शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

फूल की शिक्षा

मुस्कुराते हुए
फूल ने कहा मुझसे
एक दिन यूँ हंसते हुए
मेरी तरफ भी निहार लो घड़ी भर

मैंने झल्लाते हुए
उससे शिकायत की
मेरे बहुमूल्य समय को
तुमने बरबाद कर दिया उलझाकर

वैसे ही मैं अपनी
परेशानियों में दुखी
भटक रही हूँ कब से
इधर-उधर भाग रही हूँ राह खोजती

फूल ने फिर से
अट्टहास कर कहा
क्या तुम अकेली हो दुखी
मुझे भी बहुत से गम हैं तुम्हारी तरह

मैंने हैरान होकर
उससे पूछ लिया था
उसे क्योंकर होने लगी
परेशानी जो वह कह गिला कर रहा है

उसने जो बताया
सुनकर मेरे तो बस
रोंगटे खड़े हो गए थे कि
उसकी मुसकान के पीछे कितनी पीड़ा है

कहने लगा मुझसे
अपने ही साथ पैदा हुए
काँटों से दिन-रात ही मैं
होता रहता हूँ लहूलुहान पल-पल यहाँ

पक्षी चोंच मारकर
मुझे जख्मी करते हैं
किससे शिकायत करूँ
भंवरे रस लेकर उड़ जाते है हर दिन

आँधी-तूफान और
सर्दी-गर्मी के थपेड़े
करते हैं मुझे हैरान सदा
फिर भी मैं मुस्कुराता रहता हूँ हरदम

कोई गिला नहीं
कोई शिकायत नहीं
चारों ओर बस अपनी
सुगन्ध बिखेरता हूँ बिना भेदभाव के

मैं हतप्रभ-सी बस
देखती रही थी और
सुनती रही उसकी बातें
सच्चाई और ईमानदार है इस सोच में

मन में विचार आया
कष्ट में फूलों की तरह
समभाव रह करके मैं भी
सीख सकती हूँ हसना और मुस्कुराना।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter- http://t.co/86wT8BHeJP

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