सोमवार, 30 अप्रैल 2018

अपना कार्य स्वयं करें

हमारे पास ईश्वर की कृपा से प्रभूत धन-वैभव हो, सम्पत्ति हो, नौकर-चाकर हों, बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ हों, फिर भी कभी-कभी स्वयं कार्य करना चाहिए। उसमें बहुत आनन्द की अनुभूति होती है। यदि उसे भार समझकर किया जाए तो मजा नहीं आएगा। अपने घर-परिवार के लिए किए गए कार्यों से एक विचित्र प्रकार की सन्तुष्टि मिलती है जो अमूल्य होती है। उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। इसलिए इस सुख से वञ्चित नहीं रहना चाहिए।
          इसी प्रकार अपने बच्चों को बड़ा व सुन्दर मकान, अच्छा पौष्टिक खाना, बड़ा टीवी, मँहगा मोबाइल, कंप्यूटर सब कुछ देना चाहिए। उन्हें दुनिया की हर नेमत देनी चाहिए जो अपने बस में हो, कर्जा लेकर नहीं। परन्तु साथ ही बच्चों को उनकी जिम्मेदारी का पाठ भी पढ़ाना चाहिए, ताकि वे जीवन में कभी मार न खा सकें। उन्हें सीखना चाहिए कि घर काम करने वाली बाई, माली, कपड़े प्रेस करने वाला धोबी, बिजली वाला, सफाई करने वाला, गाड़ी चलाने वाला ड्राईवर सभी हमारी ही तरह इन्सान हैं। इसलिए उनके साथ कभी दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए। उनके साथ यदि बदत्तमीजी की जाए तो उन्हें कष्ट होता है। उन्हें सम्मान देना चाहिए। वे हमारे बहुत से कार्य करते हैं, परन्तु वे हमारे बन्धुआ मजदूर नहीं हैं।
           उन्हें परिश्रम का महत्व समझाना चाहिए और उन्हें अपने ही हाथों से काम करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। उनसे कहें कि खाना खाने के बाद वे अपने बर्तन उठाकर रसोई में रखें, प्यास लगी है तो उठकर स्वयं पानी लेकर पिएँ। अपना बैग खुद लगाएँ, अपने जूते व मौजे स्वयं पहनें। अपना बैग अपने कन्धे पर टाँगकर अपनी स्कूल बस पकड़ें। कभी-कभी बाजार से छोटी-मोटी वस्तु लेकर आएँ। इससे उनका मनोबल बढ़ेगा, वे स्वावलम्बी बनेंगे और दूसरों का मुँह नहीं ताकेंगे।
         ईश्वर न करे कभी कोई अनहोनी हो जाए, भूकम्प आ जाए, अतिवृष्टि के कारण बाढ़ आ जाए तो उस समय सब तहस-नहस हो जाता है। इसका उदाहरण समाचार पत्रों, सोशल मीडिया व टी. वी. में यदा कदा दिख जाता है। बड़े-बड़े साम्राज्य पलक झपकते धराशाई हो जाते हैं। प्राकृतिक आपदाएँ अमीर-गरीब, रंग-रूप, छोटे-बड़े आदि में अन्तर नहीं करतीं। समान रूप से वे सबके साथ व्यवहार करती हैं। उस समय स्वयं को या बच्चों को सम्हाल पाना बहुत कठिन हो जाता है। यदि परिश्रम करने का स्वभाव होगा तो जीवन नए सिरे से आरम्भ करने में सरलता होगी अन्यथा उस समय ईश्वर ही मालिक होगा।
           अवकाश के दिन बच्चों को घर की सफाई आदि कार्यों में सहायता करने के लिए कहना चाहिए। अपने कपड़ों या पुस्तकों की अलमारी को नियोजित करने की प्रेरणा देनी चाहिए। इन कार्यों को करने के पश्चात कभी-कभार उनकी मनपसन्द वस्तु दिलाकर उन्हें प्रोत्साहित भी करना चाहिए। सारा दिन बच्चे यदि टी. वी. देखते रहेंगे अथवा मोबाईल पर खेलते रहेंगे तो छोटी-सी आयु में उन्हें बीमारियाँ जकड़ लेंगी। उन्हें इन कार्यों में लगाने से उनको जिम्मेदारी का अहसास भी होगा और अपने हाथ से कार्य करने का सन्तोष भी होगा। उन्हें इस बात का भी अहसास होगा कि वे निठ्ठले नहीं हैं, कुछ कर सकते हैं।
          बच्चों को हर परिस्थिति के लिए तैयार करना माता-पिता का ही दायित्व होता है। यदि समय को यह सब संस्कार देने पड़ें या सीखना पड़े तो बहुत कष्टदायक होता है। मनुष्य को जीवन में सभी तरह के पाठ पढ़ने ही पड़ते हैं। यदि स्वयं होकर सीख लिया जाए तो सरलता रहती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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