मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

अंतस की धूल हटाएँ

लौकिक या ईश्वरीय कोई भी सम्बन्ध ऐसा ही नहीं है जिसके लिए हमारे मनों पर धूल नहीं जमती। जब तक वहाँ धूल जमी रहती है तब तक सब धुँधला-धुँधला दिखाई देता है। जब उस धूल को हटाकर सफाई कर देते हैं तब सब पारदर्शी हो जाता है।
          यह सब कहने का यही अभिप्राय है कि हर रिश्ता प्यार और विश्वास पर टिका होता है। जितना हम एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील रहेंगे, वह सम्बन्ध उतना ही अधिक करीबी बन जाता है।
          अब सोचने वाली है कि यह कौन-सी धूल है जिसकी यहाँ चर्चा की जा रही है? मन पर यह कैसे जम जाती है? इसे साफ कैसे किया जा सकता है?
           ईर्ष्या, द्वेष, काम, क्रोध, मोह, माया, लालच, अहंकार आदि की धूल हमारे मन पर जम जाती है। हम प्राय: आवेश में आ जाते हैं। किसी दूसरे की भौतिक उन्नति, समृद्धि, वैभव, ज्ञान आदि को हमारा अहं सहन नहीं कर पाता। इसीलिए हम दूसरों  की ओर से उदासीन हो जाते हैं और दूरी बना लेते हैं। हम अपने बन्धु-बान्धवों के बीच भेदभाव की दीवारें खड़ी करते रहते हैं। सम्बन्धों के बीच नफरत के बीज बोते रहते हैं।
         धीरे-धीरे समय बीतने पर सारी यादें धुँधली पड़ जाती हैं। इस कारण हमारे मनों में दरारें पड़ने लगती हैं। हमें सब कुछ बदरंग दिखाई देने लगता है। कुछ भी साफ नहीं दिखता। यदि हम इनसे पीछा छुड़ाना  चाहते हैं तब हमारा अहं आड़े आ जाता है। तब हम चाहकर भी अपनी दुर्भावनाओं से मुक्त नहीं हो पाते और हमारे मनों में जमी हुई धूल बढ़ती जाती है।
            हमारे अपने घर में जो भी फर्नीचर होता है, उसे हम प्रतिदिन झाड़-पौंछकर साफ करते हैं, उसे चमकाकर सजाते हैं। इसी तरह अपने घर को भी शीशे की तरह चमकाते हैं ताकि वहाँ आने-जाने वाला हर व्यक्ति हमारे सलीके की प्रशंसा करे। घर यदि साफ-सुथरा होता है तो वहाँ सकारात्मक ऊर्जा प्रसरित होती है। वह हमारे तन, मन को प्रफुल्लित करती है। इसके विपरीत धूल आदि गंदगी रहने पर नकारत्मक ऊर्जा रहती है जिससे तन और मन दोनों रोगी हो जाते हैं।
           इस प्रकार हम प्रतिदिन धूल को झाड़कर साफ करते हैं। अपने घर के बाहर सड़क पर जमी धूल भी हमें अच्छी नहीं लगती। उसे कितनी भी साफ कर लो फिर दुबारा उस पर धूल हो ही जाती है। हम बार-बार सफाई करते हैं परन्तु धूल भी अपना साम्राज्य फिर से स्थापित कर लेती है।
          अपने मन पर नित्य जम रही धूल के प्रति हम लापरवाह रहते हैं। हम उसे साफ करने अथवा हटाने का कोई प्रयास ही नहीं करते। अपने घर की धूल हमें परेशान करती है पर मन की धूल को हम बड़े प्यार से पालते हैं। उसे अपना मीत बना लेते हैं। उससे हमें तनिक भी चिड़चिड़ाहट नहीं होती।
          यदि हम अपने मन पर पड़ी अथवा विचारों की धूल को दूर करने का यत्न करे तो निश्चित ही सफलता मिलेगी। जब हम इसे हटा देंगे तो हमारे अन्तस् की जड़ता दूर हो जाएगी। वर्षा के बाद जैसे सारी प्रकृति चमकती हुई दिखाई देती है वैसे ही धूल के दूर हो जाने से सब कुछ साफ-साफ दिखाई देता है।
           बन्धु-बान्धवों के प्रति मन में पनपने वाला रोष धुलकर सब चमकता हुआ प्रतीत होता है। मनों में आई हुई मलिनता नष्ट होने लगती है। तब उनको कसौटी पर परखने की आवश्यकता नहीं रहती। मन में आने वाले ग्लानि के भाव सभी को बहुत सुकून देते हैं।
           यथासम्भव अपने अन्तस् की धूल को साफ करने के लिए ईश्वर की उपासना, सद् ग्रन्थों का अध्ययन और सज्जनों की संगति में रहना चाहिए। इससे मनों में सरलता और सहजता का वास होता है। जिससे सहृदयता बढ़ती है। उसे शीशे की तरह चमकाने से सकारात्मक किरणें प्रवाहित होती हैं। वे हमारे पास आने वाले सभी लोगों को प्रभावित करती हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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