मंगलवार, 12 जनवरी 2016

चिकित्सा सुविधाएं

चिकित्सा सुविधाएँ आज विज्ञान की कृपा से सरलता से उपलब्ध हैं। अनेकानेक मल्टी स्पेशिलटी अस्पताल बड़े शहरों में खुल चुके हैं। उन्हें हम फाइव स्टार होटलों की श्रेणी में रख सकते हैं। जितना अधिक पैसा मनुष्य खर्च कर सकता है उतनी ही सुविधाएँ उसे उपलब्ध कराई जाती हैं।
           जितनी ऊपरी चमक-दमक ये हमें दिखाते हैं, उतनी ही अधिक जेब भी काटते हैं। ऐसा भी सुनने में आया है कि यहाँ कार्यरत डाक्टरों को अस्पताल की आय बढ़ाने के लिए टारगेट दिए जाते हैं। इसमें कितनी सच्चाई है मैं तो कम-से-कम नहीं कह सकती। इन अस्पतालों की सबसे बड़ी सुविधा यही है कि एक ही छत के नीचे सभी कार्य हो जाते हैं। रोगी को टेस्ट आदि करवाने के लिए कहीं अन्यत्र नहीं भागना पड़ता।
         आज वे डाक्टर बहुत ही कम रह गए हैं जो नब्ज पकड़ते ही रोग की जड़ तक पहुँच जाते थे। एक रोग को समझने के लिए आजकल के ये डाक्टर न जाने कितने ही टेस्ट करवा लेते हैं। उस पर भी बिमारी ठीक से पकड़ में आ जाएगी कोई गारन्टी नहीं। इस विषय पर भी सोशल मीडिया टी. वी., समाचार पत्र प्रकाशित करते रहते हैं कि रोग कोई और था, पर इलाज कोई और हो रहा था।
          आज की सबसे बड़ी समस्या है कि नवयुवा डाक्टरों की पीढ़ी में सहनशक्ति का अभाव है। इनकी सोच यही होती जा रही है कि जरा सी भी परेशानी हो शरीर का अंग काटकर फैंक दो। वे लोग उसके बाद होने वाले दुष्परिणामों को भोगने के लिए रोगी को छोड़ देते हैं।
          हो सकता है इसके पीछे यही कारण हो कि वे सोचते हैं कि लाखों रुपए खर्च करके पढ़ाई की है तो उसे वसूल लें। वे भूल जाते हैं कि बहुत नोबल व्यवसाय है डाक्टरी पेशा। डाक्टर को हम भगवान के समान मानते हैं। उससे यही आशा की जाती है कि वह अपने मरीज को उचित परामर्श दे और उसका ध्यान बिना किसी लालच के करे।
          ऐसे बहुत से किस्से हमने सुने हैं और टी.वी. के अनेक चैनलों पर दिखाए जाने वाले शो में भी देखते हैं, जहाँ रोगियों के साथ अन्याय किया जाता है। कभी-कभी किसी रोग का आपरेशन करते समय उसके शरीर के दूसरे अंग को निकालकर उसे महंगे दामों में बेच दिया जाता है। ऐसे रेकेट चलते रहते हैं।
            समय बीतने पर जब उसको कोई अन्य शारीरिक समस्या सामने आती है तब पता चलता है कि रोगी का कोई अंग विशेष निकाल लिया गया है। तब पीड़ित व्यक्ति ठगा-का-ठगा रह जाता है। फिर वह पुलिस में शिकायत करता है और अदालतों के चक्कर लगाता रह जाता है।
          ऐसे भी एपीसोड टी.वी. पर दिखाए गए हैं जिनमें नवजात शिशु को बेच दिया गया अथवा उन्हें पैसो के लालच में बदल दिया गया। यहाँ तक भी कह दिया गया कि उनके घर मृत बच्चे ने जन्म लिया है। ऐसा दुष्कर्म करते समय इन लोगों को उन बेचारे माता-पिता के दुख का भी ध्यान नहीं आता। दिल दहलाने वाले ये हादसे हैरान कर देते हैं।
         मेडिक्लेम के कारण रोगी आश्वस्त हो जाता है कि कोई भी रोग आ जाए उसके इलाज में कोई कमी नहीं रहेगी। शायद यही उसके जंजाल का कारण भी बनता जा रहा है। इस मेडिक्लेम का दुरुपयोग यही है कि आवश्यकता न होने पर भी रोगी को ऐसे डरा दिया जाता है कि उसे लगता है कि आप्रेशन के अतिरिक्त उसके पास कोई और उपाय नहीं है। इसका जिक्र भी टी.वी. व समाचार पत्रों में होता रहता है।
       सरकारी अस्पतालों की बदहाली के कारण लोग वहाँ इलाज के लिए जाना नहीं चाहते और इन लुभावने नामों के पीछे भागते हैं। इसी का फायदा उठाकर ये लोग बकरा हलाल करने वाली प्रवृत्ति के बनते जा रहे हैं।
         इसकी चर्चा भी समाचार पत्रों आदि में होती रहती है कि पैसे के लालच में ये इतने अन्धे हो गए हैं कि रोगी की मृत्यु हो जाने की सूचना एक-दो दिन बाद उसके परिजनों को दी गई।
       जगमग चमकते हुए ये सभी अस्पताल लोगों के जीवन में कितनी रोशनी कर पाते हैं, बस यही देखना और समझना है।
चन्द्र प्रभा सूद
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