूर्वक प्रतिकार करने वालों की कमी नहीं है।
        आम व्यवहार में हम सभी प्रायः इन वाक्यों का प्रयोग करते रहते हैं- 'मेरी आँखों में देखकर बोल', 'नजरें क्यों चुरा रहे हो?', 'हिम्मत है तो नजर मिलाकर बात कर', 'आँखों में आँखें डालकर बात कर' आदि।
       इन सभी वाक्यों से पता चलता है कि कोई व्यक्ति स्वयं कितना ही धोखेबाज, मक्कार, हेराफेरी मास्टर क्यों न हो, उसे हर बात सच्ची ही सुननी होती है बस। असत्य भाषण अथवा अनर्गल प्रलाप कोई नहीं सुनना चाहता। झूठ और फरेब के कारण असामाजिक तत्त्व और आतंकवादी आदि अपने पुराने वफादारों तक को जान से मार देने में जरा भी नहीं हिचकिचाते। इस विषय पर अनेक फिल्में तथा टीवी सीरियल बने हैं। जिन्हें देखकर इन लोगों का व्यवहार समझा जा सकता है।
         कार्यक्षेत्र आदि में भी बास चाहता है कि उसके अधीनस्थ सत्य का व्यवहार करें। यदि कोई उसके समक्ष असत्य बोलता है तो वह अपना आपा खो देता है और उल्टा-सीधा बहुत कुछ सुना देता है। इस कृत्य के लिए सरकारी दफ्तरों में मेमो इश्यू कर दिए जाते हैं पर प्राइवेट में तो कर्मचारी को नौकरी से हाथ तक धोना पड़ जाता है। इससे उसका कैरियर बरबाद हो जाता है।
         अपने घर में यदि बच्चे बड़ों से किसी भी कारण से सच्चाई छिपाएँ तो उनके साथ डाँट-डपट की जाती है अथवा सजा भी दी जाती है। किन्तु यदि घर के सदस्य एक-दूसरे से पर्देदारी करने लगें तो वह परिवार टूटकर बिखर जाता है। कोई भी व्यक्ति दूसरे का असत्य आचरण सहन नहीं कर पाता।
         मनुष्य की जुबान की बड़ी कीमत होती है। इसकी सच्चाई और ईमानदारी के कारण लाखों करोडों के व्यापार उचन्ती में हो जाते हैं। जहाँ किसी के मन में धोखाधड़ी करने की भावना आ गई वहाँ व्यापारिक सम्बन्ध समाप्त हो जाते हैं और तब फिर साख गिर जाने से व्यापार में हानि होने लगती है।
         मनुष्य की आँखों की चमक से ही ज्ञात हो जाता है कि उसकी बात में कितनी सच्चाई है और कितनी धूर्तता है। उसकी बात विश्वसनीय है अथवा नहीं। ऐसा व्यक्ति किसी से नजर नहीं मिला सकता। बात करते समय वह या तो इधर-उधर देखेगा या नाखून दाँतों से कुतरेगा या पैर के अँगूठे से जमीन खोदेगा या फिर नजरें चुराने का प्रयास करता है अथवा हकलाने लगता है।
        सत्य की शक्ति इतनी अधिक होती है कि सत्यवादी के मुँह से निकलने वाला हर वचन ब्रह्मवाक्य बन जाता है। ऐसे व्यक्ति की बोलते समय न कभी जुबान लड़खड़ाती है और न ही वह किसी से डरता है। सबके सामने सिर उठाकर और दूसरों से आँखें मिलाकर वह बात कर सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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