शनिवार, 3 सितंबर 2016

मनुष्य की पहचान मित्रों से

हर व्यक्ति की इस संसार में अपनी एक पहचान होती है। उसी के अनुरूप उसका व्यवहार तथा चरित्र होता है। मनुष्य का जैसा चरित्र होता है उसके मित्र भी वैसे ही होते है। यानी मनुष्य अपने चरित्र के अनुसार ही इस संसार में अपने मित्रों का चयन कर लेता है।
        दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि सज्जन को सज्जन लोग मिल जाते हैं और दुर्जन को दुर्जन। नेता को नेता, अभिनेता को अभिनेता मिल जाते हैं। चोर को चोरी करने वाले, भ्रष्टाचारी को भ्रष्टाचार करने वाले, रिश्वतखोर को रिश्वत लेने वाले और धोखेबाज को धोखा देने वाले मित्र मिल जाते हैं। व्यवसायी को व्यवसाय करने वाले, नौकरी करने वाले को नौकरी करने वाले मिल जाते हैं।
         कहने का मात्र इतना ही अर्थ है कि इस संसार में अरबों-खरबों लोग हैं। जो भिन्न-भिन्न प्रकृति के या आचार-व्यवहार के होते हैं। मनुष्य अपने आचार-व्यवहार के अनुरूप ही अपने मित्रों का चुनाव कर लेता है। जैसा वह स्वयं होता है वैसे ही उसके संगी-साथी बन जाते हैं। अपने उन साथियों की संगति से ही वह पहचाना जाता है।
         शुद्धता या पवित्रता सदा मनुष्य के विचारों में परखी जा सकती है। यदि वह सहृदय व परोपकारी है तो उसके व्यवहार से स्वयं ही ये गुण प्रकट हो जाते हैं। वह जहाँ भी रहेगा जनहित के कार्य ही करेगा। दूसरों की कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास करता रहेगा। वह दिन-रात की परवाह किए बिना ही परहित के कार्य करने में व्यस्त रहता है।
        इसके विपरीत यदि वह स्वार्थी, कठोर अथवा असहिष्णु होगा तो अपने व्यवहार से उन्हें समय-समय पर प्रकट करता रहेगा। यही अवगुण उसकी पहचान बन जाते हैं। यानी लोग कहते हैं कि फलाँ व्यक्ति बड़ा क्रोधी है या लालची है अथवा स्वार्थी है इत्यादि। गाहेबगाहे उसके ये दुर्गुण सबके समक्ष प्रकट हो जाते हैं और उसके तिरस्कार का कारण बनते हैं।
          मनुष्य को अपने आचरण से किसी को ऐसा सोचने पर विवश नहीं कर देना चाहिए कि वह है तो फूलों की तरह सुगन्ध फैलाने वाला पर अवगुण रूपी  कीट उसे घुन की तरह खोखला कर रहे हैं। उसे ज्ञात भी नहीं हो पाता और वह विनाश की ओर कब झुक गया?
         ऐसा होना असम्भव-सा प्रतीत है कि कोई व्यक्ति विशेष है तो बहुत गुणवान पर उसके साथी दुष्प्रवृत्ति वाले हैं। हाँ अपवाद स्वरूप कोई ऐसा हीरा मिल पर यह स्वप्न जैसा प्रतीत होता है। प्रायः होता यही है कि दुर्जन अपने सम्पर्क में आने वाले सभी को अपने जैसा बना लेते हैँ। वे अपने व्यवहार से इतने लालच और आकर्षक उन्हें देते हैं कि न चाहते हुए भी उनके चंगुल में फँस जाते हैं।
          यह सर्वथा सत्य है कि महापुरुष कुमार्गगामी व्यक्तियों को अपने सुचरित्र से ऐसे लोगों को दुष्कर्म करने से विमुख करके सन्मार्ग की ओर प्रवृत्त करते हैं और उनका कायाकल्प कर देते हैं। महर्षि वाल्मीकि और अगुलीमाल डाकू सहित अनेक महापुरुषों के उदाहरणों से इतिहास के पृष्ठ भरे हुए हैं।
          वैसे देखा जाए तो हीरे कोयले की खदान में पाए जाते हैं। हीरे को लोग अपने सिर के ताज मे जड़ते हैं और सम्हालकर रखते हैं जबकि कोयले को जलाने के काम में लाते हैं। यही अन्तर सज्जनों और दुर्जनों के साथ किए जाने वाले व्यवहार में  स्पष्ट देखा जा सकता है।
        मनीषी कहते हैं जिस प्रकार हर नर में नारायण विद्यमान रहता है उसी प्रकार मनुष्य के अंतस में सद् गुणों का भण्डार भी रहता है। उसे उन गुणों को यूँ ही बुराइयों में परिवर्तित नहीं करना चाहिए। यह मनुष्य का परम सौभाग्य है कि उसके सिर पर मालिक का वरद हस्त सदा बना रहता है, बस उसे स्वयं को सिद्ध करना पड़ता है। ईश्वर कहता है कि मैं हमेशा आप सबके साथ हूँ। इसलिए मनुष्य को सदा ही सावधान रहना चाहिए। उसे बुराई को छोड़कर अच्छाई के मार्ग को अपनाना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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