सोमवार, 12 मार्च 2018

डर का त्रास

डर क्या होता है यानि कि कुछ भी नहीं होता, यह केवल मन का एक भाव होता है। परन्तु यह व्यक्ति विशेष के जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करता है। उसे सुख और आराम से नहीं रहने देता। उसके दिन-रात के चैन को लील जाता है। वह बदहवास-सा रहने लगता है।
           यह डर मनुष्य को कहीं बाहर से नहीं मिलता अपितु उसके अपने अंतस् में होता है। मनुष्य को अनावश्यक रूप से नहीं डरना चाहिए। इन्सान को अपने डर पर नियन्त्रण रखना चाहिए। यह डर उसके मन में कुण्डली मारकर पसरा रहता है। इस नाग से छुटकारा पाना हर इन्सान के लिए अति आवश्यक होता है।
           मनुष्य अपना सारा जीवन किसी-न-किसी कारण से डर-डरकर व्यतीत करता है। कभी धर्म के नाम पर डरता है तो कभी समाज से डरता रहता है। कभी वह अन्धेरे की घुटन से त्रस्त रहता है तो कभी उजाले से। बचपन में माँ से दूर होने का डर होता है। फिर गृहकार्य न करके स्कूल में जाकर मिलने वाली डाँट का भय रहता है। कभी परीक्षा में अपेक्षानुसार अंक न आने का भय उसे व्याकुल कर देता है।
             बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक होने वाली असफलताओं का भय उसे जीने नहीं देता। जीवन में आने वाली परीक्षाओं में सफलता पाना उसका ध्येय होता है। इसलिए उसके मन में डर का घर कर जाना स्वाभाविक है कि अगर किसी कारण से चूक गए तो क्या होगा?
           कभी उसे अपनी सफेदपोशी को बचाए रखने के लिए परेशानी रहती है। कभी-कभी न्याय व्यवस्था की पेचीदगियाँ और कभी इनकम टैक्स, सेल टैक्स आदि उसे भयभीत करते हैं। कभी कार्यालय में की गई किसी गलती के कारण बास या साथियों का डर उसे बेचैन कर देता है। कभी घर-परिवार के दायित्वों को ठीक से न निभा पाने पर होने वाला विस्फोट उसे भयभीत कर देता है।
            किसी को पानी से, किसी को ऊँचाई से और किसी को आग से डर लगता है। किसी-किसी को तथाकथित भूत-प्रेतों का भय सताता है। और भी न जाने क्या क्या अनजाने डर उसे घेरकर उसके व्यक्तित्व को ग्रसने का कार्य करते हैं। उस समय वह थरथर काँपने लगता है। इस भय की अधिकता होने पर मनुष्य अपना मानसिक सन्तुलन तक खो देता है।
           विचारणीय है कि घर-परिवार, देश, धर्म और समाज सबके कुछ नियम होते हैं जिनका पालन करना मनुष्य का नैतिक दायित्व होता है। उनके पालन में जहाँ भी चूक होती है वहीं एक अनजाना-सा डर उसे सताने लगता है। 'लोग क्या कहेंगे' की यह चिन्ता उसके मन को निरन्तर व्यथित करने लगती है।
           यदि कभी मनुष्य से गलती हो जाए तो निस्सन्देह उसे डरना चाहिए। किन्तु उसके अलावा उसे कभी भी किसी से भी डरना नहीं चाहिए। उसे अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहिए। यत्न यही करना चाहिए कि वह गलती दुबारा न दोहराई जाए। मनुष्य अपनी जिन्दगी का मालिक स्वयं है। जो मनुष्य अपनी गलती से सबक सीखकर आगे बढ़ता है तो उस जैसा कोई और इन्सान नहीं हो सकता।
            यदि मनुष्य सही तरीके से नियमानुसार कार्य करते हुए आगे बढ़ रहा हो तो कोई भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। वह अपने सही रास्ते पर चलता रहे तो उसे किसी से डरने की आवश्यकता नहीं होती, दूसरे उसका सामना करने से घबराते हैं।
           अपने डर पर काबू पाने के लिए मनुष्य को ईश्वर से सहायता की गुहार लगानी चाहिए। शौर्य सम्पन्न महपुरुषों की जीवन गथाएँ पढ़कर प्रेरणा लेनी चाहिए। ऐसे लोगो का साथ करना चाहिए जो उसे अनजाने डर से बाहर निकलने में सहायता कर सकें। सबसे बढ़कर उसे यह मानकर चलना चाहिए कि डर के आगे जीत है।
चन्द्र प्रभा सूद
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