गुरुवार, 9 मार्च 2017

अमूल्य मनुष्य

मानव इस सृष्टि की एक बहुमूल्य रचना है। ईश्वर ने कुछ सोचकर ही इसे इस संसार में भेजा है। मनुष्य स्वयं अपना मूल्य नहीं जानता परन्तु इसे करोड़ों में भी नहीं खरीदा जा सकता। मानव शरीर का एक-एक अंग यदि खरीदने की आवश्यकता पड़े तो उसका मूल्य चुकाना कठिन हो जाता है। मेडिकल साइंस के अनुसार अंगों का प्रत्यारोपण किया जा सकता है।   
       मनुष्य को अस्वस्थ होने की स्थिति में समझ आती है कि उसका अंग विशेष कितना अनमोल है, समय रहते जिसकी वह कद्र नहीं करता। यदि किसी से अंग लेने की आवश्यकता जीवन में पड़ जाती है तब वह स्वयं को कितना असहाय अनुभव करता है, यह बात उसे भली-भाँति समझ आ जाती है। अंगविहीन होकर कोई व्यक्ति जीना नहीं चाहता, वह जीवन में सम्पूर्ण बनकर ही रहना चाहता है।
       मानव जीवन के अनमोल होने का दर्शन महात्मा बुद्ध ने एक उदाहरण देते हुए बताया है। एक बार एक व्यक्ति ने उनसे जीवन का मूल्य बताने के लिए आग्रह किया। महात्मा बुद्ध ने उसे एक मूल्यवान पत्थर देकर न बेचने की हिदायत देते हुए, उसका केवल मूल्य ज्ञात करके आने के लिए कहा।
         वह आदमी बाजार में गया और एक संतरे वाले से उसकी कीमत पूछी। सन्तरे वाले ने चमकीले पत्थर को देखकर बारह सन्तरे के बदले उसे देने के लिए कहा। फिर उसने एक सब्जी वाले से उसका मूल्य पूछा। उसने एक बोरी आलू उस पत्थर के बदले देने के लिए कहा।
         वहाँ से आगे बढ़ता हुआ वह एक सुनार की दुकान में गया। सुनार ने उस चमकीले पत्थर का मूल्य पचास लाख बताया। जब उसने बेचने से मना कर दिया तो सुनार दो करोड़ देने के लिए तैयार हो गया। उससे भी बढ़कर मुँहमागी कीमत देने का भी वादा किया। उसने सुनार को यह कहते हुए मना किया कि गुरुजी ने इसे बेचने के लिए नहीं कहा।
         अन्त में वह हीरे के जौहरी के पास गया। जौहरी ने उस बेशकीमती रूबी को देखकर पहले रूबी के पास एक लाल कपडा बिछाया, फिर उस बेशकीमती रुबी की परिक्रमा करके माथा टेका। तब उससे यह पूछा कि वह बेशकीमती रूबी कहाँ से लाया है? सारी दुनिया को बेचकर भी इसकी कीमत नहीं चुकाई जा सकती।
      वह आदमी हैरान-परेशान हो गया उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। वह सीधा महात्मा बुद्ध के पास आया और उन्हें सारे सौदों की बातें बताई। उसने महात्मा बुद्ध से मानव जीवन का मूल्य बताने का आग्रह किया।
     महात्मा बुद्ध ने उस व्यक्ति को समझाते हुए कहा - 'संतरे वाले ने इसकी कीमत बारह संतरे बताई। सब्जी वाले ने इसकी कीमत एक बोरी आलू बताई। सुनार ने दो करोड़ बताई और जौहरी ने इसे बेशकीमती बताया।'
         इसी प्रकार मानव का भी मूल्य हैl मनुष्य बेशक हीरा हो लेकिन सामने वाला उसका मूल्य अपनी औकात, अपनी जानकारी और अपनी हैसियत से लगाता है। इसलिए घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस दुनिया में उसे पहचानने वाले भी बहुत से लोग मिल जाते हैं।
       ये तो हैं महापुरुषों की महान बातें। उनका शिक्षा देने के तरीका भी विशेष होता है, जिससे हर व्यक्ति को उनकी बात बहुत सरलता से समझ में आ जाए। फिर वह उन्हें अच्छी तरह जानकर, समझकर, आत्मसात करके अपनी उन्नति करने में सफल हो जाए।
        इसलिए मनुष्य को स्वयं होकर यह किसी को यह बताने की आवश्यकता नहीं होती कि वह हीरा है अथवा खरा सोना है। जिन्हें उसकी चाहत होती है वे स्वयं ही उसे खोजते हुए उसके पास आ जाते हैं। मनुष्य को बस अपनी आन्तरिक शक्तियों को पहचानना होता है। फिर दुनिया अपने आप ही बिना कहे उसके पीछे चल पड़ती है। अतः मनुष्य को अपने महत्त्व को बनाए रखने के लिए सदा यत्नशील रहना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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