सोमवार, 28 सितंबर 2015

मानव जीवन समझौता

मानव जीवन समझौते का ही दूसरा नाम है। जीवन के हर क्षेत्र में कदम-कदम पर उसे समझौता करना पड़ता है। यदि वह अपनी शर्तों पर जीवन जीना चाहे अथवा अकड़कर रहे और किसी के साथ भी सामंजस्य बिठाने में आनकानी करे तो वह ठूँठ वृक्ष की भाँति टूट जाता है। यदि वह हरे-भरे पेड़ की तरह थोड़ा झुक जाता है या समझौता कर लेता है तो अपने जीवन में सफल हो जाता है।
          अपने घर-परिवार में मिलजुल करके रहने वालों की गृहस्थी बड़ी अच्छी चलती है। वहाँ की स्थिति यह होती है कि आपसी मतभेद कितने ही क्यों न हों परन्तु सभी परिवारी जन एक-दूसरे व्यक्ति की कमियों को सहन करते हुए जीवन में सदा आगे बढ़ते जाते हैं। उन्हें जीवन बहुत ही सहज व सरल लगता है।
          लड़ाई-झगड़े का वहाँ कोई काम नहीं होता। सब कुछ निश्चित ढर्रे पर ही चलता रहता है। न किसी से गिला और न किसी से शिकायत वाला माहौल सबको प्रेरित करता है। उस घर के बच्चे आज्ञाकारी व संस्कारी होते हैं और बड़े सभी सदस्यों के साथ समभाव रखने वाले होते हैं। इन्हीं घरों में रहने वालों को स्वर्ग जैसा आनन्द आता है। यही घर दूसरों के लिए आदर्श बनते हैं। लोग उनके सद्भाव के उदाहरण देते नहीं थकते।
          इसके विपरीत ऐसे घर भी हैं जिनमें सभी लोग अपनी मनमानी करते हैं, वहाँ कोई भी सामंजस्य पूर्वक नहीं रहता। कोई दूसरे को सहन नहीं करना चाहता। एक-दूसरे की कमियाँ निकालकर उनकी छिछालेदार करने में ही सुख ढूँढते हैं। उन घरों में कभी शान्ति नहीं रह सकती सिर्फ कलह-क्लेश रहता है। उनके इन व्यर्थ के झगड़ों की आग में घर के सभी परिवारी जन झुलसते रहते हैं वहाँ नरक के समान अशान्ति रहती है। किसी भी सम्बन्धी या मित्र को वहाँ जाकर अच्छा नहीं लगता इसलिए कोई भी वहाँ जाना पसंद नहीं करता बल्कि किनारा करते हैं।
          आफिस और व्यापारिक संस्थानों में यदि बॉस या मालिक अपनी मनमानी करे और कर्मचारी अपनी तो उस संस्थान का ईश्वर ही मालिक होता है। ऐसे संस्थानों में हड़ताल और तालाबंदी होती है। वहाँ कार्य ठीक न होने के कारण घाटे होते हैं।
         इसके विपरीत जिन संस्थानों में सब लोग एक परिवार की तरह मिल-जुलकर काम करते हैं, अपने सुख-दुख एक-दूसरे के साथ साझा करते रहते हैं,  वे संस्थान  सदा उन्नति करते हैं। वहाँ पर मालिक भी हमेशा प्रसन्न रहते हैं और कर्मचारी भी  खुश रहते हैं।
           जिस देश या राष्ट्र में सत्तापक्ष और प्रजा साथ मिलकर नहीं चलते हैं वहाँ पर लूट-खसौट, भ्रष्टाचार व अनैतिक कार्य अधिक होते हैं। लड़ाई-दंगे होना वहाँ कोई नई बात नहीं रह जाती। उस राष्ट्र में चारों ओर आराजकता का साम्राज्य रहता है। कोई किसी के कहने पर नहीं चलता। ऐसे देश पर शत्रु आसानी से अपना कब्जा कर लेते हैं।
          परन्तु जिस राष्ट्र में परस्पर सौहार्द रहता है वह सदा आगे ही बढ़ता है। वहाँ राजा खुश रहता है और प्रजा खुशहाल। वहाँ सुख-समृद्धि की वर्षा निरन्तर होती है। ऐसे ही देश दूसरे राष्ट्रों को झुकाने की सामर्थ्य रखते हैं।
         इसी प्रकार किसी भी धार्मिक अथवा सामाजिक संस्था के सभी कार्य यदि आपसी समझबूझ से होते हैं तो वे संस्थाएँ  निश्चित ही जनोपयोगी कार्य करती हैं। अन्यथा झगड़ों में उलझकर बंद हो जाती हैं या फिर कोर्ट-कचहरी के चक्करों में सिमट कर रह जाती हैं।
          आपसी समझौते की बुनियाद पर काम करते हुए हम जीवन में सफलता की ऊँचाइयों को छूते हुए कुछ भी कर गुजरते हैं। परन्तु मनमानी करते हुए हम रेस में पिछड़कर बाजी हार जाते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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