शनिवार, 21 मई 2016

अच्छे का फल अच्छा

मनुष्य यदि किसी का बुरा करता है तो वह उसके साथ रहता है और उसका परिणाम उसे भुगतना पड़ता है। यदि वह अच्छा कार्य करता है तो वह पलटकर उसके ही सामने आता है। यानि कि बुराई का फल कष्टदायी होता है और उसकी अच्छाई का फल उसे खुशियाँ देता है। तभी कहते हैं- 'जैसा बोओगे वैसा पाओगे।' अर्थात् की गई अच्छाई या बुराई का परिणाम मनुष्य के सामने आ ही जाता है।
          इसी विषय को स्पष्ट करती एक बोधकथा है कि एक औरत अपने परिवार के लिए प्रतिदिन भोजन पकाती थी। एक रोटी वह किसी भूखे के लिए पकाकर उसे खिड़की के सहारे रख देती थी, जिसे कोई भी ले जा सकता था।
         एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और धन्यवाद देने के बजाय अपने रस्ते पर चलता हुआ बड़बड़ाता रहति- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौटकर आएगा।" इस तरह दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा।
          वह कुबड़ा प्रतिदिन रोटी लेकर  बड़बड़ाता हुआ चला जाता। वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन-ही-मन सोचने लगी कि "कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो कहता नहीं और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका।"
         एक दिन क्रोधित होकर उसने निर्णय लिया और बोली- "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूँगी।" उस दिन उसने रोटी में जहर मिला दिया, जैसे ही रोटी को खिड़की पर रखा अचानक उसके हाथ काँपने लगे और वह बोली- "हे भगवन, मैं यह क्या करने जा रही थी?" उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे की आँच में जला दिया। फिर उसने एक ताजी रोटी बनाई और खिड़की के सहारे रख दी।
         हर रोज कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेकर बड़बड़ाता हुआ चला गया। वह इससे बिलकुल बेखबर था कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है।
         वह महिला खिड़की पर रोटी रखते हुए भगवान से अपने पुत्र की सलामती और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए बाहर गया हुआ था। महीनों से उसकी कोई खबर नहीं मिली थी।
          ठीक उसी शाम उसका बेटा घर आया। वह कमजोर हो गया था। उसके कपड़े फट गए थे और वह भूख के कारण बेहाल हो गया था।
          माँ को देखते ही उसने कहा- "माँ, यह चमत्कार ही है कि मैं आज यहाँ हूँ। जब घर से एक मील दूर था तो मैं भूख के कारण गिर गया था। मैं मर गया होता यदि वहाँ से गुजर रहे एक कुबड़े की नज़र मुझ पर न पड़ी होती। उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया। भूख के मारे मेरे प्राण निकल रहे थे। मैंने उससे खाने के लिए कुछ माँगा। उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कहकर दे दी कि- "मैं हर रोज यही खाता हूँ, आज मुझसे ज्यादा तुम्हें इसकी जरूरत है, यह खा लो और अपनी भूख शान्त करो।"
         बेटे की बात सुनते ही माँ का चेहरा पीला पड़ गया। अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाजे का सहारा लिया।
           उसके मस्तिष्क में वही बात घूमने लगी कि यदि उसने सुबह जहर मिली रोटी को आग में जलाकर नष्ट नहीं किया होता तो आज उसका बेटा उस रोटी को खाकर मर जाता? उसे उन शब्दों का वास्तविक अर्थ समझ आ गया- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे तो वह तुम तक लौटकर आएगा।
        इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करने के लिए तत्पर रहना चाहिए और अच्छा करने से अपने आप को कभी रोकना नहीं चाहिए। चाहे उस समय उस कृत कार्य के लिए आपकी सराहना या प्रशंसा हो अथवा न हो। अपने प्रयासों को यत्नपूर्वक बढ़ाते रहना चाहिए। पता नहीं किस मोड़ पर हमारी अच्छाई हमें बहुत कुछ दे जाए और हमारी बुराई हमसे सर्वस्व छीन ले।
चन्द्र प्रभा सूद
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