शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

कल्पवृक्ष

हम लोगों ने देवलोक में होने वाले कल्पवृक्ष और कामधेनु के विषय में पढ़ा भी है और सुना भी है। कहते हैं ये दोनों मनुष्य की मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर मनुष्य जो भी कामना करता है, वह अवश्य पूर्ण हो जाती है। हमारे शरीर में हमारा मस्तिष्क कल्पवृक्ष की भाँति होता है। मनुष्य जिस चीज की उत्कट कामना करता है, वह देर-सवेर उसे अवश्य मिल जाती है। जैसी-जैसी कामना वह करता है, उसी के अनुरूप निश्चित ही उसे उसका फल मिलता रहता है।
           जीवन में आगे बढ़ने के लिए मनुष्य को अपने विचारों पर नियन्त्रण रखना चाहिए। मनुष्य के विचारों से ही उसका जीवन स्वर्गमय बनता है या नरकमय। जीवन में सुख या दुख आते हैं, उसके लिए बहुधा उसकी सोच कारण बनती है। मनुष्य के विचार अलादीन के चिराग की तरह होते है। उनसे वह जो माँगता है वह उसे मिल जाता है। यदि उसकी सोच सकारात्मक होगी तो वह अपने जीवनकाल में सकारात्मक कार्य करके प्रसिद्ध हो जाता है और अनुकरणीय बन जाता है।
            इसके विपरीत कुछ लोगों को जीवन में दुख-परेशानियाँ ही मिलती हैं क्योंकि वे सदा अशुभ की ही कामना करते हैं। मनुष्य पहले छककर खा लेता है, फिर कहता है अब तो पेट में दर्द होगा या गैस बनेगी और परेशान करेगी। वास्तव में वैसा हो जाता है। बारिश में मजे लेकर भीगता है और साथ ही कहता है अब तो मुझे खाँसी-जुकाम या बुखार हो जाएगा। अन्ततः वह बीमार पड़ जाता है। कभी कहता है कि कहीं मेरा पैर फिसल गया तो टाँग में फ्रेक्चर हो जाएगा। जरा-सा कष्ट अथवा परेशानी का सामना करना पड़ जाए तो वह अपनी किस्मत को कोसने लगता है। फिर तो सचमुच ही उसकी किस्मत उसे धोखा दे जाती है यानी खराब हो जाती हैं। बड़े-बुजुर्ग कहते हैं-
             जैसी सोच वैसी मुराद।
            इस प्रकार हमारा अवचेतन मन कल्पवृक्ष की तरह हमारी इच्छाओं को ईमानदारी से पूर्ण कर देता है। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह अपने मस्तिष्क में सुविचारों को प्रवेश करने की अनुमति दे और कुविचारों को झटक दे। यदि कुविचार मानस में समा जाएँगे तो फिर उनका दुष्परिणाम उसे अवश्य ही भुगतना पड़ेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को सदा सकारात्मक विचारों को प्रश्रय देना चाहिए और नकारात्मक विचारों से मुँह मोड़ लेना चाहिए।
           इसी सम्बन्ध में एक कहानी वाट्सअप पर पड़ी थी, कुछ संशोधन के बाद आपके साथ साझा कर रही हूँ। किसी घने जंगल में कल्पवृक्ष की भाँति एक इच्छापूर्ति वृक्ष था। उसके नीचे बैठ कर कोई भी मनुष्य कामना करता था तो वह तत्क्षण पूर्ण हो जाती थी। यह बात बहुत कम लोग जानते थे। उस घने जंगल में जाने का कोई साहस ही नहीं जुटा पाता था। संयोग से एक बार थका हुआ व्यापारी उस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया। थकावट के कारण उसे पता ही नहीं चला कि कब वह सो गया। जागते ही उसे बहुत जोर की भूख लगी, उसने आस पास देखकर सोचा- "काश कुछ खाने को मिल जाए और मेरा पेट भर जाए।"
          तत्काल स्वादिष्ट पकवानों से भरी थाली हवा में तैरती हुई उसके सामने आ गई। व्यापारी ने भरपेट खाना खाया और भूख शान्त होने के बाद सोचने लगा, "काश कुछ पीने को भी मिल जाता तो अच्छा होता।"
             तत्काल उसके सामने हवा में तैरते हुए अनेक शरबत आ गए। शरबत पीने के बाद वह आराम से बैठ कर सोचने लगा, "कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ। हवा से खाना-पानी प्रकट होते पहले कभी नहीं देखा है और न ही सुना है। अवश्य ही इस पेड़ पर कोई ऐसा भूत रहता होगा जो पहले खिला-पिलाकर बाद में मुझे भी खा जाएगा।"
          उसके ऐसा सोचते ही पलक झपकते उसके सामने एक भूत आ गया और उसे खा गया।
          यह कहानी हमें यही समझा रही है कि मनुष्य की जैसी सोच होती है, उसे वैसा ही फल मिलता है। यदि उसने नकारात्मक न सोचा होता तो शायद वह उस जंगल से सुरक्षित निकल जाता। घर जाकर परिवार के साथ आराम से रहता। परन्तु ऐसा हो नहीं सका। अपनी नकारात्मक सोच के कारण उसकी मृत्यु वहीं जंगल में ही हो गई। अपने आसपास ऐसी विचारधारा के लोग हमें मिल जाते हैं। कई बार उन पर क्रोध भी आता है कि जब पता है कि फ़लाँ कार्य करके हानि होगी तो उस काम को करो ही नहीं। यदि कर लिया तो फिर परेशान मत होवो।
           हम अपनी सोच का दायरा जब तक नहीं बदलेंगे, तब तक सुखी नहीं रह सकते, दुख और कष्ट हमें सताते ही रहेंगे। अपने कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर शुभ की कामना करने से अच्छा ही होगा और सदा अशुभ सोचने से अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम करेंगे। इसलिए सावधानी बरतना बहुत आवश्यक है।
चन्द्र प्रभा सूद
Email : cprabas59@gmail.com
Blog : http//prabhavmanthan.blogpost.com/2015/5blogpost_29html
Twitter : http//tco/86whejp

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें