बुधवार, 4 जुलाई 2018

उपचार पद्धतियों की तरह लोग

उपचार पद्धतियों की तरह मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं। इस विषय पर कुछ दिन पूर्व पढ़ा था कि किसी महानुभाव ने इस दुनिया में तीन तरह के लोगों का उल्लेख किया था। उनका मानना है कि पहले आयुर्वैदिक प्रकार के लोग होते हैं जो बोलचाल में बढ़िया होते हैं लेकिन इमरजेंसी में काम नहीं आते। दूसरे होम्योपैथिक प्रकार के लोग होते हैं। वैसे तो किसी काम के नहीं होते पर साथ रहते हैं तो अच्छा लगता है। तीसरे एलोपैथिक इलाज की तरह के लोग इमरजेंसी में काम आते हैं। लेकिन कब क्या सेड इफेक्ट दिख दें, कोई भरोसा नहीं है।
           अब इस विषय पर गहन चर्चा करते हैं। आयुर्वैदिक उपचार पद्धति भारत की पुरातन पद्धति है। इसके माध्यम से हर रोग का इलाज किया जाता था। जीवक आदि वैद्यों के ऑपरेशन करने के विषय में भी ज्ञात होता है। जड़ी-बूटियाँ तो वही हैं जिनका आयुर्वैदिक और एलोपैथिक दोनों ही प्रकार की औषधियों में उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। फिर भी लोग आयुर्वैदिक उपचार पर विश्वास नहीं करते। आजकल के एलोपैथिक डॉ लोग आयुर्वैदिक और होम्योपैथिक आदि उपचारों का नाम सुनते ही भड़क जाते हैं, नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं, जैसे किसी ने उन्हें भद्दी-सी गाली दे दी हो। जब लोग हर तरफ से निराश हो जाते हैं, पैसा खर्च करके थक-हार जाते हैं तब इन उपचारों की ओर लौटते हैं।
        अब चर्चा करते हैं इन उपचार पद्धतियों के समान व्यवहार करने वाले लोगों की। सबसे पहले आयुर्वैदिक प्रकार के लोगों की बात करते हैं। ये लोग बोलचाल में, व्यवहार में बहुत बढ़िया होते हैं। इनका प्रभाव दूसरे के ऊपर गहरा नहीं होता। जब भी कभी कोई इमरजेंसी हो जाती है तब ये काम नहीं आते। कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे लोग दूर से ही दोस्ती निभाते हैं। शायद मन से इनका जुड़ाव नहीं हो पाता। इसीलिए इनके लिए मन में अपनेपन का भाव नहीं आ पाता।
        दूसरे होम्योपैथिक प्रकार के लोग होते हैं। इस पद्धति से किया गया उपचार धीरे-धीरे अपना असर दिखता है। इस प्रकार के लोग वैसे तो किसी काम के नहीं होते पर साथ रहते हैं तो अच्छा लगता है। कुछ लोग जीवन में ऐसे मिलते हैं जो जीवन में अधिक लाभ नहीं पहुँचा पाते पर उनका साथ होना अच्छा लगता है। होम्योपैथिक मीठी गोलियों की तरह इनका व्यवहार मधुर होता है। उनके होने से मन में सन्तुष्टि का भाव रहता है। ऐसा लगता है कि कोई तो हमारा अपना है। इनका साथ अधिक देर तक नहीं रह पाता।
            तीसरे एलोपैथिक इलाज की तरह के लोग इमरजेंसी में काम आते हैं। यह उपचार पद्धति एमरजेंसी में बहुत काम आती है। पहले लोग अपने घरेलू इलाज करते रहते हैं, दवाइयाँ खाते रहते हैं।  इसलिए जब कोई उपाय काम नहीं आता तब इस पद्धति की ओर इमरजेंसी में जाते हैं। इस उपचार की भी कोई गारण्टी नहीं होती कि मरीज पूरी तरह स्वस्थ हो जाएगा। इस उपचार के साइड इफेक्ट बहुत होते है। यानी यह उपचार कब क्या साइड इफेक्ट दिख दें, कोई भरोसा नहीं है।
          इसी प्रकार इस श्रेणी के लोग भी होते हैं। वे इमरजेंसी में काम तो आते हैं। जब और कोई सहारा नहीं दिखाई देता, उस समय इन लोगों की याद आती है। उन पर सदा विश्वास नहीं किया जा सकता। पता नहीं चलता कि वे कब, किस समय रंग बदल जाएँ। कहने का तात्पर्य यह है कि इनके साइड इफेक्ट्स होते हैं। इसलिए ये विश्वसनीय नहीं होते। इन लोगों पर पूर्णरूपेण विश्वास करना बहुत कठिन होता है। जब ये गिरगिट की तरह अपना रंग बदल लेते हैं तो उस समय सहायता करने वाले के रहस्यों को उद्घाटित भी कर सकते हैं। ऐसे लोग जितनी सहयता नहीं करते उससे अधिक गाते हैं। ऐसी स्थिति में लगता है कि इनसे सहायता न ली होती तो अच्छा होता।
           साररूप में कह सकते हैं कि निस प्रकार 'हर दोस्त जरूरी होता है' उसी प्रकार हर उपचार पद्धति की भी आवश्यकता होती है। हर पद्धति पसर लोगों को विश्वास होता है, तभी वे उपचार करवाते हैं। इसी प्रकार जीवन में हर प्रकार के साथियों की आवश्यकता होती है। किसी की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। यानी हर उपचार पद्धति, हर प्रकार के मित्र जीवन नैया को चलाने के लिए चाहिए होते हैं। इसलिए किसी का भी तिरस्कार नहीं करना चाहिए। बस अपनी सोच का दायरा विस्तृत करने की जरूरत होती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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