सोमवार, 2 मई 2016

बड़े बोल बोलना

बड़े बोल बोलना अर्थात अपने अहंकार का प्रदर्शन करना। बड़े बोल बोलने वाले व्यक्ति को कोई पसंद नहीं करता सभी उससे बचकर निकलना चाहते हैं। बड़े बोल को अहंकार की श्रेणी में रखा जाता है। यह अहंकार विष की बेल के समान है। इसके सम्पर्क में आने वाले हर व्यक्ति का विनाश निश्चित है।
          रहीम जी ने बहुत ही सुन्दर शब्दों में कहा है-
बड़े बड़ाई न करें और बड़े न बोलें बोल
रहीमन हीरा कब कहे लाख टका मेरा मोल
          अर्थात मनुष्य को न अपनी प्रशंसा करनी चाहिए और न ही बड़े बोल बोलने चाहिए। यदि ऐसा होता तो बेशकीमती हीरे को भी तो घमण्ड में इतराना चाहिए कि वह बहुत मूल्यवान है। पर वह बेचारा तो किसी से कुछ नहीं कहता। पारखी जौहरी उसका मूल्यांकन करता है, तब उसकी कीमत कआ अहसास सबको होता है।
         मनुष्य को अपने रग-रूप, अपने उच्च पद, अपने ज्ञान, आज्ञाकारी सन्तान अथवा अपने धन-वैभव किसी का भी गर्व नहीं करना चाहिए। ये सब आनी-जानी हैं, स्थायी नहीं हैं। शरीर के नष्ट होने से पहले ही मनुष्य का साथ छोड़ देती हैं।
          इसीलिए मनीषी हमें समझाते हैं कि सफलता की ऊँचाइयों को छूकर भी कभी अहंकार मत करना क्योंकि ढलान हमेशा शिखर से ही शुरु होती है। यदि ऊँचाई को छूने के बाद जरा-सा धक्का लग जाए तो मनुष्य सीधा धरालत पर धड़ाम से गिर पड़ता है। तब उसे सम्हलने में बरसों लग जाते हैं और तब तक दुनिया से विदा लेने का समय करीब आ जाता है।
          इस बात को हम नींबू के उदाहरण द्वारा समझते हैं। नीबू के रस की एक बूँद यदि हजारों लीटर दूध में डाल दी जाए तो वह उस सारे दूध को बरबाद कर देती है। यानि दूध फट जाता है या खराब हो जाता है। तब उसे किसी भी उपाय से पुरानी स्थिति में वापिस नहीं लाया जा सकता। उसे उपयोग में लाना कठिन होता है।
          उसी प्रकार अहंकार भी अच्छे-से-अच्छे लोगों को भ्रष्ट कर देता है। वह बन्धु-बान्धवों से उसके प्यार प्रगाढ़ सम्बन्धों को भी बिगाड़ देता है। अपने इस अहंकार की आदत के कारण समय बीतने पर जब वह पीछे मुड़कर देखता है तब स्वयं को निपट अकेला खड़ा पाता है। उस समय उसे अपनों के साथ और सहारे की बहुत ही आवश्यकता होती है।
          हर मनुष्य को  सरल, निष्कपट, सहृदय लोग अच्छे लगते हैं। वे उन लोगों के साथ जुड़ना चाहते हैं जो क्षमाशील हों और हर समय अकड़कर न रहें और दूसरों की भावनाओं को समझें। प्यार से सम्बन्ध लम्बे समय तक साथ चलते हैं। किसी भी गलती के हो जाने की स्थिति में एक-दूसरे से क्षमा याचना करने में उन्हें कोई परहेज नहीं होता। अहंकारी हमेशा दूसरों को उसकी गलती पर जलील करना जानता है। वह केवल सारी सुनना पसंद करता है पर सारी कहना नहीं चाहता। यदि किसी भी कारण से उसे झुकना पड़ जाए तो उसकी नाक कटती है या उसे अपनी हेठी समझने लगता है।
          अहंकारी व्यक्ति को यह भी पता  नहीं चलता कि वह किसी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करके उनके हृदय को घायल कर रहा है। वह अपने अहं के नशे में दूसरों पर रौब झाड़ने के लिए बिना सोचे-समझे अन्धाधुन्ध पैसे भी बरबाद करने से पीछे नहीं हटता। चाहे बाद में उसे कितना ही पछताना क्यों न पड़े। इसीलिए विद्वानों का मानना है कि मनुष्य को किसी का भी मजाक सोच-समझ करके उड़ाना चाहिए और अपना पैसा भी व्यर्थ नही गंवाना चाहिए। दोनों ही स्थितियाँ मनुष्य के लिए कष्टकारी होती हैं।
          मनुष्य को स्वाभिमानी होना चाहिए अहंकारी नहीं। अहंकार से उसका किसी भी तरह से मंगल नहीं हो सकता।
चन्द्र प्रभा सूद
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