रविवार, 26 अगस्त 2018

कर्मों की दौलत

अटल सत्य है कि मनुष्य के शुभ कर्मो की दौलत बहुत अमूल्य होती है, वह जन्म-जन्मान्तरों तक मनुष्य का साथ निभाती है, उसके काम आती है। वह खरीदने या बेचने की वस्तु नहीं है, इसलिए उसे न कोई बेच सकता है और न ही खरीद नहीं सकता है। जीवनभर मनुष्य जो भी धन-वैभव कमाता है, वह उसके जीवनकाल तक ही उसका साथ देते हैं। जब आँख बन्द हुई तो फिर किसका वैभव और किसका धन? परिश्रम, ईमानदारी और सच्चाई से अर्जित की हुई समृद्धि ही मनुष्य की अपनी होती है। उस कमाई पर उसे मान होता है और उसमें बहुत बरकत होती है।
          अशुभ कर्मों को हम दौलत नहीं कह सकते। ये हमारे पैरों की बेड़ियाँ होते हैं। बेईमानी, हेराफेरी, चोरबाजारी, भ्रष्टाचार आदि से कमाई हुई दौलत जी का जंजाल होती है। जिस तरह से वह कमाई जाती है, उसी तरह से चली भी जाती है। ऐसा धन अपने साथ बहुत से दुर्व्यसनों को भी लेकर आता है। मनुष्य उस समय मद में डूबा होता है, इसलिए वह कभी समझ ही पाता कि उसके साथ क्या हो रहा है? अन्तकाल में मनुष्य के साथ उसके शुभाशुभ कर्मो की दौलत जाएगी। शुभ कर्म उसे सुख-शान्ति देते हैं औऱ अशुभ कर्म उसे दुख और परेशानियाँ देते हैं।
           ऋचा दूबे ने वाट्सअप पर यह कहानी पोस्ट की थी जो मुझे बहुत अच्छी लगी। इसे कुछ संशोधन आपके साथ साझा कर रही हूँ।
    एक राजा ने अपने राज्य में क्रूरता से बहुत-सी दौलत इकट्ठी की थी। शहर से बाहर जंगल में एक सुनसान जगह पर बनाए हुए तहखाने में उसने सारे खजाने को खुफिया तौर पर छुपा दिया था। खजाने की सिर्फ दो चाबियाँ थी। एक चाबी राजा के पास रहती थी और दूसरी उसके एक खास मन्त्री के पास थी। इन दोनों के अलावा किसी को भी उस खुफिया खजाने का रहस्य मालूम नहीं था। एक दिन किसी को बताए बिना ही राजा अकेले अपने खजाने को देखने निकल गया। तहखाने का दरवाजा खोलकर अन्दर दाखिल हुआ। वह अपने अकूत खजाने को देख-देखकर खुश हो रहा था और उस खजाने की चमक से सुकून पा रहा था।
       संयोगवश उसी समय मन्त्री भी उस इलाके से निकला और उसने देखा की खजाने का दरवाजा खुला है वो हैरान हो गया।  उसने सोचा कि कल रात जब मैं खजाना देखने आया था तब शायद खजाने का दरवाजा खुला रह गया होगा। उसने जल्दी-जल्दी खजाने का दरवाजा बाहर से बन्द कर दिया और वहाँ से चला गया। उधर खजाने को निहारने के बाद राजा जब सन्तुष्ट हो गया और दरवाजे के पास आया तो उसने देखा कि दरवाजा तो बाहर से बंद हो गया है। उसने जोर-जोर से दरवाजा पीटना शुरू किया पर वहाँ जंगल में उसकी आवाज सुननेवाला कोई नहीं था।
         राजा रोता रहा, चिल्लाता रहा पर अफसोस कोई वहाँ नहीं आया। वह थकहार कर खजाने को देखता रहा। अब राजा भूख और प्यास से बेहाल हो रहा था। पागल-सा हो गया था। वह रेंगता-रेंगता हीरों के संदूक के पास गया और बोला, "ए दुनिया के नायाब हीरो मुझे एक गिलास पानी दे दो।"
            फिर मोती, सोने और चाँदी के पास गया और बोला, "ए मोती, चाँदी और सोने के खजाने मुझे एक वक़्त का खाना दे दो।"
         राजा को ऐसा लगा कि हीरे, मोती उसे बोल रहे हों, "तेरे सारी ज़िन्दगी की कमाई तुझे क गिलास पानी और एक समय का खाना नही दे सकती।"
          राजा भूख से बेहोश होकर गिर गया। जब राजा को होश आया तब सारे मोती-हीरे बिखेरकर दीवार के पास उसने अपना बिस्तर बनाया और उस पर लेट गया। वह दुनिया को एक सन्देश देना चाहता था लेकिन उसके पास कागज़ और कलम नही था। राजा ने पत्थर से अपनी उँगली काटी और बहते हुए खून से दीवार पर कुछ लिख दिया। उधर मंत्री और पूरी सेना लापता राजा को ढूंढते रहे पर बहुत दिनों तक राजा नहीं मिला तो मन्त्री राजा के खजाने को देखने आया। उसने देखा कि राजा हीरे-जवाहरात के बिस्तर पर मरा पड़ा है। उसकी लाश को कीड़े खा रहे थे। राजा ने दीवार पर अपने खून से लिखा हुआ था कि यह सारी दौलत एक घूँट पानी और रोटी का एक निवाला तक नही दे सकी।
           यह कहानी हमें शिक्षा देती है कि मनुष्य का इकट्ठा किया हुआ सारा भौतिक ऐश्वर्य यहीं इसी धरती पर ही रह जात है। राजा को अपार दौलत एक गिलास पानी नहीं पिला सकी और एक समय का खाना नहीं खिला सकी। उसका अकूत खजाना धरा-का-धरा रह गया और वह परलोक की यात्रा के लिए भूखा-प्यासा चला गया। यह अमूल्य मानव जीवन बड़े पुण्य कर्मों के पश्चात मिलता है। इस जीवन को व्यर्थ ही बर्बाद न करके इसे देश, धर्म और समाज की भलाई के कार्यों में लगाकर, इसे सफल बनाना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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