रविवार, 13 सितंबर 2015

हिन्दी दिवस पर विशेष

हिन्दी दिवस 14 सितम्बर पर विशेष-

आज हिन्दी दिवस पर हमें आत्ममंथन करने की आवश्यकता है। वाकई  क्या हम हिन्दी भाषा के विस्तार अथवा प्रचार-प्रसार के प्रति मन, वचन और कर्म से सन्नद्घ हैं?
         मेरे विचार में ऐसा नहीं है। हम सबका इस विषय में दोहरा चरित्र है। कहने को हमें हिन्दी से बहुत प्यार है क्योंकि वह हमारी मातृभाषा है। इस मातृभाषा का अपमान खुल्लमखुल्ला हम सब कर रहे हैं। चौबीसों घंटे हम हिन्दी में बात करते हैं। अपने बच्चों की जब शिक्षा का समय आता है तो हमारे सारे असूल धरे रह जाते हैं। वहाँ हम अंग्रेज़ी भाषा को महत्त्व देते हैं। इसे मैं गलत नहीं मानती क्योंकि इतने वर्षों अंग्रेजों की गुलामी के बाद हमारी मानसिकता वैसी ही बन चुकी है।
       हिन्दी के पिछड़ने का प्रमुख कारण राजनैतिक इच्छाशाक्ति है। जब तक राजकाज की भाषा हिन्दी नहीं बनेगी तब तक इसे अपना स्थान नहीं प्राप्त होगा।
        दूसरा कारण है कि हिन्दी पढ़े लोगों की मानसिकता। उनकी सोच है कि यदि वे अंग्रेजी में बोलेंगे तो उन्हें सम्मान मिलेगा और वे पिछड़े नहीं कहलाएँगे। अपनी भाषा का जब वे ही आदर नहीं करेंगे तो अन्यों से उम्मीद रखना व्यर्थ है।
      टीवी सिनेमा के कलाकार जो हिन्दी से रोटी खाते हैं वे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर अंग्रेजी में देकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।
       उनके अतिरिक्त रचनाकार भी हिन्दी भाषा के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। वर्तनी, लिंग, वचन आदि की उनकी अशुद्धियाँ भाषा को कमजोर बनाती हैं। इससे भी बढ़कर कुछ लोग रोमन भाषा में अपनी हिन्दी की रचना लिखकर हिन्दी के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित करते हैं। इसकख उदाहरण फेसबुक पर देख सकते हैं।
      इसके साथ-साथ विश्व के अन्य देशों की भाँति हमारे भारत में भी शिक्षा का माध्यम अपनी मातृभाषा हिन्दी होना चाहिए। तरक्क़ी हम अपनी भाषा में पढ़कर भी कर सकते हैं। इसीलिए महाकवि ने कहते हैं- 'निज भाषा उन्नति गहे सब भाषा का मूल।'
       यदि वास्तव में हम अपनी भाषा के प्रति संवेदनशील हैं तो ईमानदारी से इसके लिए प्रयास करना चाहिए। हिन्दी के नाम पर केवल गोष्ठियाँ करने या हिन्दी दिवस पर भाषण देकर हम अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते। सरकार के साथ-साथ हम सभी हिन्दी प्रेमियों को एकजुट होकर ठोस कदम उठाने होंगे।
       अंत में यही कहूँगी जिस व्यक्ति को अपने देश, अपने वेश और अपनी भाषा से प्यार नहीं उसे अपने को भारतवासी कहलाने का अधिकार नहीं।
चन्द्र प्रभा सूद

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