शनिवार, 28 मई 2016

कुछ पीछे छूट तो नहीं गया?

कुछ रह तो नहीं गया? कुछ पीछे छूट तो नहीं गया? अथवा कोई गलती तो नहीं हो गई? ये ऐसे प्रश्न हैं जो हम सभी को जीवन के हर मोड़ पर चलते हुए हमेशा परेशान करते रहते हैं। यदि विचार किया जाए तो हम दिन में न जाने कितनी बार इन प्रश्नों से दो-चार होते रहते हैं।
         छोटे बच्चे को आया के पास अथवा क्रच में छोड़कर नौकरी पर जाने वाली माँ दस बार अपना और बच्चे का सामान चैक करती है और बार-बार यही सोचती है कि कुछ रह तो नहीं गया? यदि यहाँ कुछ छूट गया तो फिर दिनभर बच्चे के लिए परेशानी हो जाएगी।
         रसोई में खाना बनाकर निकलने से पहले सब कुछ सम्हालने और गैस बन्द कर देने के बाद गृहिणी जब कमरे में आकर बैठ जाती है तब भी उसके मन में आशंका उठती है कि मैंने गैस तो बन्द कर दिया था क्या? ऐसा तो नहीं कि कहीं सब्जी जल जाए?
         किसी भी कारण से घर से बाहर निकलने वाले हम सभी अपने पर्स, गाड़ी की चाबी आदि रख लेने के बाद फिर इन चीजों को जाँचते रहते हैं कि उन्हें रख लिया या नहीं? समस्या तब आती है कि जब भागमभाग कुछ छूट जाता है तो बाहर जाने का सारा मजा किरकिरा हो जाता है। इसी तरह घर के सारे स्विच तथा ताले बार-बार चैक करते हैं। फिर भी मन के किसी कोने में एक अनजाना-सा डर रहता है कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया।
         शादी में दुल्हन को बिदा करने के बाद दुल्हन के  माता-पिता घर के सब सदस्यों से कहते हैं कि अच्छे से देख लो कुछ रह तो नहीं गया न? वहाँ कुछ छूटे-न-छूटे पर बचपन से आजतक जिस नाम वे अपनी बेटी को पुकारते थे, वह नाम पीछे रह जाता है। जब भी लाडली बिटिया को याद करेंगे उनकी आँखों में आँसू आये बिना नहीं रहेंगे। बेटी की बचपन से अब तक की यादें, उसका रूठना-मानना यानि कि उसकी हर बात माता-पिता के हृदयों में याद बनकर पीछे रह जाती है।
           माता-पिता, बहन-भाई अपनी जुबान से चाहे कुछ न बोलें परन्तु उनके दिल में एक कसक तो रह ही जाती है। विदा होते समय दुल्हन का मन भी यही कहता है कि सब कुछ तो यहीं छूट गया। अपने नाम के आगे गर्व से जो नाम लगाती थी वह भी पीछे छूट गया। उस घर से उसका नाता छूट रहा है। माता-पिता का प्यार, उनसे की जाने वाली जिद, सखी-सहेलियाँ और बाबुल का  आँगन  सब पीछे छूट रहे हैं।
          इन्सान बड़ी हसरत से अपने बच्चों को पढ़ने के लिए विदेश भेजता है और वे पढ़कर वहीं सैटल हो जाते हैं। उनसे मिलने के लिए बड़ी ही मुश्किल से उन्हें अधिकतम छह महीने का वीजा मिला पाता है। वापिस लौटते समय जब बच्चे पूछते हैं कि सब कुछ चैक कर लिया कुछ रह तो नही गया? उस समय बच्चों से बिछुड़ते समय सब तो वहीं छूट जाता है। ऐसा लगता है मानो हृदय की गहराइयों से कुछ-कुछ छीजता जा रहा है। इससे अधिक और छूटने के लिए क्या बचा रह जाता है?
          साठ वर्ष पूर्ण करने के उपरान्त जब सेवानिवृत्ति की शाम जब दोस्तों ने याद दिलाते हैं कि सब चेक कर लो, कुछ रह तो नही गया। तब मन में एक टीस उठती है कि सारी जिन्दगी तो यहीं आने-जाने में बीत गई, अब क्या रह गया होगा। 
           किसी अपने की अन्तिम यात्रा के समय शमशान में उसका संस्कार करके लौटते समय लगता है कि कुछ छोड़े जा रहे हैं। एक बार पीछे देखने पर चिता की सुलगती आग को देखकर मन भर आता है। अपने से वियोग के समय उससे पुनः न मिल पाने की पीड़ा में सब पीछे रह जाता है। भरी आँखों से इन्सान कुछ बोल तो नहीं  पाता पर कुछ तो पीछे रह जाता है। उस प्रिय की वे यादें उसके अंतस् में सदा उसके साथ रहेंगी।
           आत्मचिन्तन करना हमारे लिए बहुत आवश्यक है और अपने पूरे जीवन में झाँकना चाहिए। यह जानकारी लेने का प्रयास करना चाहिए कि ऐसा तो नहीं है कि कुछ पीछे छूट रहा हो, जिसे हम अपने साथ लेकर चल सकते थे। इस मलाल को जीवन भर ढोने के बजाय समय रहते ध्यान दिया जाना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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