गुरुवार, 2 अगस्त 2018

घर घुस्सू बनते हम

आजकल घर घुस्सू बनते जा रहे हैं हम सभी लोग। यानी हम घर में बैठे हुए सभी कार्य कर लेना चाहते हैं। उसका परिणाम यह हो रहा है कि हमारी सोशल लाइफ समाप्त होती जा रही है। हम किसी के साथ मिलना-जुलना पसन्द नहीं करते। ऐसे लगता है मानो हमारा समय व्यर्थ हो रहा है। कहने का अर्थ यह है कि जब घर से बाहर जाएँगे ही नहीं तो किसी से इंटरेक्शन किस तरह कर सकेंगे? इस तरह भाई-बन्धुओं और पड़ोसियों में दूरी बढ़ती जा रही है। शहरों में इसका बहुत कुप्रभाव पड़ रहा है। वहाँ तो यह स्थिति बनती जा रही है कि एक पड़ौसी दूसरे पड़ौसी को नहीं पहचानता।
          कुछ दशक पहले वाली संस्कृति कहीं पीछे छूटती जा रही है। जब लोग मिल-जुलकर रहते थे। अपने त्यौहार मिलकर मानते थे। शादी-ब्याह आदि में पूरा कुनबा जुटता था। वैसी मस्ती और उल्लास अब नहीं दिखाई देता। अपने इलाके के सभी लोगों को उनके बच्चों सहित जानते थे। आज लोग अपने पड़ौसी तक के बारे में भी नहीं जानना चाहते। मिलने-जुलने वाली संस्कृति अब मानो दूर की कौड़ी बनती जा रही है। कुछ तो लोग स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगे हैं और दूसरा मोबाइल सब रिश्ते पराए करता जा रहा है।
          हम हर कार्य के लिए मोबाइल पर आश्रित होते जा रहे हैं। बिजली का बिल, पानी का बिल, टेलिफोन का बिल, इन्कम टैक्स, सेल्स टैक्स, हाऊस टैक्स आदि सभी घर बैठे ऑनलाइन दिए जा सकते हैं। इसी प्रकार रेल टिकट, वायुयान या समुद्री जहाज टिकट घर बैठे बुक कर सकते हैं। फ़िल्म का टिकट बुक करवाते हैं। बच्चों के स्कूल या कॉलेज की फीस भी ऑनलाइन जमा करवाई जाती है। देश-विदेश में किसी भी होटल की बुकिंग करवाई जा सकती है।
          कहने का तात्पर्य यह है कि हर काम हम घर बैठे सुविधापूर्वक कर सकते हैं। यानी घर का प्रतिदिन का सामान, सब्जी-फल आदि ऑनलाइन मँगवाए जा सकते हैं। इसी प्रकार घर का फर्नीचर, टीवी, फ्रिज, आभूषण, वस्त्र आदि सभी सामान घर बैठे आ जाते हैं। अब तो घर बैठे हर प्रकार के मैकेनिक भी बुलाए जा सकते हैं। ब्यूटीशियन भी फोन करके घर बुलाए जा सकते हैं।
          कहने का तात्पर्य है कि न कहीं लाइन में लगने की आवश्यकता है और न ही घर से बाहर जाने की जरूरत होती है। इन कामों को निपटाने के लिए विशेष रूप से समय निकालना पड़ता है और लाइनों में लगना पड़ता है। नौकरी अथवा व्यवसाय करने वालों के पास समय का सदा ही अभाव रहता है। उन लोगों के लिए यह ऑनलाइन वाला बहुत तरीका उपयोगी है। ऐसा भी कह सकते हैं कि इससे उनके समय और धन दोनों की बचत हो जाती है और काम भी समय पर हो जाता है। इसलिए जुर्माना नहीं देना पड़ता।
           आज युवावर्ग अपने काम में इतना व्यस्त रहता है कि घर-परिवार के लिए समय नहीं निकाल पता तो इन सब कार्यों के लिए समय निकालना बहुत मुश्किल हो जाता है। शायद इसीलिए उसे यह सुविधा पसन्द आ रही है। दिन के चौबीस घण्टों में जब समय मिले, बिलों का भुगतान कर दिया जाता है। साथ ही अन्य सुविधाओं का उपभोग भी कर लिया जाता है। इन सुविधाओं के कारण जीवन में बहुत-सी परेशानियों का हल निकल आता है और अनावश्यक तनाव भी नहीं होता।
          विज्ञान की इस देन का हम सभी बहुत आभारी हैं। इसके कारण दुनिया मुट्ठी में आ गईं है। इसका मूल्य हम अपने बन्धु-बान्धवों से दूरी बनाकर चुका रहे हैं। जब हम घर से बाहर निकलेंगे ही नहीं तो किसी से संवाद नहीं होगा। केवल फोन पर हाल-चाल जान लेना आवश्यक नहीं होता। शरीरिक तौर पर उपस्थित होना अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। तभी अपने और पराए का भेद जाना जा सकता है। यदि कोई हमसे अपने पड़ौसियों के बारे में जानना चाहे तो हम वहाँ फेल हो जाते हैं। बगलें झांकने लगते हैं। उनसे हाय-हैलो हुए भी तो जमाने बीत जाते हैं।
          सभा-सोसायटी में भी जाना तभी सम्भव हो पाता है यदि वहाँ हमारा कोई स्वार्थ सिद्ध हो रहा हो। अन्यथा कोई बहाना गढ़ कर असमर्थता जता दी जाती है। असामाजिक तत्त्व इस दूरी का लाभ उठाते हैं। इस अन्धी दौड़ में समय व रिश्ते पीछे छूटते जा रहे हैं। अपनों के लिए समय निकालकर ही उनसे सम्बन्ध सुधरे जा सकते हैं। इसके लिए अपने झूठे अहं को त्यागकर मिलते रहना चाहिए। घर से बाहर निकलकर घर-परिवार और भाई-बन्धुओं की सुध लेनी चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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