बुधवार, 4 जनवरी 2017

माँ होने के मायने

माँ होने के मायने हैं परमपिता परमेश्वर की बनाई हुई सृष्टि का विस्तार करना। माता को ही इस विशेष योग्यता का उपहार उस मालिक ने दिया। इसी कारण ही हमारे शास्त्र माँ को देवता कहकर सदा सम्मानित करते हैं। बच्चों को 'मातृदेवो भव' का निर्देश देते हुए कहते हैं कि वे देवता के समान उसकी पूजा-अर्चना करें। उसकी सेवा करने में कभी कोताही न बरतें।
         स्त्री का जीवन मातृत्व का उपहार पाकर पूर्ण होता है। सन्तान न होने पर उसके जीवन में अधूरेपन का अहसास रह जाता है। यह दंश उसे मृत्यु पर्यन्त कष्ट देता रहता है। उसका सुख और चैन सब स्वाहा हो जाते हैं।
        बच्चों की होने वाली किलकारियों से घर जीवन्त हो उठता है। घर गूँजायमान होता रहता है और चहल-पहल बनी रहती है। बच्चे सभी के आकर्षण का केन्द्र होते हैं। चाहे सभी सदस्य घर में विद्यमान हों फिर भी उनके बिना एक खालीपन-सा घर में घर कर जाता है।
         बच्चों का रूठना-मानना, खेलना-कूदना, जिद करना आदि सभी हरकते माँ को हार्दिक प्रसन्नता देती हैं। उसकी भोली और मनमोहक अदाओं पर वह बलिहारी जाती है। जब वे मिट्टी से लोटपोट होकर आते हैं तब वह उनकी बलैंया लेते नहीं अघाती। उसका सारा संसार उसके बच्चे के होने से होता है।
        माता छोटे बच्चे को अँगुली पकड़कर चलना सिखाती है। उसे अक्षर ज्ञान कराती है। इसलिए वह बच्चे की प्रथम गुरु कही जाती है। उसकी तुतलाती बातों को सुनकर अपने सारे दुख और तकलीफों को भूल जाती है। उसके आँचल की छाँव में बच्चा स्वयं को सुरक्षित अनुभव करता है। माँ की गोद में बच्चा बड़ा होकर भी स्वयं को धन्य समझता है।
        माँ के न होने का अभाव उन बच्चों से अधिक कोई नहीं समझ सकता जिनकी माता उन्हें अल्पायु में छोड़कर इस संसार से विदा लेकर परलोक सिधार जाती है। उन बच्चों के जीवन में उसकी कमी बनी आजीवन बनी रहती है। उनके मन में निराशा का भाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
          किसी दुर्घटनावश अथवा किसी भी जीवन साथी की नपुंसकता के कारण यदि घर में सन्तान न हो सकने की स्थिति बन जाए तब अपने घर में रौनक बनाए रखने के लिए, किसी बच्चे को गोद लिया जा सकता है। वह बच्चा चाहे किसी रिश्तेदार का हो या फिर किसी जान पहचान वाले का हो, उसे गोद ले लेना घर के लिए उचित होता है।
        अनाथालय से भी बच्चा गोद लिया जा सकता है। इस तरह किसी अनाथ को माता-पिता और एक घर मिल जाता है। माँ को उसका मातृत्व का सुख मिलता है और उसके आ जाने से मानो घर आबाद हो जाता है।
        आजकल नई वैज्ञानिक तकनीक से 'टेस्ट ट्यूब बेबी' पैदा किए जा सकते हैं। आई.वी.एफ. अथवा सैरोगेसी जैसे नवीन माध्यमों मे लोग सन्तान का सुख प्राप्त कर रहे हैं।
         प्राचीन काल में भारत में इस तरह की समस्या का समाधान करने के लिए मनुस्मृति में नियोग प्रथा का उल्लेख है। पति की अकाल मृत्यु की अवस्था में ऐसा उपाय किया जा सकता है। इसके विपरीत यदि पति जीवित है और संतान नहीं हो सकती तो भी इसके अनुसार घर-परिवार में उसकी सहमति से एक बच्चे को जन्म दिया जा सकता है। परन्तु किसी विशेष परिस्थिति में दो बच्चे उत्पन्न किए जा सकते थे। इसके विपरीत यानी आनन्द के लिए ऐसा आचरण करने वाले दण्ड और प्रायश्चित के भागीदार होते थे।
       इस प्रथा के उदाहरण पाण्डु, धृतराष्ट्र और विधुर आदि के विषय में महाभारत का अध्ययन करके जाना जा सकता है।
         माँ और उसके ममत्व का कोई भी ओरछोर नहीं होता है। उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। उसकी इस महानता के समक्ष देवता भी नतमस्तक होकर उसकी प्रशस्ती गाते हैं। माँ के इस मायने की एक सार्थकता यह भी है कि देवता भी उसकी गोद में आने के लिए लालायित रहते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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