शनिवार, 16 जनवरी 2016

सावधानी पूर्वक कार्य करना

किसी भी कार्य को सावधानी पूर्वक करना चाहिए। कार्य की सफलता के लिए मनुष्य के पास दो रास्ते होते हैं। एक रास्ता होता है शार्टकट वाला, यानि गलत मार्ग। जबकि दूसरा रास्ता लम्बा और सीधा होता है। 
         यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह कितना धैर्यशाली है? वह किस मार्ग का चुनाव करता है?
          मनुष्य यदि धैर्यवान् एवं निष्ठावान् होगा तो वह अपने लक्ष्य को पाने के लिए प्रयास करेगा। दिन-रात मेहनत करके अपने उद्देश्य में अवश्य सफल होगा। उसे अपने रास्ते पर चलते हुए अनेक प्रलोभन दिए जाते हैं, अनेक कठिनाइयाँ उसका रास्ता रोकती हैं। वह लगनशील व्यक्ति उन प्रलोभनो से किनारा करता हुआ, सभी कठिनाइयों को सुलझाता हुआ अपने सीधे रास्ते पर चलकर मंजिल तक पहुँच जाता है। ऐसे ही कर्त्तव्यनिष्ठ पुरुषार्थियों का लक्ष्य उनका रास्ता बड़ी ही बेसबरी से देखता है।
            इनके विपरीत सुविधाभोगी लोग हमेशा सरल मार्ग ढूँढते रहते हैं। इस सरलता की खोज करते हुए वे यदा कदा भटक जाते हैं और गलत हाथों में पड़ जाते हैं। उनके समाज और न्याय व्यवस्था के अपराधी बनने में देर नहीं लगती।
          अधीरता सदा ही हानिकारक होती है। उसके दूरगामी परिणाम निराशाजनक होते हैं। जल्दबाजी में भी जो कार्य किए जाते हैं वे सुलझने के स्थान पर उलझ जाते हैं। तब मनुष्य उनको सुलझाने में और अधिक दुखी हो जाता है।
            'महाभारत' के शान्तिपर्व में वेद व्यास जी कहते हैं -
          नासम्यक् कृतकारी स्यात् अप्रमत्त: सदा भवेत्।
           कण्टकोSपि हि दुश्छिन्नो विकारं कुरुते चिरम्॥
अर्थात् अनुचित तरीके से काम नहीं करना चाहिए, सदा सावधान रहना चाहिए। काँटा भी यदि सही ढंग से न निकाला जाए तो वह भी हानिकारक होता है।
            इस श्लोक का यही कथन है कि हमेशा चौकस रहना चाहिए। गलत तरीके से किए गए कार्य का परिणाम दुखदायी होता है यहाँ काँटे का उदाहरण देते हुए वे कह रहे है कि यदि काँटा चुभ जाए तो उसे ध्यान से निकालकर फैंक देना चाहिए। यदि उसका कुछ भी अंश शरीर में बचा रह जाए तो नासूर बन जाता है। तब आपरेशन करवा  करके उसे निकलवाना पड़ता है। फिर कोई गारंटी नहीं कि मनुष्य पूर्णरूपेण ठीक हो पाएगा।
          उसी प्रकार अपनी सुविधा के लिए पथभ्रष्ट होकर कुमार्ग का अनुसरण करने वाले व्यक्ति की भी कोई गारंटी नहीं है कि वह समाज के लिए नासूर नहीं बन जाएगा। अथवा पूरे मन से सन्मार्ग का पुन: पथिक बन सकेगा। यदि वह मुख्य धारा का मन से अनुगामी बन जाए तो उसका सौभाग्य होगा।
           यदि वह अपने कुमार्ग का परित्याग नहीं करता तो समाज ही उसका बॉयकाट कर देता है। उसे सम्मान के स्थान पर तिरस्कार मिलता है। वह नासूर बनकर समाज को दूषित न करे इसलिए उसे अलग-थलग करके सलाखों के पीछे धकेल दिया जाता है। उसके अपने प्रियजन भी समाज के डर से उस समय उससे किनारा कर लेते हैं।
         गलत तरीके से कमाया हुआ धन-वैभव, अर्जित की गई विद्या अथवा अन्य कोई सम्मान समय बीतते सबके समक्ष प्रकट हो जाते हैं। तब मनुष्य को अपनी पोल खुल जाने पर सबके सामने सिर नीचा करना पड़ता है।
            मनीषी जन इसीलिए उचित मार्ग से अपने कार्यों की सिद्धि और अनुचित मार्ग का त्याग करने का परामर्श देते हैं। जीवन में कल्याण की कामना करने वाले मनुष्यों को इस आत्म अनुशासन का मन से पालन करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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