मंगलवार, 28 अगस्त 2018

टीवी, सिनेमा का प्रभाव

टी वी सीरियल्स, सिनेमा आदि में दिखाई जाने वाली चकाचौंध, अमीरी, पात्रों का रौबदाब, रुतबा आदि देखकर आज युवा दिग्भ्रमित हो रहे हैं। वे सपने लेते रहते हैं कि वे भी इसी तरह का साम्राज्य अपने लिए जुटा लेंगे। इसलिए वे जिन्दगी की सच्चाइयों से दूर अपने लिए, अपने चारों ओर एक छद्म संसार बसा लेते हैं। फिर उसके लिए जायज-नाजायज सभी प्रकार के हथकण्डे अपनाने लग जाते हैं। अब समस्या यह उठती है कि सुख-सुविधा के सभी साधन कैसे जुटाए जाएँगे?
         आज के युवा रातों रात अमीर या करोड़पति बनने के सपने देखते रहते हैं। उन्हें किसी जीवन मूल्य की कोई परवाह नहीं है। बस पैसा ही उनका भगवान बन जाता है। उसे पाने के लिए वे कुमार्ग की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं। उन्हें सब कुछ थाली में परोसे हुए की तरह ही मिलना चाहिए अन्यथा वे विद्रोही बनते जा रहे हैं। उन्हें समझ में ही नहीं आ रही कि वे कर क्या रहे हैं? वे किस ओर जा रहे हैं? उनके इस जीवन का वास्तव में कोई उद्देश्य है भी या नहीं?
         यही विवेकशून्यता वाली स्थिति उनके पतन का कारण बनती जा रही है। वे लोग देश, धर्म, परिवार और समाज विरोधी गतिविधियों में शामिल होते जा रहे हैं। इसके लिए चोरी-डकैती करना, दूसरों का गला काटना, धोखा देना, नशीले पदार्थों का विक्रय करना, सुपारी लेकर हत्या करना, भ्रष्टाचार करना, आतंकवादी गतिविधियों के अन्जाम देना, लूटपाट करना जैसे दुकर्मों में प्रवृत्त होते जा रहे हैं। उन्हें बस पैसा चाहिए, वह चाहे किसी भी तरीके से आए। इसके लिए उन्हें यदि अपने किसी प्रिय की बलि भी देनी पड़ जाए तो वे इसके लिए तैयार रहते हैं।
        छोटे शहरों या गाँवों के लोग इस अन्धी और अन्तहीन दौड़ का शिकार बहुत सरलता से बन जाते हैं। वहाँ के अभावों से घबराकर वे गलत लोगों हाथ की कठपुतली बन जाते हैं। अपने माता-पिता की अकूत सम्पत्ति पर गर्व करने वाले अथवा उच्च पदाधिकारियों के बच्चे भी इस मार्ग पर चल पड़ते हैं। उन्हें लगता है कि यदि कहीं क़ानूनी अड़चन आ जाएगी तो उनके माता-पिता अपने धन व पद का उपयोग करके उन्हेँ बचा लेंगे।
        धनी परिवार के युवाओं की यह सोच सर्वथा अनुचित है। सदा उन्हें अपने कार्य-व्यवहार पर लगाम लगनी चाहिए। इससे उनकी और उनके माता-पिता का सम्मान बना रह सकता है। अन्यथा उन नालायक निकल जाने वाले बच्चों के कारण आजीवन उन्हें समाज में शर्मिन्दा होना पड़ता है।
       एक बार इस दलदल में घुस जाने के पश्चात वहाँ से निकल पाना असम्भव हो जाता है। स्वार्थी लोग उन्हें उस कुमार्ग को छोड़ने भी नहीं देते। यदि वे उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर उस मकड़जाल से बाहर निकलना चाहें तो अपने रहस्य सार्वजनिक हो जाने के डर से उनका जीवन समाप्त कर देने से वे नहीं घबराते। यह काँटों भरा मार्ग दूर से ही आकर्षक लगता है। इस मार्ग पर चलने वालों को एक न एक दिन लहूलुहान होना ही होता है।
        मार्ग से भटक रहे युवाओं को सदैव स्मरण रखना चाहिए कि मनुष्य का जन्म बहुत शुभकर्मों के उदय होने से मिलता है। उसे यूँ ही बरबाद नहीं कर देना चाहिए। इस छद्म चकाचौंध से हमारे युवाओं को सावधान रहना चाहिए। उन्हें मौकापरस्त धूर्तों के चँगुल में फंसकर अपने अमूल्य जीवन को नष्ट नहीं करना चाहिए।
       यह मानकर चलना चाहिए कि फ़िल्मी पर्दे पर अथवा टी वी सीरियल में दिखाई जाने वाली समृद्धि मात्र छलावा है, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं है। उसके चक्कर में पड़कर अपने जीवन में काँटे बोने का कार्य न करें। अपने तथा अपनों की प्रसन्नता के लिए वे सही मार्ग का चुनाव करें, जिससे उन्हें जीवन में कभी प्रायश्चित न करना पड़े।
चन्द्र प्रभा सूद
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