गुरुवार, 19 मई 2016

पति-पत्नी का सम्बन्ध जन्मों का

पति-पत्नी की जोड़ी ईश्वर बनाकर भेजता है, ऐसा सभी मानते हैं। इसीलिए कहते हैं कि जोड़ियाँ ऊपर से बनकर आती हैं। इसमें हमारे पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ही ये संयोग बनता है। इसके लिए किसी की च्वाइस का प्रश्न ही नहीं उठता। अतः उस रिश्ते की पवित्रता व गरिमा बनाए रखना और उसे बिना किसी शिकवा-शिकायत के निभाना हम सभी मनुष्यों का नैतिक दायित्व है। अन्य सभी रिश्ते इस एक रिश्ते पर कुर्बान किए जा सकते हैं।
        भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप की परिकल्पना इसी सत्य को ही उजागर करती है। महाकवि कालिदास ने पति-पत्नी को शब्द और अर्थ की तरह परस्पर मिला हुआ कहा है, जिन्हें अलग नहीं किया जा सकता। जिस प्रकार शब्द को अर्थ से और अर्थ को शब्द से अलग करना असम्भव है, उसी प्रकार पति और पत्नी को अलग-अलग ईकाई मानना भी सर्वथा गलत है। इसीलिए उनके दोनों के लिए एक शब्द 'दम्पत्ति' का प्रयोग किया जाता है। उन्हें दो जिस्म और एक जान कहा जाता है।
         वाटसअप पर किसी ने यह कहानी पोस्ट की थी, जो हम सभी को इस रिश्ते की वास्तविकता को समझाती है। किसी कॉलेज में Happy married life पर एक  workshop हो रही थी, उसमें शादीशुदा जोड़े भाग ले रहे थे। जब प्रोफेसर मंच पर आए तो उन्होंने नोट किया कि सभी पति-पत्नी शादी पर जोक सुनाकर हँस रहे थे। यह देख कर प्रोफेसर ने कहा कि चलो पहले एक खेल खेलते है। उसके बाद अपने विषय पर बातें करेंगे।
         सभी लोग खुश हो गए और उन्होंने खेल के विषय में पूछा? तब प्रोफ़ेसर ने एक शादीशुदा लड़की को खड़ा किया और कहा कि तुम ब्लेक बोर्ड पर ऐसे 25-30 लोगों के  नाम लिखो जो तुम्हें सबसे अधिक प्रिय हों। लड़की ने पहले अपने परिवार के लोगों के नाम लिखे फिर अपने सगे सम्बन्धियों, दोस्तों, पड़ोसियों और सहकर्मियों के नाम लिख दिए।
           अब प्रोफ़ेसर ने उसे उनमें से कोई भी कम पसंद वाले 5 नाम मिटाने के लिए कहा। लड़की ने अपने सहकर्मियों के नाम मिटा दिए। प्रोफेसर ने उसे और 5 नाम मिटाने के लिए कहा। लड़की ने थोडा सोचकर अपने पड़ोसियों के नाम मिटा दिए। अब प्रोफ़ेसर ने और 10 नाम मिटाने को कहा। लड़की ने अपने सगे सम्बन्धी और दोस्तों के नाम मिटा दिए।
        अब बोर्ड पर सिर्फ 4 नाम बचे थे जो उसके मम्मी-पापा, पति और बच्चे का नाम था। अब प्रोफ़ेसर ने कहा इसमें से और 2 नाम मिटा दो। लड़की असमंजस में पड़ गयी। बहुत सोचने के बाद बहुत दुखी होते हुए उसने अपने माता-पिता का नाम मिटा दिया।
         सभी लोग स्तब्ध और शान्त बैठे थे क्योकि वे जानते थे कि ये गेम सिर्फ वह लड़की ही नहीं खेल रही थी, उनके दिमाग में भी यही सब चल रहा था। अब सिर्फ 2 ही नाम बचे थे उसके पति और बेटे का। प्रोफ़ेसर ने एक और एक नाम मिटाने के लिए कहा। लड़की अब बहुत सहमी गयी। बहुत सोचने के बाद रोते हुए उसने अपने बेटे का नाम मिटा दिया।
          प्रोफ़ेसर ने  उस लड़की से कहा तुम अपनी जगह पर जाकर बैठ जाओ और सभी की तरफ गौर से देखा और पूछा- 'क्या कोई बता सकता है कि ऐसा क्यों हुआ कि सिर्फ पति का ही नाम बोर्ड पर रह गया।'
           कोई भी इस प्रश्न उत्तर नहीं दे सका। सभी मुँह लटकाकर बैठे हुए थे। प्रोफ़ेसर ने फिर उस लड़की को खड़ा किया और ऐसा करने का कारण पूछा। जिन्होंने तुम्हें जन्म दिया और पाल-पोसकर इतना बड़ा किया उनका नाम तुमने मिटा दिया और तो और तुमने अपनी कोख से जिस बच्चे को जन्म दिया, उसका भी नाम तुमने मिटा दिया? लड़की ने जवाब दिया कि अब मम्मी-पापा बूढ़े हो चुके हैं, कुछ साल बाद वे मुझे और इस दुनिया को छोड़कर चले जाएँगे। मेरा बेटा जब बड़ा हो जाएगा तो
जरूरी नहीं कि वह शादी के बाद मेरे साथ ही रहे।
        लेकिन मेरे पति जब तक मेरी जान में जान है, तब तक मेरा आधा शरीर बनकर मेरा साथ निभाएँगे। इसलिए मेरे लिए सबसे अजीज मेरे पति हैं। प्रोफेसर और बाकी स्टूडेंट ने तालियों की गूँज से लड़की को सलामी दी।
           प्रोफेसर ने कहा तुमने बिल्कुल सही कहा कि तुम और सभी के बिना रह सकती हो पर अपने आधे अंग अर्थात् अपने पति के बिना नहीं रह सकती। मजाक मस्ती तक तो ठीक है पर हर इंसान का अपना जीवन साथी ही उसको सब से ज्यादा अजीज होता है। सभी पति और पत्नियों के लिए ये वास्तव में सत्य है, इसे कभी मत भूलना।
         वास्तव में गृहस्थ जीवन की सच्चाई यही है कि सभी रिश्ते-नातों से हम दूर हो सकते हैं पर पति-पत्नी एक-दूसरे के साथ हाथ थामे हुए जीवन के अन्तिम समय तक साथ निभाते हैं। जीवन साथी में लाख कमियाँ हों परन्तु उन कमियों को अनदेखा करते हुए अपनी जीवन यात्रा पूरी करें। एक बात और कहना चाहती हूँ कि जो पति-पत्नी परस्पर एक-दूसरे को सम्मान नहीं दे सकते उन्हें घर अथवा बाहर कोई नहीं पूछता। स्वार्थी बनकर भी यदि रिश्ता निभाना पड़े तो सौदा महँगा नहीं है। अतः सभी से विनम्र अनुरोध है कि इस सत्य को स्वीकार करते हुए दोनों परस्पर विश्वास और प्रेम को खण्डित न होने दें। फूँक-फूँककर कदम बढ़ाते हुए अपने-अपने जीवन में पारदर्शिता बनाकर रखें। एक-दूसरे के लिए ही जीना और मरना श्रेयस्कर है।
चन्द्र प्रभा सूद
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