बुधवार, 18 जुलाई 2018

चाहती हूँ मैं

लिखना चाहती हूँ एक भावपूर्ण कविता
इसी तरह से एक मर्मस्पर्शी गम्भीर लेख
फिर पूछ लेती हूँ अपने इस बावरे मन से
चाहती हूँ मैं हृदयस्पर्शी लेखन कर पाना।

चाहत नहीं है मुझे बनने की एक महाकवि
न ही कामना है बनने की एक महान लेखक
मैं बस अपने मन में उठने वाले विचारों को
चाहती हूँ एकसूत्र में बाँधकर माला पिरोना।

मन जाने कहाँ कहाँ से ले आता है बटोरकर
विविध प्रकार के विचारों के रंग-बिरंगे तन्तु
सारा समय बस बैठी रहती हूँ उन्हें समेटती
चाहती हूँ उन्हें जोड़ करके नवसृजन करना।

मेरे जीवन का सार ही बन जाए मेरा सर्जन
मेरे सब अनुभव सिमट जाएँ बनकर कथन
मेरा अर्जित ज्ञान बन जाए इसमें मार्गदर्शक
चाहती हूँ केवल साहित्य में पा जाना स्थान।

चाहती हूँ सुधीजनों के समक्ष उसे परोसना
अनाड़ी हाथों से जैसी भी रचना बन जाए
वे उसे पढ़कर रख सकें अपने ही सुविचार
चाहती हूँ अपने सिर पर उनका वरद हस्त।

मैं चाहे अमर न हो पाऊँ ऐसी रचना रचकर
पर मेरी रचना पढ़ना चाहे बार-बार सबजन
यही सफलता हो जाएगी मेरे रचनाकार की
चाहती हूँ मैं उस पल की शीघ्र करूँ प्रतीक्षा।
चन्द्र प्रभा सूद
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