मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

अभ्व्यक्ति की स्वतंत्रता

अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता हमारा भारतीय संविधान हर भारतवासी को देता है। अपने विचारों का अदान-प्रदान करना आवश्यक होता है। यदि अपने विचारों को दूसरों के समक्ष न रख सकें तो कोई हमारे विषय में जान नहीं सकेगा।
           स्वतन्त्रता का अर्थ उच्छ्रंखलता कदापि नहीं होता। मर्यादित विचारों की अभिव्यक्ति जहाँ मन को प्रफुल्लित करती है वहीं श्रोता को भी अभिभूत करती है। यहाँ आत्मानुशासन की लगाम का होना बहुत अनिवार्य होता है। जब तक सद् बुद्धि का चाबुक न पकड़ा जाए तब तक विचारों के प्रदूषित होने का खतरा मंडराता रहता है। यह दूषण सहृदय जनों के कष्ट का कारण बनता है। इससे हर बुद्धिमान व्यक्ति को बचना चाहिए।
           बोलने से पहले मनुष्य को दस बार सोचना चाहिए कि कहीं ऐसा कुछ न कह दिया जाए जो सामने वाले को आहत कर दे अथवा उसके आत्मसम्मान को ठेस लग जाए। शब्द रूपी बाणों से यदि किसी को घायल कर दिया जाए तो मर्मान्तक पीड़ा होती है। इसीलिए हमारे मनीषी कहते हैं -'पहले तोलो फिर बोलो।'
          जिस मनुष्य को अपनी वाणी पर नियन्त्रण नहीं है वह इन्सान कहलाने के योग्य ही नहीं है। यही वाणी मनुष्य को सबके सिरों पर बिठाकर यश और मान देती है। दूसरी ओर सबकी नजरों से गिराकर अपमान का दंश झेलने के लिए विवश करती है।
           जिस देश में हम रहते हैं, जिसका अन्न खाते है, जिसका जल पीते हैं, उसके प्रति हमारा दायित्व बढ़ जाता है। जिस मातृभूमि की गोद में खेलकर बड़े हुए हैं, उसका सम्मान करना बहुत ही आवश्यक है। विश्व के किसी भी व्यक्ति को अथवा किसी भी देशवासी को यह अधिकार नहीं है कि वह उसका अपमान करे। चाहे जननी हो अथवा जन्मभूमि हो, इन दोनों का निरादर करने वालों को किसी भी सूरत में क्षमा नहीं किया जा सकता।
          अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए देश का सौदा करने वालों और  उसके साथ द्रोह करने वालों को नरक में भी स्थान नहीं मिलता। ईश्वर भी ऐसे अहसानफरामोशों से नाराज हो जाता है।
           सोशल मीडिया, समाचार पत्रों, टी.वी. चैनलों और रेडियो सबका नैतिक दायित्व है कि वे सभी एकजुट होकर देश विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों के विरूद्ध जनजागरण की मुहिम चलाकर उन देशद्रोहियों को उनके अन्जाम तक पहुँचाने में सरकार की सहायता करें।
          राजनेताओं का दायित्व बनता है कि वे अपने देश के प्रति वफादारी निभाएँ और जन साधारण को भी जागरूक बनाएँ। देशद्रोहियों को अनावश्यक प्रश्रय न दें। तुच्छ राजनैतिक लाभ के लिए देश को हानि पहुँचाने के बारे में स्वप्न में भी न सोचें।
            जो भी व्यक्ति देश में अलगाव की स्थितियाँ पैदा कर रहे हैं अथवा देश की अखण्डता पर प्रहार कर रहे हैं, उन सब देशद्रोहियों को किसी प्रकार की सुरक्षा प्रदान न करके उन्हें अविलम्ब कानून के हवाले करके राजद्रोह का अभियोग चलाना चाहिए। किसी भी तरह की रियायत न देकर कठोर-से-कठोर दण्ड देकर उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति हमारे देश भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का दुस्साहस न कर सकें।
           जो लोग केवल अपने अधिकारों की दुहाई देते हैं और उन्हें कर्त्तव्यों का भान नहीं है, उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से वंचित कर देना चाहिए। जो सब लोग स्वतन्त्रता पाने के इच्छुक हैं, उनके समक्ष उसका सदुपयोग करने की शर्त रखी जानी चाहिए ताकि कोई भी उसका दुरूपयोग न कर सके।
           केवल सरकार या कानून को इसके लिए कभी भी चाबुक न चलाना पड़े बल्कि आत्मानुशासन का पालन करके बोलने की स्वतन्त्रता का आनन्द उठाना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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