सोमवार, 9 अप्रैल 2018

जन्म सफल

भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के समय अपने कर्तव्य से च्युत हो रहे अर्जुन को जो सारगर्भित उपदेश दिया था, वह सम्पूर्ण ज्ञान 'श्रीमद्भावद्गीता' ग्रन्थ में है। श्रीकृष्ण ने बताया है कि जो बीत गया है और जो भविष्य के गर्भ में है, दोनों की ही चिन्ता व्यक्ति को नहीं करनी चाहिए, उन्हें छोड़कर अपने वर्तमान पर मनुष्य को पूरा ध्यान देना चाहिए-
           गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत्।
           वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणा:।।
अर्थात बीते हुए समय के लिए शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के लिए अनावश्यक रूप से नहीं सोचना चाहिए। बुद्धिमान लोग वर्तमान में ही कार्य करते हैं।
          यह श्लोक मनुष्य को स्पष्ट निर्देश दे रहा है कि जिस समय मनुष्य अपने कार्य-व्यवहार कर रहा है, उसे उसी की चिन्ता करनी चाहिए। अपना वर्तमान सुधारना चाहिए। प्रयास करना चाहिए कि अपने समय का सदुपयोग किया जाए। मन, वचन और कर्म से किसी प्रकार का कोई गलत कार्य अपने से न होने पाए। जो भी देश, धर्म, समाज की भलाई के कार्य कर सकें, उन्हें अवश्य करें। अपने पारिवारिक दायित्वों का निर्वहण करे। किसी को शिकायत का मौका न दे।
          जो समय व्यतीत हो चुका है, उसमें क्या किया था अथवा क्या नहीं किया था उसके लिए अनावश्यक प्रलाप करने से कोई लाभ नहीं होता। हर समय अपने अतीत की सफलताओं का ढिंढोरा पीटने से अथवा असफलताओं का रोना रहते रहने से भला नहीं होता। न ही उसमें किसी की कोई रुचि होती है। उचित यही है कि भूतकाल में कई गई गलतियों से शिक्षा लेकर मनुष्य आगे बढ़ने का प्रयास करता रहे। जो भी अच्छे कार्य उस समय किए थे उन्हें आगे बढ़ाते रहना चाहिए।
          भविष्य के गर्भ में क्या है? इससे सभी अनजान हैं। इसलिए सारा समय बस दिवास्वप्न देखते रहना या ख्याली पुलाव पकाते रहने को कोई बुद्धिमत्ता नहीं कहा जा सकता। हाँ, दीर्घकालिक योजनाएँ बनानी चाहिए और उन्हें क्रियान्वित करते रहना चाहिए, वे निश्चित ही यथासमय फलदायी हो जाएँगी। इसलिए मनुष्य को वर्तमान पर अधिक ध्यान देना चाहिए। तभी वह मनचाही सफलता प्राप्त कर सकता है।
            परिवर्तिनि संसारे मॄत: को वा न जायते।
            स जातो येन जातेन याति वंश: समुन्न्तिम्॥
अर्थात इस बदलते संसार में कौन ऐसा है जो जन्म लेकर मृत्यु को प्राप्त नहीं हुआ है। जन्म लेना उसका ही सफल है जिससे उसका वंश उन्नति को प्राप्त हो।
           इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण समझते हैं की उसी व्यक्ति का जन्म इस पृथ्वी लेना सफल होता है जिसके कारण उसके वंश की उन्नति होती है। वैसे यह संसार असार है, यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है। इस जन्म और मृत्यु के बीच झूलता मनुष्य अपने जीवन को सफल बना सकता है। वह यदि अपने सम्पूर्ण दायित्वों का निर्वहण करता है तो उसका यश बढ़ता है, उसके कुल-परिवार का नाम रौशन होता है। उसके नाम से उसके बन्धु-बान्धव जाने जाते हैं।
           इसके विपरीत जो मनुष्य कुमार्गगामी होता है अथवा अपने नैतिक दायित्वों से मुँह मोड़ लेता है, वह अपने कुल को हानि पहुँचाता है। ऐसा व्यक्ति कुलघातक कहा जाता है। ऐसे नालायक व्यक्ति को घर-परिवार, बन्धु-बान्धवों और समाज से तिरस्कार ही मिलता है। कभी-कभी ऐसा भी देखा गया है कि उसके ही अपने माता-पिता उससे सारे सम्बन्ध तोड़ लेते हैं। वे अपनी धन-सम्पत्ति से भी उसे बेदखल कर देते हैं। बताइए जो अपने घर-परिवार तथा अपने बन्धु-बान्धवों का नहीं बन सका, वह अपने कुल का उद्धार क्या करेगा?
          इन श्लोकों के अनुसार मनुष्य को अपने भूतकाल और भविष्यकाल की चिन्ता छोड़कर अपना वर्तमान की ओर ध्यान देना चाहिए। उसका जन्म तभी सफल माना जाता है जब वह अपने कुल का उद्धार करने वाला हो।
चन्द्र प्रभा सूद
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