बुधवार, 16 सितंबर 2015

अच्छाई और बुराई

अच्छाई और बुराई दोनों सगी बहनें हैं। ये दोनों रंग-रूप व स्वभाव में एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं। इन्हें हम एक ही सिक्के के दो पहलू भी कह सकते हैं जो कभी भी एक-दूसरे के गले नहीं मिल सकतीं यानि कि एकसाथ एक स्थान पर नहीं रह सकतीं। दो बहनों की तरह अपना सुख-दुख भी नहीं बाँट सकतीं।
          दूसरे शब्दों में कह यह सकते हैं कि अच्छाई को घर में निवास देना हो तो बुराई से दामन छुड़ाना आवश्यक होता है। इसके विपरीत यदि बुराई को प्रश्रय देना हो तो पहले अच्छाई से मुँह मोड़ना पड़ता है।
         यदि हमें इन दोनों के रंग को दर्शाना हो तो हम अच्छाई के लिए सफेद रंग का प्रयोग करते हैं और बुराई के लिए काले रंग का।
          सीधा स्पष्ट-सा यह व्यवहार हमें समाज में सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। नाटकों आदि में हम देखते हैं कि अच्छे लोग प्रतीक के रूप में सफेद वस्त्र पहनते हैं और दुष्टों को काले वस्त्र पहनाए जाते हैं। टीवी में रामायण, महाभारत तथा कई और अन्य सीरियलस में हम सबने इस प्रकार के वस्त्र विन्यास को देखा था।
        रामलीला आदि नाटकों के मंचन में भी अच्छाई और बुराई के अन्तर को दर्शाने के लिए ऐसे ही प्रयोग किए जाते हैं। इससे हमें इन दोनों के अंतर को भलीभाँति समझ लेना चाहिए। इसके साथ ही समाज का इनके प्रति जो रवैया है उसे भी अनदेखा नहीं करना चाहिए।
        हमारे सामने यदि अच्छाई अथवा बुराई में से एक को चुनने का विकल्प रखा जाए तो हम में से प्राय: लोग अच्छाई के पक्षधर ही होंगे और इसके साथ ही जाना चाहेंगे। परन्तु बुराई इतनी आकर्षक होती है कि उसकी मोहिनी से बचना बहुत कठिन होता है। समझदार व्यक्ति उसके लटकों-झटकों के जाल में नहीं फंसते। परन्तु मन की दुर्बलता वाले लोग इसके बहकावे में शीघ्र आ जाते हैं और अपने लिए गड्ढा खोद लेते हैं।
        जो लोग अच्छाई वाले कठिन मार्ग का चयन करते हैं उनका रास्ता लम्बा तथा कठिनाइयों से भरा होता है। उस पथ पर चलते हुए उन्हें अनेक परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। उनमें पास हो जाने पर वे सदा सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं। ऐसे लोग समाज में सम्माननीय स्थान प्राप्त करते हैं। अच्छाइयों की अधिकता होने के कारण ये महापुरुष सत्त्वगुण वाले कहलाते हैं। यही लोग समाज के दिग्दर्शक बनते हैं।
          बुराई का रास्ता सरल व आकर्षण होता है। यहाँ बहुत से अवगुण एवं दोष अपने पास बुलाने के लिए षडयंत्र रचते रहते हैं। इनके झाँसे में आ जाने वाले लोग अपना मार्ग भटक जाते हैं। अपनी अच्छाई को छोड़कर वे कुमार्ग पर चल पड़ते हैं। तब उन्हें कदम-कदम पर न्याय व्यवस्था से दो-चार होना पड़ता है। समाज विरोधी कार्य करने वालों को उनके अपने घर-परिवार के लोग त्याग देते हैं। समय बीतने पर वे अकेले रह जाते हैं। तब उस समय उन्हें इस गलत रास्ते पर आने का पश्चाताप होता है।
         वास्तव में अच्छाई का रास्ता लम्बा व कठिनाइयों से भरा हुआ होता है। इसके विपरीत बुराई का मार्ग तड़क-भड़क वाला व दिखने में सरल प्रतीत होता है। शार्टकट हमेशा नुकसान पहुँचाता है। इसलिए इस पथ पर चलने से पहले हमें इसके दूरगामी दुष्परिणामों पर निश्चित ही विचार कर लेना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सू
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