सोमवार, 30 मई 2016

बेटी को संस्कारी बनाएँ

हर माता-पिता अपने बेटे के लिए एक सुशील और सुघड़ बहू की आवश्यकता पर बल देते हैं। कोई भी व्यक्ति अच्छी पत्नी के स्थान पर ऐसी खूबसूरत वस्तु की कामना नहीं करता जिसे किसी के घर के किसी कोने में अथवा शोकेस में सजाकर रख दिया जाए। सभी माता-पिता का कर्त्तव्य है कि वे अपनी बेटी को सर्वगुण सम्पन्न बनाएँ। उसकी सभी छोटी-छोटी बातों पर अवश्य ध्यान दें।
         अपनी सन्तान सबको प्रिय होती है। बेटियाँ अपने माता-पिता की बहुत दुलारी होती हैं। बेटी कितनी भी प्यारी क्यों न हो, उससे घर का काम-काज अवश्य आना चाहिए। हमारा सामाजिक ढाँचा ही ऐसा है जिसमें लड़की के कन्धों पर ही घर-गृहस्थी और बच्चों को सम्हालने का दायित्व होता है। हर माता का यह दायित्व है कि वह अपनी बेटी के लाड़ लड़ाने के साथ-साथ उसे गृहकार्यों में भी दक्ष करे जिससे उसे ये काम करने में कभी परेशानी न हो।
          ऐसा नहीं है कि ससुराल में जाकर ही वह घर-गृहस्थी को अच्छी तरह सम्हाले बल्कि अपने माता-पिता के घर में किसी के अस्वस्थ होने पर माता का हाथ बटाए। यदि कभी माता रुग्ण हो जाए तो घर को ठीक से सम्हाल सके। ताकि किसी बाहर वाले को घर की देखरेख के लिए बुलाने की आवश्यकता न पड़े।
         माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी बेटी की गलतियों पर पर्दा न डालकर उसको समय-समय पर डाँट-डपट भी करें, जिससे उसे अपनी गलती को सुधारने की समझ पैदा हो सके। दूसरों के सामने अपने बच्चों की सदा प्रशंसा करें परन्तु घर में अनुशासन आवश्यक है। हर परिस्थिति का डटकर सामना करने की सूझबूझ उसे दें। ससुराल में कभी ज्यादा काम पड़ने या कभी डाँट मिलने पर वह कोई गलत कदम उठाने की कोशिश न करे। उस समय मन में यह मलाल न हो कि काश हमारे घर बेटी पैदा ही न हुई होती।
       समय रहते अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलाएँ। इस तरह वह योग्य बनकर अपने पैरों पर खड़ी हो सकेगी। उसके जीवन में आर्थिक स्वतन्त्रता का होना बहुत ही आवश्यक है। अन्यथा उसे कदम पर दूसरों का मुँह देखना पड़ेगा। पढ़ी-लिखी बेटी दो परिवारों का मान बढ़ाती है। अपनी बेटी को उसके अधिकारों और कर्त्तव्यों की जानकारी भी कराएँ।
         बेटी से बहु बनाने की प्रक्रिया से हर लड़की को गुजरना पड़ता है। माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी बेटी को संस्कारित करें। यदि किसी कारणवश माता-पिता इस दायित्व से चूक जाते हैं तो उनकी बेटी को इसका खामियाजा जीवन भर भुगतना पड़ता है। उसके साथ-साथ माता-पिता को भी जिन्दगी भर अपमानित होता पड़ता है। हर कोई यही कहता है कि बेटी को क्या सिखाया है?
          सभी माता-पिता यदि अपनी बेटियों में एक अच्छी बेटी और एक सुघड़ बहू बनने के संस्कार देंगे तभी तो हर घर को संस्कारित बहू मिलेगी? इस कटु सत्य को हर माता और पिता को समझ लेना चाहिए।
          यदि ऐसा होने लगे तो किसी घर में बिखराव अथवा टकराव नहीं होगा। तब किसी बहन के मन में यह कसक नहीं रहेगी कि उसका भाई और उसकी भाभी उसके माता-पिता की सेवा नहीं करते, उनका ध्यान नहीं रखते। उन्हें वृद्धाश्रम या ओल्ड होम में छोड़ना चाहते हैं। माता-पिता की होती अवहेलना का दोषी सभी बेटों को ही मानकर कोसते हैं। सोचने की बात यह है कि बेटे अपने माँ बाप को शादी के पहले वृद्धाश्रम क्यों नही भेजते, शादी के बाद ही क्यों भेजते हैं। माता-पिता भूल जाते हैं कि यदि उन्होंने ने अपने बच्चों को संस्कारित करने का दायित्व ठीक से निभाया होता तो आज हमारे देश में एक भी ओल्ड होम न होता। किसी की बेटी यदि उनकी बहू है तो उनकी अपनी बेटी भी किसी के घर की बहू है।
       सभी माता-पिता से अनुरोध है कि जब तक अपरिहार्य परिस्थितियाँ न हों, बेटी के ससुराल मे जाकर अनावश्यक रूप से दखलअंदाजी न करें और बच्चों को घर में तालमेल बिठाने का परामर्श दें। इसी से दोनों घरों की इज्जत बनी रहती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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