बुधवार, 4 मई 2016

जैसी सोच वैसी सृष्टि

मनुष्य जैसी सोच रखता है, उसे यह सृष्टि वैसी ही दिखाई देती है। सकारात्मक सोच रखने वाले व्यक्ति को सारी सृष्टि बहुत ही खूबसूरत और मनमोहक प्रतीत होती है। हर ओर अच्छाई देखने के कारण वह हर परिस्थिति में शान्त और प्रसन्न रहता है। वह अपने चारों के वातावरण को अपनी सकारात्मक सोच से महकाता है। उसके पास आने वाला हर व्यक्ति अपने कष्टों को भूलकर प्रसन्नता से भर जाता है।
            इसके विपरीत नकारात्मक सोच वाला मनुष्य अच्छाई में भी बुराई ढूँढ लेता है और कल्पता रहता है। उसे अपनी इस सोच के कारण दो पल का भी सुकून जीवन में नहीं मिल पाता। वह स्वयं तो परेशान रहता ही है, अपने बन्धु- बान्धवों को भी चैन नहीं लेने देता। अपने चिड़चिड़े स्वभाव के कारण वह उन्हें बिना किसी मतलब के परेशानियों मे डाल देता है।
          सकारात्मक और नकारात्मक सोच वाले व्यक्तियों के विषय में हम इस कथा से समझते हैं। किसी ऋषि के दो शिष्य थे। उनमें से एक शिष्य की सकारात्मक सोच थी। वह हमेशा दूसरों की भलाई के बारे में सोचता था और दूसरा नकारात्मक सोच रखता था और स्वभाव से बहुत क्रोधी था। एक दिन महात्मा जी अपने दोनों शिष्यों की परीक्षा लेने के लिए उन्हें जंगल में ले गये। जंगल में एक आम का पेड़ था जिस पर बहुत सारे खट्टे और मीठे आम लटके हुए थे। ऋषि ने पेड़ की ओर देखा और शिष्यों से उस पेड़ को ध्यान से देखने के लिए कहा।
         तब उन्होंने पहले शिष्य से पूछा की तुम्हें क्या दिखाई देता है? शिष्य ने कहा कि यह पेड़ बहुत विनम्र है, लोग इसे पत्थर मारते हैं फिर भी ये बिना कुछ कहे उन्हें फल देता है। इंसान को भी इसी तरह होना चाहिए, जीवन में कितनी भी परेशानी क्यों न हो विनम्रता और त्याग की भावना नहीं छोड़नी चाहिए।
          फिर उन्होंने दूसरे शिष्य से पूछा कि तुम क्या देखते हो? उसने क्रोधित होते हुए कहा कि यह पेड़ बहुत धूर्त है। बिना पत्थर मारे यह कभी फल नहीं देता। यदि इससे फल लेने हैं तो इसे मारना ही पड़ेगा। इसी तरह मनुष्य को भी अपने मतलब की चीज़ें दूसरों से छीनकर ले लेनी चाहिए।
          गुरु जी हँसते हुए पहले शिष्य की प्रशंसा की और दूसरे शिष्य से भी उससे सीख लेने के लिए कहा। सकारात्मक सोच हमारे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है। नकारात्मक सोच के व्यक्ति सदा अच्छी चीज़ों मे भी बुराई ही ढूँढते हैं।
          इसी बात को पुष्ट करने के लिए हम गुलाब के फूल को देखते हैं। गुलाब के फूल को काँटों से घिरा हुआ देखते ही वह नकारात्मक सोच वाला व्यक्ति कहेगा कि इस फूल की इतनी खूबसूरती का क्या फ़ायदा? इतना सुंदर होकर पर भी यह काँटों से घिरा हुआ है। जो भी इस फूल को तोड़ने का यत्न करेगा उसे ये दुष्ट काँटे उसे लहुलूहान कर देंगे।
            इसके विपरीत उसी ही फूल को देखकर सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति कहेगा कि वाह! यह फूल प्रकृति की कितनी सुंदर रचना है जो इतने काँटों के बीच भी सुरक्षित खिला हुआ है। सबका मन मोह रहा है और चारों ओर अपनी सुगन्ध फैला रहा है। दोनों ने अपनी समझ के अनुसार बात एक ही कही ही है लेकिन केवल उनकी दृष्टि और कथनी का अन्तर है।
            एक व्यक्ति को हरेक में गुण दिखाई देते हैं और दूसरे को उसमें दोष ही दिखाई देते हैं। मनुष्य जितना सरल, निष्कपट और सहृदय होगा उतना ही वह दूसरों की हर कठिनाई को समझेगा और उसे दूर करने का यथासंभव प्रयास करेगा। परन्तु कठोर हृदम, निर्मम और छिद्रान्वेषी व्यक्ति दूसरों की कमियों को ढूँढकर उनका उपहास करेगा। वह भूल जाता है कि उसके अपने भीतर कमियों का भंडार है।
         दूसरों की कमियों अथवा गलतियों को अनदेखा करके सदा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। ऐसे व्यक्तियों के चेहरे पर एक अलग तरह की चमक होती है। नकारात्मक सोच वाले हमेशा मुरझाए से रहते हैँ।
चन्द्र प्रभा सूद
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