गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

मन की बात साझा

मनुष्य अपने मन की बात केवल उस व्यक्ति से साझा करता है जो उसका अन्तरंग होता है। इसके पीछे यही भाव होता है कि वह व्यक्ति उसका विश्वासपात्र है। वह उससे अपनी परेशानी अथवा प्रसन्नता बाँट सकता है। उसकी बातों का बढ़ा-चढ़ाकर, चटखारे लेकर वह किसी के सामने बखान नहीं करेगा। उसके सामने या पीठ पीछे उसके लिए अपमानजनक स्थितियाँ नहीं बनने देगा।
           यदि कभी ऐसी विपरीत परिस्थिति बनती है तो वह हितैषी उसकी पीठ पीछे भी उसके विरूद्ध कुछ नहीं कहेगा अपितु उसका पक्ष लेकर विरोधियों का प्रतिकार ही करेगा, उन्हें बुराई नहीं करने देगा।
          अंग्रेजी भाषा में दो शब्द हैं ओपन और क्लोज। इन शब्दों को हम सभी अपने प्रतिदिन के जीवन में प्राय: सुनते हैं और प्रयोग भी करते हैं। व्यावहारिक जीवन में कोई मनुष्य उसी व्यक्ति के समक्ष सबसे अधिक ओपन हो पाता है अथवा खुल पाता है, वह सबसे अधिक जिसके क्लोज होता है अथवा करीब होता है।
           किसी भी मनुष्य का सौभाग्य होता है कि उसके पास कोई शुभचिन्तक हो। वह चाहता है कि ऐसे व्यक्ति के सामने वह अपने मन की सारी परतें खोलकर रख दे। हर प्रकार से वह उसे सान्त्वना प्रदान करे, उसके जख्मों पर अपने सहानुभूतिपूर्ण वचनों से मलहम लगाए। उसका व्यवहार ऐसा हो कि जिससे उस मनुष्य के पास जाकर वह अपनी सारी परेशानियों से उभरने के लिए मार्गदर्शन प्राप्त कर सके।
            ऐसा हितचिन्तक सज्जन, मित्र अथवा घर-परिवार का कोई भी व्यक्ति हो सकता है। ये सहृदय व्यक्ति विशेष सरल होते हैं। सबका हित साधना उनका उद्देश्य होता है। वे 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना रखते है और सबको अपना समझते हुए उनकी भलाई करने के लिए कटिबद्ध रहते हैं। उनके लिए कोई भी मनुष्य पराया नहीं होता।
            वे सब लोगों के साथ समानता का व्यवहार करते हैं। धर्म, जात-पात, रंग-रूप, ऊँच-नीच आदि की दीवारों में कैद नहीं होते। उनके लिए सभी बराबर होते हैं। इन सब पचड़ों से दूर रहकर प्राणिमात्र का भला करते हैं।
          अपने सुकर्मों के कारण वे समाज में अपना एक स्थान बना पाते हैं। दुनिया उन्हें अपनी आँखों का तारा बना लेती है। इस दुनिया से विदा लेने के पश्चात भी वे सबके हृदयो में विराजमान रहते हैं। लोग उनको भूल नहीं पाते। उनके द्वारा किए गए उपकारों को याद करते रहते हैं।
           जो लोग किसी के लिए भी विश्वास के योग्य नहीं होते, वे कदापि अच्छे इन्सान नहीं कहलाते। इस पृथ्वी पर एक बोझ की तरह जन्म लेते हैं और अपने पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ईश्वर द्वारा दिए गए अपने समय को पूरा करके इस दुनिया से कूच कर जाते हैं। इनकी न समाज में पूछ होती है और न ही अपने घर में। उनके साथ हुए कटु अनुभवों के कारण उन्हें लोग याद ही नहीं रखना चाहते। वे लोगो द्वारा भुला दिए जाते हैं।
          मनुष्य को यत्नपूर्वक ऐसे हितैषियों को खोजना चाहिए जो उसकी उम्मीदों पर खरे उतर सकें। उसके सुख-दुख के साथी बनकर वे उसे अपने कलेजे से लगाकर रखें। उसके सारे दुखों और परेशानियो को अपना समझकर उसकी हर प्रकार से रक्षा और सहायता करें। उनकी शरण में जाकर वह स्वयं को सहज अनुभव कर सके। ऐसे स्वार्थरहित महानुभावों की सत्संगति का लाभ उठाकर मनुष्य इहलोक के सम्पूर्ण आनन्दों का लाभ उठा सके।
            इसके साथ ही वे मनुष्य को अपने कर्त्तव्यों के पालन करने का बोध कराएँ, ताकि मनुष्य एक अच्छा इन्सान बनकर देश, धर्म, समाज और घर-परिवार के सभी दायित्वों को निभाने वाला बनकर समाज का प्रिय बन सके।
चन्द्र प्रभा सूद
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