मंगलवार, 31 जुलाई 2018

बच्चों के हाथ में मोबाइल

बच्चों का जमाना मोबाइल फोन का है। यह बच्चों की पहली पसन्द है।इसका प्रचलन इतना बढ़ गया है कि आज बच्चे नशे की हद तक इसके प्रयोग कर रहे हैं। फोन का प्रयोग करके वे ओवर स्मार्ट बनते जा रहे हैं। उनका इस सीमा तक मोबाइल फोन का प्रयोग करना उनके लिए घातक सिद्ध हो रहा है। उनका बस चले तो वे चौबीसों घण्टे फोन पर लगे रहें। उनका खाना-पीना, खेलना सब इस मोबाइल की बदौलत हो रहा है।
         घर में यदि कोई मेहमान आ जाए, उन्हें कोई मतलब नहीं होता। उन्हें नमस्कार करना भी उन्हें भारी पड़ता है। वे उठते हैं और दूसरे कमरे में चले जाते हैं। यानी घर में भी किसी से बात करने के लिए राजी नहीं होते। यदि उन्हें बाजार से कुछ सामान लाने के लिए कह दिया जाए तो वे प्रसन्न होकर नहीं जाते बल्कि भुनभुनाते हुए चल पड़ते हैं।
         आजकल माता-पिता की व्यस्तता के कारण बच्चे प्रभावित हो रहे हैं। वे अकेले होते हैं तो सारा समय मोबाइल पर लगे रहते हैं। इससे उनकी पढ़ाई पर असर पड़ रहा है। वे अपनी कक्षा में पिछड़ रहे हैं। घर और स्कूल दोनों स्थानों पर उन्हें डाँट कहानी पड़ती है। इस कारण वे अकेलेपन और अवसाद का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में उन्हें अपने माता-पिता के साथ की आवश्यकता होती है, जिसका उनके पास अभाव है। इसलिए माता-पिता की सहानुभूति भी उन्हें नहीं मिल पाती।
         मोबाइल भी बहुत बड़ी समस्या बनती जा है। खास कर छोटे बच्चों में। छोटे बच्चों को नाश्ता कराने या भोजन खिलाने के लिए माताएँ नर्सरी राइम्स लगा देती हैं। इससे बच्चे बिना किसी परेशानी के खा लेता है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि बच्चे को बोलना भी नहीं आता पर मोबाइल चलाना आता है। उसकी अंगुलियाँ बड़ी तेजी से मोबाइल पर चलती हैं। यदि उससे फोन वापिस लिया जाए तो वह सारे घर को सिर पर उठा लेता है। कभी-कभार गुस्से में आकर वह मोबाइल को उठाकर पटक देता है, इससे मोबाइल को हानि पहुँचती है, कभी-कभी वह टूट जाता है।
           पिछले दिनों किसी ऑनलाइन खतरों वाला खेल को खेलते हुए कई बच्चों की जान चली गई। वे लोग ऐसे ही बच्चों को अपने जाल में फँसाते हैं जिनके माता-पिता के लिए इनके पास समय नहीं होता। वे आसानी से उनके शिकार बनकर अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं।
           उसे घर के हर सदस्य का फोन चाहिए होता है। बच्चा बिना किसी की सहायता लिए अपनी पसन्द के कार्टून लगा लेता है। उसे देखते-देखते वह कार्टून कैरेक्टर की तरह व्यवहार करने लगता है। समझ न होते हुए भी किसी को मैसेज कर देता है और कभी किसी अनजान को फोन मिला देता है। आज प्रायः बच्चे ऐसे ही स्वभाव के होते जा रहे हैं। यह वास्तव में बहुत ही चिन्ता का विषय बनता जा रहा है।
          बच्चे मित्रों के साथ बाहर खेलने नहीं जाते। उसके स्थान पर टीवी और फोन से चिपके रहते हैं। इस कारण शरीरिक व्यायाम न करने के कारण वे मोटापे का शिकार हो रहे हैं। छोटे बच्चों की आँखों पर मोटे-मोटे चश्मे लग रहे हैं। डॉक्टर के पास यदि बच्चे को ले जाएँगे तो वह भी बच्चे को समय देने का ही सुझाव देगा।
          थोड़ा बड़ा होने पर जब बच्चा अपना अधिक समय पढ़ाई की ओर न देकर फोन पर लगा रहता है, तब उसको डाँट-फटकार सुननी पड़ती है। उस समय उसे समझ नहीं आता कि उसकी गलती क्या है? वह तो बचपन से ही इस तरह करता आ रहा है।
          इस बीमारी से बचने के लिए आरम्भ से ही बच्चों के फोन को प्रयोग करने का समय निश्चित कर देना चाहिए। इससे कुछ सीमा तक इस समस्या से बचा जा सकता है। बच्चों का क्या है, वे तो परेशान करेंगे ही, रोना-धोना भी होगा, यदि नियमों का कड़ाई से पालन किया जाए तो उन्हें समझ में आ जाएगा कि उनके लिए क्या उचित है और क्या अनुचित है।धीरे-धीरे इसका परिणाम सकारात्मक होगा।
           पूरा सप्ताह यदि माता-पिता व्यस्त रहते हैं तो भी घर आकर उन्हें बच्चों से बात करनी चाहिए। उनकी समस्याओं को सुनना चाहिए। अवकाश के दिन उन्हें अधिक समय देना चाहिए। यदि सम्भव हो तो कभी पिकनिक जाने या घूमने का कार्यक्रम बनाना चाहिए। इस प्रकार बच्चे मार्ग से भटकने से बच सकते हैं। वे माता-पिता, परिवार और देश का गौरव बन सकते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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