मंगलवार, 27 सितंबर 2016

किसी की मुस्कुराहट पर न जाएँ

किसी व्यक्ति के हँसते-मुस्कुराते हुए चेहरे को देखकर यह अनुमान लगाना कदापि उचित नहीं है कि उसे अपने जीवन में कोई गम नहीं है। अपितु यह सोचना अधिक समीचीन होता है कि उसमें सहन करने की शक्ति दूसरों से कुछ अधिक है।
        पता नहीं अपनी कितनी मजबूरियों और परेशानियों को अपने सीने में छुपाकर वह दूसरों के चेहरे पर हँसी ला पाता है। ऐसे साहसी लोग इस दुनिया में बहुत कम मिलते हैं।
       प्रायः लोग यही सोचते हैं कि जिसके पास भी वे बैठें, वह उनके दुखों की दास्तान को दत्तचित्त होकर सुने और अपनी सहानुभूति उसके लिए प्रकट करे। उसे यह पता चलना चाहिए कि उसका वह साथी मनुष्य कितनी पीड़ा भोग रहा है।
       वह अपने घर-परिवार, बन्धु-बान्धवों से सताया हुआ है। उसे नौकरी या व्यापार में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वह धन की कमी या अस्वस्थता के कारण हताश है, जीवन से निराश है। इन सबसे बढ़कर उसे किसी अपने से सदा के लिए बिछुड़ जाने का दर्द है।
         यह सब सोचते समय मनुष्य भूल जाता है कि हर मनुष्य किसी-न-किसी पीड़ा से गुजर रहा है। किसी के पास उसके दुखों-परेशानियों पर मलहम लगाने का समय नहीं है। इस मँहगाई के चलते सभी लोग अपने जीवन की भागदौड़ में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास समय का अभाव रहता है। आज हर इन्सान को जीवन जीने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है अन्यथा वह जीवन की रेस में पिछड़ जाता है।
       अपने हिस्से के दुखों, तकलीफों और परेशानियों को मनुष्य को स्वयं ही भोगना पड़ता है। कोई भी उन्हें उसके साथ भोगते हुए साझा नहीं कर सकता। जिन लोगों को अपना हमदर्द समझता है, वह उनसे अपने दुख साझा करने का यत्न करता है।
        पहली बात तो यह है कि कोई उसकी बात को ध्यान से सुनना ही नहीं चाहता। दूसरी बात यह है कि कोई सुनता है और प्रत्यक्ष में सहानुभूति का प्रदर्शन करता है तो पीठ पीछे उसकी छिछालेदार करने का अवसर तलाशता है। नमक-मिर्च लगाकर, बढ़ा-चढ़ाकर और चटखारे लेकर उसका सबके सामने उपहास करता है। जहाँ तक हो सके अपने दुख अपनी परेशानियों को अपने हृदय में ही समा लेना चाहिए।
        यहाँ हम सर्कस के जोकर की चर्चा कर सकते हैं। वह बहुत ही सफाई से अपने जीवन की परेशानियों को अपने अंतस में दफन कर देता है। जब वह स्टेज पर आता है तो अपनी अदाओं से सबको हँसाकर लोटपोट कर देता है। किसी को भी उसके जीवन के दुखों और कष्टों का ज्ञान ही नहीं हो पाता।
      वह एक गुमनाम-सी जिन्दगी जीता हुआ जोकर सबको खुश करने का भरसक प्रयास करता है। वहाँ सर्कस में बैठे हुए वे लोग उसके मसखरेपन का आनन्द लेते हैं। वहाँ से बाहर निकलकर दो-चार मिनट उसके बारे में बात करते हैं। उसके बाद अपने-अपने कामों में व्यस्त होकर उसे भूल जाते हैं।
       जोकर की तरह यदि अपने अंतस में अपनी सारी व्यथाओं को अपने जीवन का अभिन्न अंग मान लेने से किसी के सामने उन्हें बताने की आवश्यकता नहीं रहती। मनुष्य स्वयं ही उन पर विचार करता हुआ बाहर निकलने का मार्ग खोज लेता है।
       मनुष्य को सदा स्मरण रखना चाहिए कि चन्द्रमा को भी अमावस्या का दंश झेलना पड़ता है। सूर्य को ताप से जलना पड़ता है। दिन को अंधेरे से मुक्त होने के लिए संघर्ष करना होता है। सोने को खरा बनने के लिए आग में तपना पड़ता है।
        संसार में हितचिन्तक बहुत कम हैं। अधिकतर लोग दूसरों का मजाक बनाते हैं। यही उनका मनोरंजन होता है। इसलिए वे ऐसे अवसर की तलाश करते रहते हैं और अपना शिकार ढूँढते ही लेते हैं। ऐसे लोगों को पहचानाने की कोशिश करनी चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो उनसे किनारा करना ही श्रेयस्कर होता है।
         सज्जनों की सगति, स्वाध्याय और ईश्वर की उपासना से मनुष्य कठिन-से-कठिन परिस्थिति में भी नहीं हारता। उसे अपने कष्ट भी फूल की तरह लगने लगते हैं। हँसने वाले के सभी मीत बनते हैं और बिसूरते रहने वाले से किनारा कर लेते हैं। उसे स्वयं ही भान हो जाता है कि फूलों की तरह मुस्कुराने और खुशियों की सुगन्ध चारों ओर बिखेरनी चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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