गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

ईश्वर के प्रति विश्वास

मन में विश्वास का होना बहुत आवश्यक होता है। चाहे वह ईश्वर के प्रति हो या किसी सांसारिक व्यक्ति के प्रति। यह एक ऐसा गुण है जिसको अपनाए बिना मनुष्य जीवन चला ही नहीं सकता। सांसारिक लोगों पर विश्वास कभी सुखदायी होता है तो कभी दुखदायी। लोग एक-दूसरे पर अपना स्वार्थ साधने के लिए ही विश्वास जमाते हैं। स्वार्थ पूर्ण होने पर कुछ धोखा दे देते हैं और कुछ आजीवन अपना विश्वास बनाए रखते हैं। ईश्वर ही मनुष्य का एकमात्र बन्धु है जो कभी उसका साथ नहीं छोड़ता। मनुष्य चाहे उसे भूल जाए या उसका तिरस्कार ही क्यों न करे।
          कुछ समय पूर्व एक कथा पढ़ी थी, इसे आप सबके साथ साझा कर रही हूँ। एक सन्त पैर में जंजीर बाँधकर, कुएँ पर स्वयं को लटका कर ध्यान करता था और कहता था जिस दिन यह जंजीर टूटेगी मुझे ईश्वर मिल जाएँगे।
          उससे सारा गाँव बहुत प्रभावित था। उसे देखकर एक व्यक्ति के मन में इच्छा हुई कि वह भी ईश्वर का दर्शन करे। वह रस्सी से अपने पैर को बाँधकर कुएँ में लटक गया और भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करने लगा। कुछ समय पश्चात जब रस्सी टूटी तो भगवान श्रीकृष्ण ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और उसे दर्शन भी दिए।
        तब उस व्यक्ति ने श्रीकृष्ण से पूछा- 'आप इतनी जल्दी मुझे दर्शन देने चले आए जबकि वे सन्त-महात्मा वर्षों से आपका स्मरण कर रहे हैं।'
        भगवान श्रीकृष्ण बोले - 'वह कुएँ पर लटकता जरूर है किन्तु पैर को लोहे की जंजीर से बाँधकर। मुझसे ज्यादा उसे लोहे की जंजीर पर विश्वास है। तुम्हें स्वयं से अधिक मुझ पर विश्वास है, इसलिए मैं तुम्हें दर्शन देने के लिए आ गया।'
           यह आवश्यक नहीं हैं कि प्रभु का दर्शन करने में वर्षों लग जाएँ। उसके दर्शन मनुष्य को पलभर में भी हो सकते हैं। यह मनुष्य की आपनी मन की भावना पर निर्भर करता है कि ईश्वर को पाने की प्यास अथवा ललक उसमें कितनी है? वह कितनी शिद्दत से ईश्वर को पाना चाहता है? ईश्वर पर उसे कितना विश्वास है? उसका यह विश्वास कहीं दिखावा या छलावा मात्र तो नहीं है?
        एक नवजात शिशु को अपनी माता पर इतना अधिक विश्वास होता है कि सीढ़ियाँ उतरते समय वह माँ का आँचल पकड़ लेता है। कहने का तात्पर्य यही है कि छोटे बच्चे को विश्वास होता है कि माँ उसे गिरने नहीं देगी। जब बच्चा थोड़ा-सा बड़ा हो जाता है तो हम उसे ऊपर की ओर उछलते हैं और फिर पकड़ लेते हैं। बच्चा भी खिलखिलाकर हँसता है, बड़ों के साथ खेलता है। यहाँ भी उसे यही विश्वास होता है कि वह गिरेगा नहीं बल्कि वह सुरक्षित हाथों में है।
        भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं -
        ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।        
अर्थात हे अर्जुन! ईश्वर सभी प्राणियों के हृदय में स्थित हैं।
          यह तो स्पष्ट है कि परमात्मा का वास हमारे अपने हृदय में ही है। उसे पाने के लिए मनुष्य को ईमानदारी से प्रयास करना चाहिए। ईश्वर के बनाए हुए मनुष्यों पर विश्वास करके हम लोग स्वयं को उन्हें सहर्ष सौंप देते हैं, चाहे बाद में उनसे धोखा ही क्यों न मिले। परन्तु उस जगतजननी माँ पर कभी पूर्ण विश्वास नहीं कर पाते। जबकि उस पर पूर्ण विश्वास करने वाला मनुष्य कभी डूबता नहीं है। एक बार उस पर सच्चे मन से विश्वास करके देखो तो सही, इहलोक और परलोक दोनों से ही मनुष्य तर सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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