बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

क्रोध पर नियंत्रण

मनुष्य के अंतस् में विद्यमान क्रोध उसका सबसे बड़ा शत्रु है। क्रोध में वह इतना पागल हो जाता है कि वह अपने भले-बुरे तक का विवेक तक खो बैठता है। क्रोध में अपशब्द बोलता हुआ अथवा गाली-गलौच करता हुआ, बिना समय व स्थान देखे वह किसी का भी अपमान कर देता है। इसलिए अपने क्रोध पर नियन्त्रण न रख पाने के कारण ऐसा मनुष्य अपने भाई-बन्धुओं से कट जाता है, दूर हो जाता है।
            वैसे यह गुस्सा आता तो अकेला है परन्तु मनुष्य से उसकी सारी अच्छाइयाँ छीनकर ले जाता है। अपने इस गुस्से के कारण उसके सारे सद् गुणों पर मिट्टी पड़ जाती है। उसकी की गई अच्छाइयों को यह दुर्गुण ढक लेता है। तब यह शत्रु क्रोध उसके गुणों पर भारी पड़ने लगता है। लोग उसकी सभी अच्छाइयों और गुणों को विस्मृत कर उसके क्रोधी स्वभाव को याद रखते हैं।
        इसके विपरीत धैर्यवान व्यक्ति का सभी सम्मान करते हैं। इसका यही कारण है कि वह सबकी कमियों को अनदेखा करके उनसे जुड़े रहने का प्रयास करता है। वह किसी का तिरस्कार करने के विषय में सोच ही नहीं सकता। यह धैर्य भी क्रोध की ही भाँति अकेला आता है लेकिन सारी अच्छाई दे जाता है। ऐसे व्यक्ति के बहुत से साथी बन जाते हैं। उसका एक यही गुण उसे प्रथम पंक्ति में लाकर खड़ा कर देता है और उसे सबका प्रिय बना देता है।
           इस कथन से अर्थ कदापि नहीं कि मनुष्य किसी भी परिस्थिति में क्रोध न करे। यदि वह बिल्कुल क्रोध नहीं करेगा तो उस साँप जैसी स्थिति में पहुँच जाएगा जिसने ऋषि के समझाने पर फुफकारना तक छोड़ दिया था। जिन हालातों में उसे क्रोध करना चाहिए और वह सन्त बनकर बैठ जाएगा तो कोई भी उसे नहीं पूछेगा। तब तो वह हिकारत की नजर से देखा जाएगा। इसलिए आवश्यकता होने पर एक सीमा तक क्रोध करना चाहिए परन्तु अति क्रोध में आकर अपना आपा नहीं खोना चाहिए।
            दुर्भाग्य से जब किसी मनुष्य की परिस्थितियाँ विपरीत हो जाती हैं तब व्यक्ति का प्रभाव और उसका पैसा, उसकी सम्पत्ति काम नहीं आती बल्कि उसका सरल और मधुर स्वभाव तथा दूसरों के साथ बनाए हुए उसके सम्बन्ध काम आते हैं। उन्हीं के कारण वह अपने कष्टकारी समय में जूझने का सामर्थ्य जुटा पाने में समर्थ हो पाते हैं।
            मनुष्य को क्रोध के आवेग को नियन्त्रित करने के लिए सबसे पहले उससे होने वाली हानि के विषय में विचार करना चाहिए। उससे सबक लेकर पुनः अपने होने वाले नुकसान से बचना चाहिए।जहाँ तक हो सके दुर्वासा ऋषि की तरह क्रोधी का सर्टिफिकेट पाने से बचना चाहिए।
            समाज से कटकर मनुष्य नहीं रह सकता इसलिए उसे धैर्य धारण करना चाहिए। अन्यथा विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। अपने हितचिन्तकों के मार्गदर्शन का लाभ उठाना चाहिए। यथासम्भव सद् ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिए। यदि हो सके तो योगाभ्यास भी करना चाहिए। इनसे मन शान्त रहता है। अपने कार्यों में मन लगने लगता है और निराशा दूर होने लगती है।
             क्रोध रूपी अपनी कमजोरी को वश में कर लेने से उसे जीवन में पछताना नहीं पड़ता। उसकी अच्छाइयाँ उसके पास सहर्ष लौट आती हैं। उसे मानो जीवन में सब कुछ मिल जाता है। उसके भाई-बन्धु व परिवारी जन सभी उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते। इस प्रकार उसके साथी उससे दूर न जाकर उसके सहायक बन जाते हैं। अतः अपने पैरों पर कुल्हाड़ी न मारते हुए क्रोध से बचने के लिए फूँक-फूँककर कदम रखना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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