शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

मातृविहीन बच्चे

मातृविहीन बच्चे से बढ़कर अभागा कोई और इन्सान नहीं हो सकता। कुछ बच्चे बहुत दुर्भाग्यशाली होते हैं जिनकी माता उन्हें जन्म देते ही परलोक सिधार जाती है। कुछ बच्चों की माता उनकी बाल्यावस्था में ही इस असार संसार से विदा ले लेती है। इनके अतिरिक्त कुछ वे बच्चे होते हैं जिनके माता-पिता तलाक ले लेते हैं और उनकी कस्टडी पिता को मिल जाती है।
         ईश्वर की कुदरत है कि उसने माता को इतनी सामर्थ्य दी है कि अकेले रहते हुए भी वह अपनी सन्तान का पालन-पोषण बहुत अच्छे से कर लेती है। बच्चे को उसके पिता की कमी का अहसास नहीं होने देती। वह माता और पिता दोनों ही के दायित्वों का भली-भाँति निर्वहण कर लेती है।
          इसके विपरीत पिता अकेले सन्तान को पाल नहीं सकते। यदि दादा-दादी या नाना-नानी आदि का सहारा मिल जाए तो बच्चा प्यार-दुलार पाकर पल जाता है। फिर भी अपनी माँ की कमी से उबर नहीं पाता। परन्तु यदि ऐसी स्थिति न हो और पिता बच्चों के बेहतर भविष्य को देखते हुए अकेले रहने का फैसला कर लेता है, तब उसे बच्चे को आया अथवा नौकर के सहारे से ही पालना पड़ता है।
         इन सबसे बढ़कर यदि वह पुनः शादी कर लेता है तो आवश्यक नहीं कि आने वाली नई माँ बच्चे का ध्यान सगी माता की तरह रख पाए अथवा बच्चा अपनी नई माँ को अपनी माता के स्थान पर रख सके।
         इस परिस्थिति में बच्चा घर में नई माँ के साथ सामञ्जस्य नहीं बिठा पाता। इसलिए प्रतिदिन घर अखाड़ा बनता जाता है। दोनों में तनातनी या खींचतान चलती रहती है। इस तरह घर का माहौल सदा के लिए बोझिल हो जाता है। घर के सभी सदस्य परेशान रहते हैं।
        माँ की कमी ऐसे बच्चों को आजीवन खलती रहती है। वे कभी किसी के घर जाते हैं तो माँ का अपने बच्चे के साथ किए जाने वाले लाड-प्यार को देखते हैं तब उनके मन में यही भाव आता है कि काश उनकी भी माँ जीवित होती तो उन्हें भी ऐसा ही प्यार-दुलार मिलता। इसी तरह पार्टी या शादी-ब्याह के अवसर पर सब साथियों को अपनी माता के साथ देखकर वे अपनी माता को स्मरण करके भावुक हो जाते हैं।
         तलाकशुदा पति-पत्नी के बच्चे को उसके बेचारेपन का अहसास लोग यदा कदा करवाते रहते हैं। उनके साथी भी उन्हें मौके-बेमौके चिढ़ाते रहते हैं। उस समय पिता के पास रहने वाले बच्चे माँ की गोद में सिर रखकर रोने के लिए मचलते हैं।
         ईश्वर ने माँ को अपना रूप देकर, अपने प्रतिनिधि के रूप में पृथ्वी पर भेजा है। उसे तो हम देख नहीं सकते, उसकी गोद में बैठ नहीं सकते पर इस भौतिक माता से अपने सारे लाड लड़ा सकते हैं। इसके न होने की कल्पना मात्र से ही मनुष्य का हृदय काँप उठता है।
       नराभरणम् ग्रन्थ का कथन है कि यदि माता घर में नहीं है तो घर और जंगल में कोई अन्तर नहीं है-
          यस्य माता गृहे नास्ति भार्या चाप्रियभाषिणी।
          अरण्यं तेन  गन्तव्यं  यथारण्यं तथा  गृहम्।।
अर्थात जिसकी माता घर में नहीं है और पत्नी अप्रिय बोलने वाली है। उसे जंगल में चले जाना चाहिए। उसके लिए जैसा वन है, वैसा ही घर है। यानी माँ के होने से घर घर की तरह लगता है।
        इस श्लोक को यहाँ लिखने का मात्र यही उद्देश्य है कि मनुष्य माता के महत्त्व को समझे और आजीवन उसकी देखभाल व सेवा-सुश्रुषा करे। ऐसा न हो कि माँ के परलोक सिधार जाने के पश्चात मन में कसक रह जाए कि काश माँ के जीते जी उसे सुख दिया होता अथवा उसकी सेवा की होती।
         माँ का मूल्य वही बता सकते हैं जिनके पास उनकी माँ नहीं होती। वे तरसते हैं कि काश हमारी माँ होती तो हमारे जीने का अन्दाज ही बदल जाता। उसके साथ अपने मन की बात, अपने दुख और परेशानियाँ साझा कर सकते। उससे रूठते और वह मनाती। यह हसरत उन बच्चों के मन में सदा रहती है। कितने भी सफल व्यक्ति वे क्यों न बन जाएँ पर माँ की कमी को अनदेखा नहीं कर सकते। माँ तो माँ होती है, उसका स्थान इस संसार में कोई नहीं ले सकता।
चन्द्र प्रभा सूद
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